बात जब सफर चले तो उसके साथ अगर
शायरी के रंग हो तो सफर और भी सुहाना हो जाता है। तमाम शायरों ने सफर को केंद्र
में रखकर कुछ नज्म कहें हैं। कुछ शेर पढ़े हैं। तो आइए नजर डालते हैं कुछ ऐसी ही
पंक्तियों पर। सबसे पहले सफर की महिमा बताता ये लोकप्रिय शेर ...
सैर कर दुनिया की गाफिल
जिंदगानी फिर कहां
जिंदगी अगर रही भी तो नौजवानी
फिर कहां
(ख्वाजा मीर दर्द )
राहे शौक कहती है ढूंढते रहिए
एक अनजान सा रास्ता है अभी।
राह राह के तालिब हैं पर ये सह
पड़ते हैं कदम,
देखिए क्या ढूंढते हैं और क्या
पाते हैं हम।
सफर की हद है वहां तक की कुछ
निशान रहे
चले चलो की जहां तक ये आसमान रहे।
चले चलो की जहां तक ये आसमान रहे।
( राहत इंदौरी)
राह के पत्थर से बढ के,
कुछ
नहीं हैं मंजिलें
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफर जारी रखो
रास्ते आवाज़ देते हैं, सफर जारी रखो
(राहत इंदौरी)
कुछ पंक्तियां ऐसी होती हैं जो आपके अंदर जोश जगाती हैं। सफर जारी रखने के लिए उत्साह भरती हैं। तो जरा इन पर गौर फरमाइए ना...
थक गये पैर लेकिन हिम्मत नहीं
हारी,
जज्बा है जीने का, सफर है अभी जारी।
जज्बा है जीने का, सफर है अभी जारी।
जीवन के सफर की बस इतनी कहानी
हर मोड़ नया और हर राह अनजानी।
एक पल रुकने से दूर हो गई मंजिल
सिर्फ हम ही नहीं रास्ते भी
चलते हैं।
मुसाफिर चलते चलते थक गए मंजिल
नहीं मिलती
कदम के साथ बढ़ता जा रहा है
फासला जैसे
अजब पहेलियां हैं मेरे हाथों की
इन लकीरों में;
सफर तो लिखा है मगर मंजिलों का निशान नहीं।
सफर तो लिखा है मगर मंजिलों का निशान नहीं।
मंजिल की जुस्तजू से पहले किसे
खबर थी
रास्ते में पेंच होंगे और रहनुमा
भी न होगा।
कभी ख्वाबों में, कभी तेरे दर पे, और कभी दर बदर।
ए गमे जिंदगी तुझे ढूंढते ढूंढते, हम कहां भटक गए।
किसी को घर से निकलते ही मिल गई
मंजिल
कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में
रहा
जो सफर की शुरुआत करते हैं, वही तो मंजिल को पार करते हैं
चलने का हौसला तो रखो, मुसाफिर का रास्ते भी इंतजार करते हैं।
जितना कम सामान रहेगा।
उतना सफर आसान रहेगा।
( नीरज)
है थोड़ी दूर अभी सपनों का नगर
अपना।
मुसाफिरों अभी बाकी है कुछ सफर
अपना।
(जावेद अख़्तर)
इस सफर में नींद ऐसी खो गई।
हम न सोए रात थक कर सो गई।
(राही मासूम रजा)
सफर पर मशहूर शायर जनाब निजा फाजली साहब ने कई उम्दा और अत्यंत अर्थपूर्ण पंक्तियां कहीं हैं।
अपनी मर्जी से कहां अपने सफर के
हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर
के हम हैं
(निदा फाजली)
सफर में धूप तो होगी, जो चल सको
तो चलो
सभी हैं भीड़ में, तुम भी निकल
सको तो चलो
(निदा फाजली)
न जाने कौन सा मंजर नजर में
रहता है
तमाम उम्र मुसाफिर सफर में रहता
है
(निदा फाजली)
मुमकिन है सफर हो आसां अब साथ
भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो,
कुछ
हम भी बदल कर देखें
(निदा फाजली)
- प्रस्तुति- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
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