बड़ागांव का तीसरा आकर्षण है श्री तीस चौबीसी जैन मंदिर। इस मंदिर में जैन धर्म के 24 तीर्थकरों की 72 -72 मूर्तियां यानी कुल 720 मूर्तियां स्थापित की गई हैं। जैन मंदिरों में यह विश्व की अनुपम कृति मानी जाती है। इस मंदिर का शिलान्यास 12 दिसंबर 2010 को हुआ। दस गोलाकार श्रंखला ये मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इस मंदिर के ढाई दीप में पांच भरत, पांच ऐरावत, कुल दस क्षेत्रों के भूत भविष्य और वर्तमान काल के 720 तीर्थंकरों की मूर्तियां स्थापित की गई हैं।
ठीक बीच में साढे 13 फीट ऊंची
भगवान पार्श्वनाथ नाथ की काले पत्थर की बनी विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। इस
मंदिर का निर्माण भी आचार्य श्री विद्या भूषण सन्मति सागर जी महाराज की प्रेरणा से
हुआ है। दिगंबर जैन परंपरा में माना जाता है कि इस मंदिर की प्रतिमाओं के दर्शन
मात्र से करोड़ो उपवासों का फल मिलता है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो द्वारपालों का सुंदर प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर क्षेत्रफल में बहुत बड़ा नहीं है पर कलात्मकता में मंदिर का जवाब नहीं। यहां पहुंच कर मन को अदभुत शांति मिलती है। महावीर जयंती और अन्य जैन धर्म के उत्सव के समय मंदिर में काफी भीड़ उमड़ती है।
मंदिर के प्रवेश द्वार पर दो द्वारपालों का सुंदर प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर क्षेत्रफल में बहुत बड़ा नहीं है पर कलात्मकता में मंदिर का जवाब नहीं। यहां पहुंच कर मन को अदभुत शांति मिलती है। महावीर जयंती और अन्य जैन धर्म के उत्सव के समय मंदिर में काफी भीड़ उमड़ती है।
श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र बड़ागांव – बड़ा गांव का प्रमुख आकर्षण है श्री पार्श्वनाथ अतिशय क्षेत्र मंदिर। इस मंदिर में भगवान श्री पार्श्वनाथ की पद्मासन में सुंदर प्रतिमा स्थापित की गई है। इस प्रतिमा के चारों तरफ सोने की जालीदार नक्काशी है। मंदिर के गर्भ गृह में सुंदर दरबार सजा हुआ है। इतना ही नहीं पूरे मंदिर के भवन में सुंदर नक्काशी का काम देखने को मिलता है। बड़ागांव का यह प्राचीन जैन मंदिर है जिसका हाल में पुननिर्माण और सौंदर्यीकरण किया गया है। जैन श्रद्धालुओं के बीच ये मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है।
मंदिर के बगल में भगवान महावीर
पर्यटन उद्यान का निर्माण किया गया है। मंदिर से लगा हुआ एक प्राकृतिक चिकित्सा
केंद्र भी है। मंदिर के आसपास चाय नास्ते कुछ दुकानें भी हैं। मंदिर के बगल में
श्रद्धालुओं के वाहनों के लिए निःशुल्क पार्किंग का भी इंतजाम है।
आरती श्री पार्श्वनाथ जी
(बड़ागांव )
ॐ जय पारस देवा,
स्वामी
जय पारस देवा |
आरति हम सब करते-2,
मिले
मुक्ति मेवा ||
बड़ागांव टीले से,
स्वप्न
दिया तुमने-2 |
चमत्कार कर प्रगटे-2,
शरण
लही हमने ||
ॐ जय पारस देवा ||
लक्ष्मण बचे तोप से,
महिमा
जग छायी-2 |
तन निरोग कितनों ने-2,
नेत्र
ज्योति पायी ||
ॐ जय पारस देवा ||
स्याद्वाद गुरुकुल में,
इन्द्र
शीश राजे-2 |
शतक आठ फण छाया-2,
सौम्य
मूर्ति साजे ||
ॐ जय पारस देवा ||
जो भी शरण में आते,
वांछित
फल पाते-2 |
भूत-प्रेत करमों-कृत-2,
संकट
कट जाते ||
ॐ जय पारस देवा ||
स्याद्वाद ध्वज धरती पर,
आपहि
फहराया-2 |
किया समर्पण सन्मति-2,
अनुभव
लहराया ||
ॐ जय पारस देवा ||
ॐ जय पारस देवा,
स्वामी
जय पारस देवा |
आरति हम सब करते-2,
मिले
मुक्ति मेवा ||
ॐ जय पारस देवा ||
1922 में खुदाई में
मिली थी प्रतिमा - बड़ागांव को अतिशय क्षेत्र इसलिए कहा जाता है कि 1922 में खुदाई
के दौरान यहां से भगवान श्री पार्श्वनाथ की एक प्रतिमा प्राप्त हुई थी। इससे साबित
हुआ कि बड़ागांव कभी जैन संस्कृति का केंद्र रहा होगा। यह मूर्ति एक टीले से प्राप्त
हुई थी। जैन परंपरा में बड़ागांव अब देश के प्रमुख धार्मिक स्थलों में शामिल हो गया है।
मां मंसा देवी का प्राचीन मंदिर – बड़ा गांव
में एक हिंदू मंदिर भी स्थित है। मंसा देवी का मंदिर जैन मंदिरों से पहले ही दिखाई
देता है। मंसा देवी मंदिर परिसर का वातावरण बड़ा मनोरम है। परिसर में विशाल वृक्ष
लगे हैं और वातावरण हरा भरा है। कहा जाता
है कि हिमालय से लौटते वक्त लंकापति रावण के हाथ से मां शक्ति बागपत जिले के गांव
रावण उर्फ बड़ागांव में
आकर छूट गई थी।
बड़ागांव से महाभारत और रामायण काल का गहरा नाता माना जाता है। जिस स्थान पर रावण के हाथ से शक्ति छूटी थी, वहीं मां मंशा देवी मंदिर निर्मित है। रावण से रिश्ता होने के कारण बड़ागांव का पुराना नाम है रावण भी है।
बड़ागांव से महाभारत और रामायण काल का गहरा नाता माना जाता है। जिस स्थान पर रावण के हाथ से शक्ति छूटी थी, वहीं मां मंशा देवी मंदिर निर्मित है। रावण से रिश्ता होने के कारण बड़ागांव का पुराना नाम है रावण भी है।
- - विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
सर नमस्कार, सर मंदिर तो हिन्दुओ के ही होते हैं. ये हिन्दू, जैन बोद्ध मंदिर कंहा से हो गए. ये सभी विशाल हिन्दू धर्म का ही अंग हैं. सभी जैन वैश्य बनिया समुदाय का ही एक अंग हैं.
ReplyDeleteपर जैन लोग खुद को हिंदू नहीं मानते,
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