दिल्ली के अति व्यस्त कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन निकास द्वार नंबर चार से जब आप बाहर निकलते हैं तो आपको निकोलसन कब्रिस्तान का साइनब बोर्ड नजर आता है। इसका दिल्ली के इतिहास में और देश के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में खास महत्व है। यह भारत में ब्रिटिश राज के प्रमुख यादगार स्थलों में से एक है। इसकी देखभाल दिल्ली कब्रिस्तान समिति करती है।
इस ईसाई कब्रिस्तान की
स्थापना
1857 में हुई थी। इसका
नाम ब्रिगेडियर-जनरल जॉन निकोलसन के नाम पर रखा गया है। निकोलसन कब्रिस्तान को
पुरानी
दिल्ली के पहले सैन्य कब्रिस्तान के रूप में जाना जाता है। यह दिल्ली एनसीआर में
सबसे पुरानी ज्ञात ईसाई कब्रिस्तान है।
तो कौन थे ब्रिगेडियर-जनरल जॉन निकोलसन - वे एक विक्टोरियन युग के सैन्य अधिकारी थे। उन्होंने 1857 की क्रांति को कुचलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कभी यहां पर निकोलसन की एक भव्य मूर्ति भी हुआ करती थी। पर स्वतंत्रता के तुरंत बाद, उनकी प्रतिमा को हटा दिया गया। क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में निकोलसन की छवि एक खलनायक की है।
इस कब्रिस्तान की देखभाल सेंट
जेम्स चर्च हवाले है। पुरानी दिल्ली में कश्मीरी गेट के पास स्थित ये चर्च दिल्ली
के प्राचीनतम चर्च में से एक है। यह कब्रिस्तान ईसाइयों (ब्रिटिश और भारतीय दोनों)
का अंतिम विश्राम स्थल है।
दिल्ली की भुतहा जगहों में से एक -
कई लोग इस कब्रिस्तान में जाने से डरते हैं। उनका मानना है कि यहां नकारात्मक शक्तियों का वास होता है। कुछ लोग मानते हैं कि ब्रिगेडियर निकोलसन की आत्मा आज भी यहां भटकती है। तो यह दिल्ली के चंद भुतहा जगहों में भी शामिल है।
तो जॉन निकोलसन का जन्म आयरलैंड के डब्लिन में 11 दिसंबर 1821 को हुआ था। ब्रिटिश सेना में शामिल होने के बाद निकोलसन भारत आए। उन्होंने बंगाल इनफेंटरी और बनारस में अपनी सेवाएं दीं। वे पहले एंग्लो अफगान युद्ध और एंग्लो सिख युद्ध में भी शामिल रहे। पंजाब के फिरोजपुर में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दीं। पर उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह में भूमिका के लिए खास तौर पर जाना जाता है।
विद्रोही सिपाहियों की गोली लगी - 14 सितंबर 1857 को विद्रोही सिपाही सेना दिल्ली कूच
कर चुकी थी। इस विद्रोह को दबाने में निकोलसन ने बड़ी भूमिका निभाई। पर 23 सितंबर
1857 को विद्रोही सिपाहियों की गोली निकोलसन के सीने में लगी और वह दिल्ली में ढेर
हो गया। तब निकोलसन की उम्र महज 35 साल थी।
जब सिपाही विद्रोह में कई ब्रिटिश
सैन्य अधिकारी मारे गए तो उनके कब्रिस्तान बनाने की जरूरत महसूस की गई। तो कश्मीरी
गेट में बने इस कब्रिस्तान में पहली कब्र निकोलसन की बनी। उसकी कब्र को ढकने के
लिए लाल किले से सफेद संगमरमर पत्थर को उखाड़ कर लाया गया। इस कब्रिस्तान में कुछ भारतीय लोगों की भी कब्र है जो ईसाई धर्म अपना चुके
थे। साल 2006 में
ब्रिटिश हाई कमीशन ने इस कब्रिस्तान की मरम्मत भी कराई है।
वहीं महान विद्वान फादर कामिल बुल्के जो कुछ समय तक रांची के कॉलेज में हिंदी और संस्कृत के विभागध्यक्ष थे। उनका निधन 17 अगस्त 1982 को इलाज के क्रम में दिल्ली के एम्स में हो गया था। इसके बाद उनका पार्थिव शरीर दिल्ली में ही कश्मीरी गेट स्थित संत निकोलसन कब्रिस्तान में दफनाया गया था। पर बाद में उनकी अस्थि अवशेष को झारखंड के रांची ले जाया गया। अब उनकी कब्र रांची में ही मानी जाती है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( DELHI, NICHOLSON CEMETERY, KASHMIRI GATE )
खलनायक निकोलसन, संत निकोलसन कब हो गया?
ReplyDeleteउसे संत कहां कहा जाता है....
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