दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरुद्वारा शीशगंज वाली लाइन में ही एक मिठाइयों को दुकान हुआ करती थी-घंटेवाला। मैं 1995 से नियमित रूप से दिल्ली रहने आया। 1996 से 1998 के बीच अक्सर चांदनी चौक के फिल्म मार्केट में रिपोर्टिंग के लिए जाना पड़ता था। इस दौरान मैंने पहली बार घंटेवाला की दुकान के बारे में सुना। पुराने फिल्म प्रचारक ओम प्रकाश पूछते थे – घंटेवाला गए कभी...वहां के समोसे खाए। तो मैं पहुंच गया घंटेवाला। दुकान के साइन बोर्ड पर लिखा है – घंटे वाला शाही हलवाई। स्थापित 1790 जी हां 1790 घंटेवाला की मिठाई की दुकान मुगलकालीन थी।
अंग्रेजों के दिल्ली में राजधानी बनाने से बहुत पहले
से मिठाइयों की दुकान यहां पर संचालित थी। वह मुगल शासक शाह आलम का शासन काल था (1760
से 1806 ) जब चांदनी चौक में घंटेवाला ने मिठाइयों की दुकान शुरू की।
( GHANTEWALA, SWEET SHOP, CHANDNI CHAWK, 1790-2015 )
मैं 1999 में दिल्ली छोड़कर चला
गया। साल 2007 में एक बार फिर दिल्ली वापस आया तो मेरे बेटे ढाई साल के थे। हम
परिवार के साथ जब भी चांदनी चौक इलाके में खरीददारी करने जाते तो घंटेवाला की
दुकान पर जरूर रुकते। उनकी मिठाइयां थोड़ी मंहगी जरूर थीं, पर यहां कुछ खाते पीते ये गर्व होता कि हम एक अति प्राचीन
ऐतिहासिक दुकान की बनी मिठाइयां खा रहे हैं। मुझे घंटेवाला का कराची हलवा खूब पसंद
आता था। तो मेरे बेटे वहां के बर्फी और समोसे खाया करते थे।
देश
की सबसे पुरानी मिठाई की दुकान – घंटेवाला देश
की सबसे पुरानी मिठाइयों की दुकान थी। इस दुकान को आमेर से आए सुखलाल जैन ने शुरू
किया था। इसके बाद आठ पीढ़ियां इस परंपरा को आगे बढ़ाती रहीं। दुकान का नाम
घंटेवाला रखे जाने को लेकर कई तरह की बातें कही जाती है। कहा जाता है कि ये दुकान एक
विशाल घंटे के नीचे खुली थी। इसलिए इसे घंटेवाला कहा जाने लगा। दूसरी कहानी ये है
कि सुखलाल जैन शुरुआत में ठेले पर गलियों में घूमघूम कर मिठाइयां बेचा करते थे। इस
दौरान वे लोगों का ध्यान खींचने के लिए घंटा बजाया करते थे। इसलिए उनका नाम ही
घंटेवाला पड़ गया। बाद में इसी नाम से उन्होने अपनी दुकान शुरू की।
घंटेवाला अपनी दुकान के साइनबोर्ड
पर शाही हलवाई यूं ही नहीं लिखते थे। दरअसल यह दुकान मुगल बादशाहों को केटरिंग
सुविधा उपलब्ध कराती थी। इनकी बनाई मिठाइयां बादशाह के घरों में जाती थी। मुगल
बादशाह शाह आलम खुद अपने नौकरों को भेजकर यहां से मिठाइयां मंगाते थे।
देसी
घी की मिठाइयां - घंटेवाला देसी घी में
मिठाइयां बनाते थे। उन्होंने मिस्री मावा से शुरुआत की थी। उनकी दुकान सोहन हलवा,
कराची हलवा, पिस्ता, पतीशा जलेबी आदि मिठाइयों के लिए प्रसिद्ध थी। जब 1857 में
सिपाही विद्रोह हुआ तो चांदनी चौक पहुंचे विद्रोहियों ने भी घंटेवाला की मिठाइयों
का स्वाद लिया था। घंटेवाला के सोहन हलवा के स्वाद की प्रसिद्धि खाड़ी देशों तक
पहुंच गई थी।
ब्रिटिश काल में घंटेवाला की
लोकप्रियता का ये आलम था कि लोग जब चांदनी चौक खरीददारी करने जाते तो घंटेवाला से
मिठाइयां खरीदकर अपने घर ले जाते थे।
मोरारजी देसाई से राजीव गांधी तक यहां आए - किसी जमाने
में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई घंटेवाला में जलेबी खाने आया करते थे। इस
दुकान पर प्रख्यात गायक मोहम्मद रफी और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी आ चुके
थे।
हिंदी
फिल्मों में घंटेवाला - साल 1954 में
एक फिल्म बनी थी चांदनी चौक। इस फिल्म में अभिनेत्री मीना कुमारी कुछ दृश्य
घंटेवाला की दुकान के बाहर फिल्माए गए थे। फिल्म के हीरो थे शेखर। इस फिल्म का
टाइटिल गीत था - जमीं भी वही है वही आसमां, मगर वह दिल्ली की गलियां की बात कहां...
फिल्म के निर्देशक थे बीआर चोपड़ा।
बंद
हुई 225 साल पुरानी दुकान - पर साल 2015 के
जुलाई में ऐतिहासिक घंटेवाला की दुकान बंद हो गई। कुल 225 सालों तक दस पीढ़ियों से ज्यादा के
लोगों को अपनी मिठास का एहसास कराने वाली दुकान इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन गई।
वे अपनी दुकान का टैग लाइन लगाते थे – 200 साल पुरानी मीठी परंपरा। घंटे वाला के
आखिरी मालिक थे सुशांत जैन। उन्होंने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा कि ये एक
मुश्किल फैसला था। घटती बिक्री के कारण हमें दुकान बंद करनी पड़ रही है।
चांदनी चौक में तमाम पुरानी
दुकानें और भवन अब भी दिखाई दे जाते हैं। वह टाउन हॉल, वही दाना चुगते कबूतरों का
झुंड, मेट्रों स्टेशन से बाहर निकलते पार्क। पर अब चांदनी चौक जाने पर घंटेवाला की
कमी काफी खलती है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
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