काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एएनडी
हॉस्टल में जुलाई 1990 की दुपहरिया में मदन दूबे के आने और अचानक हुई मारपीट की घटना
के बाद प्रथम वर्ष के छात्रों रैगिंग तो बंद हो गई। पर इसके बाद द्वितीय वर्ष के
छात्रों ने इमरजेंसी बैठक बुलाई। इस बैठक में ये तय हुआ कि मारपीट इस घटना का कारण
विद्युत प्रकाश मौर्य है, तो उसका सोशल बायकाट किया जाए। कोई भी सेकेंड ईयर का
छात्र उससे बात नहीं करेगा। साथ ही प्रथम वर्ष के छात्रों को भी ऐसी ही ताकीद दी
गई। सेकेंड ईयर के छात्र मान रहे थे कि हॉस्टल का माहौल खराब करने में मेरी भूमिका
है।
अगले
दिन से मैंने देखा कि मैं जिस भी सेकेंड ईयर के छात्र को नमस्ते करूं तो कोई जवाब
नहीं दे रहा है। हाल चाल नहीं पूछता। मेरे सहपाठियों का भी व्यवहार बदल चुका था।
मेरे एक सहपाठी थे ज्ञान प्रकाश। सैनिक स्कूल तिलैया के पूर्व छात्र। वे शुरू से
ही बोल्ड और अपनी मर्जी पर चलने वाले थे। उन्होंने मुझे सोशल बायकाट वाली बात
बताई। ज्ञान ने कहा, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तो तुमसे बात करूंगा। मेरे रूम
पार्टनर राजीव भी कमरे में मुझसे बात करते बाहर नहीं। मेस के टेबल पर भी मुझसे कोई
बात नहीं करता था। हां, तृतीय वर्ष के सभी छात्र मुझसे बातें करते थे। पर प्रशांत
झा समेत तमाम छात्रों का व्यवहार बदल चुका था। वे सेकेंड ईयर के छात्रों के कहने
में आ गए थे। बाद में कुछ सहपाठी बातें करते भी तो बचते बचाते हुए, जैसे कोई
सीनियर देख न ले।
मैं
अपने सीनियरों को यह समझाने में असफल रहा है कि मैंने जाकर मदन दूबे से शिकायत
नहीं की थी, बल्कि वे खुद मुझसे मिलने आए थे और मारपीट की घटना प्रायोजित नहीं
बल्कि अनायास घटी थी। सोशल बायकाट के दौर में मेरे कमरे में हमारे स्थानीय अभिभावक
के बेटे अजय शुक्ला आते थे। सेकेंड ईयर के छात्रों में धर्मचंद चौबे और नीकेश
सिन्हा ऐसे थो जो मुझसे बातें करते थे मेरा हाल चाल लेते रहते थे। इस सामाजिक
बहिष्कार के दौर में मुझे कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा था। कुछ दिन बीते। फ्रेशर्स
डे की तैयारी होने लगी थी। सभी सेकेंड ईयर के छात्रों ने तय किया कि बायकाट जारी
रहेगा। पार्टी में विद्युत को नहीं बुलाया जाएगा। जब मुझे पता चला तो मैंने भी तय
कर लिया कि पार्टी वाले दिन मैं हॉस्टल में अपने कमरे में नहीं रहूंगा। बल्कि हॉस्टल
छोड़कर अपने मामाजी के घर डीजल रेल कारखाना परिसर में चला जाऊंगा।
पर जब तृतीय
वर्ष के भैया लोगों को ये बात पता चली कि विद्युत को फ्रेशर्स पार्टी में नहीं
बुलाया जा रहा, तो उन लोगों ने फरमान सुना दिया। हम तृतीय वर्ष के छात्र भी पार्टी
में नहीं जाएंगे। न ही कोई आर्थिक सहयोग करेंगे। तो पार्टी कुछ दिन टल गई। तृतीय
वर्ष के छात्रों के बायकाट से पार्टी फीकी हो जानी थी। सेकेंड ईयर के छात्रों ने
फिर बैठक की और तय किया कि विद्युत माफी मांग ले तो बात बन सकती है।
हमारे
तृतीय वर्ष के भैया शिशिर सिन्हा, जो आजकल देश के बड़े आर्थिक पत्रकार हैं मेरे
कमरे में आए माफी का प्रस्ताव लेकर। सेंकेड ईयर के छात्रों के प्रतिनिधि बनकर। तब
कमरे में मैं राजीव और अजय शुक्ला थे। हमने साफ शब्दों में कहा, हम आपका पूरा
सम्मान करते हैं, पर मैंने कोई गलती नहीं की तो क्षमाप्रार्थी बनने का भी कोई मतलब
नहीं। इस दौरान मेरी ओर से अजय शुक्ला और मुखर हो गए। शिशिर सिन्हा वापस चले गए।
सेकेंड ईयर के छात्रों की फिर बैठक हुई। इस बैठक में तय हुआ पार्टी होगी, विद्युत
को भी आमंत्रित किया जाएगा। साथ ही पार्टी वाले दिन से सोशल बायकाट भी खत्म माना
जाएगा।
एएनडी
हॉस्टल के लॉन में वह खुशनुमा शाम थी। हमारे वार्डन आनंद शंकर सिंह, सह वार्डन एके
कौल आदि मौजूद थे। मंच पर जाकर एक एक करके सभी प्रथम वर्ष के छात्र अपना परिचय दे
रहे थे। छात्रों के नाम अंग्रेजी वर्णानुक्रम से पुकारे जा रहे थे। तो मेरा नंबर
सबसे अंत में आना था। जैसे ही मैं मंच की ओर बढ़ा। मेरे नाम पर खूब तालियां बजीं।
जब मैंने अपना परिचय खत्म किया तो तालियां और तेज हो गईं। तो उन सभी सीनियर
साथियों और सहपाठियों का दिल से आभार। मन में कोई मैल न तब था न आज है। तो मैंने
अपना परिचय कुछ यूं दिया था – मैं विद्युत प्रकाश मौर्य। लंगट सिंह कॉलेज
मुजफ्फरपुर से इंटर विज्ञान की पढ़ाई की है। भगवान महावीर की जन्मभूमि, महात्मा
बुद्ध की कर्मभूमि और नृत्यांगना आम्रपाली की रंगभूमि वैशाली से आया हूं...
बाद
में मेरी सेकेंड ईयर के सभी छात्रों से बातचीत होने लगी। सभी लोगों से मधुर संबंध
भी बन गए। उसके बाद हॉस्टल में कई आयोजन हुए जिसमें मैं बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया
करता था। वे तमाम बातें यादों की पोटली में हैं। आज त्रिभुवन यादव, धर्मचंद चौबे,
नीकेश सिन्हा जैसे तमाम मेरे सीनियर सम्मानित पदों पर कार्य कर रहे हैं। हां पार्थ
बनर्जी से दो साल बाद बातचीत हुई। तब हम पुरानी बातें भूला चुके थे।
जब भी किसी से गिला रखना, सामने अपने आईना रखना।
- - विद्युत प्रकाश मौर्य -vidyutp@gmail.com
विद्युत जी छा गए हज़ूर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteरोचक संस्मरण...अंग्रेजी की मसल है All's well that ends well....यही बात इस संस्मरण से भी चरितार्थ होती है....
ReplyDeleteहां जी
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