विशाल
गढ़ के किले से आगे चलकर पहुंच गया हूं अभिषेक पुष्करिणी। यह गढ़ से दो किलोमीटर
आगे है। मुख्य सड़क के बायीं तरफ जाने के लिए प्रवेश द्वार बना हुआ है। कई साल बाद
इधर आया हूं तो देख रहा हूं कि रास्ते कई नए होटल और रेस्टोरेंट बन गए हैं। दरअसल इस बीच वैशाली में
सैलानियों की आवाजाही बढ़ी है तो वैशाली में पर्यटन का कारोबार भी बढ़ा है।
अभिषेक
पुष्करिणी को स्थानीय लोग खरौना पोखर भी कहते हैं। दरअसल यह खरौना गांव में स्थित
है इसलिए इस नाम से जाना जाता है। वैशाली का प्रमुख आकर्षण ऐतिहासिक सरोवर अभिषेक पुष्करिणी है। यह
वज्जि गणराज्य के काल में ईसा पूर्व 600 ईस्वी से पहले का बनवाया गया पवित्र सरोवर है।
ऐसा
माना जाता है कि इस गणराज्य में जब कोई नया शासक निर्वाचित होता था तो उनका यहीं
पर राज्याभिषेक करवाया जाता था। इसी के पवित्र जल से अभिशिक्त हो लिच्छिवियों का
राजा गणतांत्रिक संथागार में सिंहाशनारुढ़ होता था। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने
अपने उपन्यास सिंह सेनापति में इस सरोवर का उल्लेख किया है।
पर
इन दिनों इस सरोवर की हालत अच्छी नहीं है। इसके चारों तरफ बेहतर सौंदर्यीकरण कराए
जाने की जरूरत है। सरोवर का पानी गंदला दिखाई दे रहा है। इसके पानी को साफ करके
इसमें नौकायन को बढ़ावा दिया जा सकता है। यह सैलानियों के
लिए खास आकर्षण का केंद्र बन सकता है। दरअसल वैशाली में सैलानियों की सारी आवाजाही
इसी पोखर के आसपास रहती है।
सफेद रंग का विश्व शांति स्तूप - इस पोखर के दक्षिणी कोने पर जापान की संस्था निप्पोनजन म्योहोजी द्वारा सफेद रंग का विशाल विश्व शांति स्तूप यानी वर्ल्ड पीस पैगोडा का निर्माण कराया गया है। इसकी ऊंचाई 38 मीटर ( 125 फीट ) है। वहीं गुंबद का व्यास 20 मीटर (65 फीट) है। इस स्तूप का डिजाइन राजगीर, दिल्ली, लुंबिनी के स्तूप जैसा ही है। निप्पोनजन म्योहोजी द्वारा बने स्तूप एक ही वास्तु कला में दिखाई देते हैं। इस स्तूप का उदघाटन 23 अक्तूबर 1996 को किया गया था।
वैशाली
में इस स्तूप को देखने सबसे ज्यादा सैलानी पहुंचते हैं। तो स्तूप के आसपास छोटा सा
अस्थायी बाजार बन गय है। यहां पर आपको खाने पीने की वस्तुएं मिल सकती हैं। वहीं आप
बुद्ध से जुड़े प्रतीक चिन्ह खरीद सकते हैं। बच्चों के खिलौने खरीद सकते हैं। अगर
आप अपने वाहन से पहुंचे हैं तो यहां पर वाहनों के लिए पार्किंग का भी इंतजाम है।
पुरातत्व संग्रहालय, वैशाली - बुद्ध ने अपने जीवन के कई वर्ष वैशाली में गुजारे थे। महावस्तु नामक ग्रंथ से ज्ञात होता है कि गौतम बुद्ध लिच्छिवियों के विशेष निमंत्रण पर वैशाली आए थे। वैशाली बुद्ध का काफी प्रिय था। पोखर के उत्तरी तरफ वैशाली का पुरातात्विक संग्रहालय है। यहां पर आप बुद्ध के जीवन से जुड़ी चीजें और वैशाली के इतिहास से रुबरू हो सकते हैं।
बुद्ध अस्थि अवशेष स्तूप - संग्रहालय से ठीक पहले हरे भरे पार्क के बीच वैशाली का सबसे प्राचीन बौद्ध स्तूप है। यह बुद्ध के अस्थि अवशेष पर बने आठ मौलिक स्तूपों में से एक है। पांचवी सदी में 8.07 मीटर व्यास का स्तूप यहां पर निर्मित किया गया था। मौर्य, शुंग और कुषाण काल में इस स्तूप का परिवर्धन किया गया। बाद में इसका व्यास 12 मीटर हो गया। हालांकि अब बुद्ध के अस्थि अवशेषों को यहां से स्थानांतरित कर पटना के संग्रहालय में ले जाया गया है।
द्वितीय बौद्ध संगीति - वैशाली के वालुकाराम में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन 383 ईसा पूर्व में हुआ था। इसके अध्यक्ष सब्बाकामी बनाए गए थे। इसमें बुद्ध की कुछ शिक्षाएं जो अलिखित रूप में थी उनमें कुछ संशोधन किया गया। इसमें 700 बौद्ध भिक्षु शामिल हुए थे। उस समय वैशाली में कालाशोक का शासन था।
अभिषेक पुष्करिणी के पास एक
सुंदर और विशाल बुद्ध मूर्ति का भी निर्माण कराया गया है। रास्ते में बौद्ध
भिक्षुओं के आवास भी दिखाई देते हैं। वैशाली में थाईलैंड और वियतनाम द्वारा बनावाए
गए बौद्ध मंदिर भी दिखाई देते हैं। सर्दियों में यहां का वातावरण अत्यंत मनोरम प्रतीत हो रहा है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य -vidyutp@gmail.com
( ( ABHISHEK PUSKARINI, POND, VISHWA SHANTI STUPA, VAISHALI )
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