मेरठ जिले के हस्तिनापुर में स्थित है कैलाश पर्वत। यह हस्तिनापुर का दूसरा विशाल और भव्य जैन मंदिर है। यह मंदिर जंबूदीप मंदिर के मार्ग पर ही जंबूदीप के ठीक पहले स्थित है। इस विशाल मंदिर परिसर में सबसे ऊंचाई पर बने मंडप के अंदर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर आदिनाथ की विशाल प्रतिमा निर्मित है। उनका नाम ऋषभदेव भी है। उनका जन्म अयोध्या में हुआ था। जैन आख्यानों के अनुसार उनके 100 पुत्र और दो पुत्रियां थीं। उनके पुत्र भरत और बाहुबली हुए, जिनके पराक्रम की अदभुत गाथाएं कही जाती हैं।
कैलाश पर्वत हिमालय पर्वतमालाओं में स्थित है जो जैन धर्म के लिए एक पवित्र स्थल है। ऐसा माना जाता है कि इसी जगह जैन धर्म के पहले तीर्थकर भगवान ऋषभदेव ने मोक्ष की प्राप्ति की थी। पर हर कोई तो कैलाश पर्वत तक पहुंच नहीं सकता। वहां जाना मुश्किल कार्य हो सकता है। इसलिए हस्तिनापुर में कैलाश पर्वत की अनुकृति तैयार की गई है, ताकि यहां जाकर हर कोई उसे महसूस कर सके।
इसी के अनुरूप कैलाश पर्वत मंदिर काफी भव्य बना हुआ है। मंदिर के निर्माण में संगमरमर पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है। परिसर का हरा भरा वातावरण मन मोह लेता है। कैलाश पर्वत का निर्माण जैन मुनि श्री 108 शांति सागर जी महाराज के परम सानिध्य में हुआ है। यह सभी श्रद्धालुओं के लिए खुला हुआ रहता है।
इस
मंदिर के निर्माण में दिल्ली और मेरठ के जैन समाज के व्यापारियों का बड़ा योगदान
है। मंदिर प्रांगण में लिखे गए शिलापट्ट के अनुसार दिल्ली निवासी और लंदन प्रवासी
मोती लालजैन ने अपने परिवार के साथ इस मंदिर के निर्माण के लिए बड़ी राशि दान में
दी है।
कैलाश
पर्वत तक जाने के लिए सुंदर सीढ़ियों का निर्माण कराया गया है। इसके हर मंजिल में
मंदिर निर्मित हैं। पर जब आप सबसे ऊपर पहुंचते हैं तो आदिनाथ की विशाल प्रतिमा के
दर्शन होते हैं। इसकी ऊपरी मंजिल से पूरे हस्तिनापुर का सुंदर नजारा दिखाई देता
है। ऊपर पहुंच कर इतना आनंद आता है कि जल्दी नीचे आने की इच्छा ही नहीं होती।
इस
मंदिर में एक जिन तोरण द्वार और चार तोरण द्वार का निर्माण किया गया है। परिसर में
पार्श्वनाथ जिनालय, श्रीमलिनाथ समवशरण और त्रिमूर्ति जिनालय
का निर्माण कराया गया है। सिंह द्वार के दोनों तरफ स्वागत कक्ष बने हुए हैं। मंदिर
परिसर में लगे सूचना पट्ट पर श्रद्धालुओं से आग्रह किया गया है कि यहां आने पर
विचारों की शुद्धता बनाए रखें।
ऐरावत हाथी से दर्शन - मंदिर परिसर में विचरण करने के लिए ऐरावत हाथी की सुविधा उपलब्ध है। मामूली सा शुल्क देकर आप हाथी पर सवारी करते हुए मंदिर का नजारा कर सकते हैं। वास्तव में यह हाथी एक ट्रैक्टर के इंजन से संचालित होता है। पर बच्चों को इस पर बैठने में आनंद आता है।
मंदिर
परिसर में सुंदर पार्क भी बना हुआ है। इस पार्क में जाने के लिए भी थोड़ा सा
प्रवेश टिकट है। मतलब कि आप अपनी हस्तिनापुर यात्रा के दौरान कई जैन मंदिरों के
दर्शन कर सकते हैं। यहां पर कुछ मंदिर श्वेतांबर समाज द्वारा भी निर्मित किए गए
हैं। जैन धर्म में श्वेतांबर समाज और दिगंबर समाज के विचारों में थोड़ा सा अंतर
पाया जाता है।
कहां ठहरें - यात्रियों की
सुविधा के लिए हस्तिनापुर
तीर्थ में जम्बूद्वीप के पास ठहरने के लिए आधुनिक सुविधायुक्त 200
कमरे,
50 से अधिक डीलक्स फ्लैट एवं कई गेस्ट हाउस
(बंगले) बने हुए हैं। यहां पर निःशुल्क शाकाहरी भोजनालय की सुविधा भी उपलब्ध है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( KAILASH PARVAT, JAIN TEMPLE, ADINATH MURTI, HASTINAPUR, MERRUT)
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