जिनके नाम पर हाजीपुर शहर का नाम पड़ा है। सूफी संत हाजी इलियास। एसडीओ रोड में जिलाधिकारी के बंगले के पास सड़क के बीच में स्थित है हाजी इलियास की मजार। अब इसका सौंदर्यीकरण कर हाजी इलियास पार्क बना दिया गया है।
हाजीपुर से वैशाली का सफर कुल 34 किलोमीटर का है। अब यह सड़क इतनी अच्छी बन गई है कि सफर कब खत्म हो गया पता नहीं चलता। हाजीपुर शहर में गांधी चौक से रेलवे लाइन के नीचे से होकर बागमल्ली मुहल्ले में प्रवेश कर गया हूं। यहीं पर कभी वैशाली के इतिहास संस्कृति पर शोध करने वाले महान पत्रकार तेज प्रताप सिंह चौहान का आवास हुआ करता था। अब देख रहा हूं कि यहां चौहान मार्केट बन गया है। चौहान जी अब नहीं रहे। सिर्फ उनकी यादें शेष हैं।
अंजान पीर और हथसारगंज मुहल्ले से आगे बढ़कर अपने बाइक में पेट्रोल डलवा लेता हूं। बिना खुराक के गाड़ी कैसे चलेगी। यहां भी क्रेडिट कार्ड से भुगतान हो गया। गदाई सराय, घटारो चतुर्भुज को पार करता हुआ आगे बढ़ रहा हूं। घटारो के बाजार में सड़क के किनारे एक परिवार करतब दिखा रहा है। यह एक तरह का मिनी सर्कस ही तो है। नन्ही बच्ची रस्सी पर संतुलन बनाने में लगी है।
हाजीपुर से 20 किलोमीटर का सफर करके लालगंज बाजार में पहुंच गया हूं। लालगंज बाजार में रौनक है। यहां पर कई सारी तिलकुट की दुकानें दिखाई दे रही हैं। यहां पर लगे संकेतक वैशाली का रास्ता बता रहे हैं। मैं वैशाली की ओर जाने वाला वाला रास्ता पकड़ लेता हूं।
लालगंज से सात किलोमीटर आगे भगवानपुर रत्ती चौक से
दो रास्ते हो जाते हैं। एक रास्ता फकुली चौक चला जाता है। बाईं तरफ वाला रास्ता
वैशाली की ओर जा रहा है। वैशाली पहुंचते ही प्रखंड कार्यालय के दफ्तर दिखाई देते
हैं। दाहिनी तरफ रेलवे स्टेशन जाने का रास्ता लिखा है। वैशाली को हाजीपुर से रेल
लिंक से जोड़ने का काम तेजी से जारी है। यही रेलवे लाइन केसरिया अरेराज होती हुई
चंपारण चली जाएगी।
जगदीश चंद्र माथुर की याद - वैशाली में प्रवेश करने पर सड़क के बायीं तरफ एक स्तंभ दिखाई देता है। जगदीश चंद्र माथुर की स्मृति में यह स्तंभ बना है। कौन थे जगदीश चंद्र माथुर। एक आईसीएस अधिकारी लेखक, नाटककार और भारतीय संस्कृति के महान उद्धारक। उनकी लोकप्रिय पुस्तक थी दस तस्वीरें। वैशाली के गौरव को जागृत करने में उनकी बड़ी भूमिका रही।
वैसे जो उनका जन्म यूपी के खुर्जा में 16 जुलाई 1917 को हुआ था पर उनकी कर्मभूमि वैशाली रही। सन 1945 में जब वे हाजीपुर के एसडीओ थे तब उन्होंने स्थानीय प्रबुद्ध लोगों के प्रयास से वैशाली के पुराने गौरव को हर साल याद रखने के लिए वैशाली महोत्सव कराने की शुरुआत की। उसके बाद से हर साल महावीर जयंती पर यह आयोजन हो रहा है। बीच में कुछ साल बाधाएं जरूर आईं।
हाजीपुर के एसडीओ के बाद वे देश के कई बड़े पदों पर रहे पर वैशाली उनके दिल में हमेशा धड़कता रहा। जगदीश चंद्र माथुर ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक भी बने। वरिष्ठ कथाकार कमलेश्वर लिखते हैं एआईआर का हिंदी आकाशवाणी उन्ही की देन है। उनके समय में ही 1959 में दूरदर्शन की शुरुआत हुई। वैशाली के लोग उनको खूब याद करते हैं। उसका गवाह है उनकी स्मृति में बना ये स्तंभ। देश के इस महान सपूत का निधन 14 मई 1978 को हुआ।
बिहार के हाईस्कूल के सिलेबस में उनका लिखा एक संस्मरणात्मक निबंध हमने पढ़ा था – एक जन्मजात चक्रवर्ती। यह निबंध सचिदानंद सिन्हा के बारे में था। जो उनकी पुस्तक दस तस्वीरें से लिया गया था। जगदीश चंद्र माथुर को देश में सूचना और संचार क्रांति के जनक के रूप में भी जाना जाता है। वैशाली की पुण्य भूमि को नमन करते हुए आगे की ओर चलते हैं।
- - विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( HAJIPUR, LALGANJ, VIASHALI, JAGDISH CHANDRA MATHUR )
No comments:
Post a Comment