वह साल 1991 के गरमियों के दिन थे।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हमारे सीनियर मदन दूबे की शादी होनी थी। वे मुझसे
पांच साल वरिष्ठ थे। उन्होंने मुझे खास तौर पर आमंत्रित किया। कहा कि शादी में तुम्हे
जरूर चलना है। तो मैं इनकार नहीं कर सका।
मदन दूबे मेरे ही गांव सोहवलिया के रहने वाले हैं। हमारा गांव सोहवलिया खुर्द है तो उनका गांव सोहवलिया कलां। वैसे
दोनों गांव में सिर्फ 500 मीटर की दूरी है। सड़क के इस पार और उस पार। पहले सड़क
नहीं थी वहां छवर हुआ करती थी। छवर मतलब चौड़ी सरकारी जमीन। उसी जमीन पर अब सड़क
बन गई है। पर छवर थी तो वहां एक जामुन का पेड़ हुआ करता था। वहां से हमलोग जामुन
तोड़कर खूब खाते थे। सड़क बन गई पर वह जामुन और उसके आसपास के कुछ पेड़ शहीद हो
गए।
तो बारात जाने के लिए मैं एक दिन पहले अपने गांव
पहुंच गया। लंबे समय बाद अपने पुश्तैनी घर में रहा। अगले दिन दोपहर में बस से बारात जाने वाली थी। गांव
में मेरे चंदेश्वर भैया और दूसरे लोग पूछ रहे थे किस गांव बारात जा रही है। पर
मुझे ये तो पता नहीं था। दूसरी महत्वपूर्ण बात। इस बारात में जाना हमारे गांव के
चाचा लोगों के लिए बड़े आश्चर्य की बात थी। क्योंकि सोहवलिया कलां जिसे दूबे का
सोहवलिया भी कहा जाता है ( हालांकि दूबे के सोहवलिया में दूबे जी लोगों के अलावा बनिया, हरिजन आदि लोगों भी टोला पर दूबे जी लोग बहुतायत हैं) उस गांव से हमारे टोला पर के लोगों का भोज भात का रिश्ता
उन दिनों टूटा हुआ था। कारण क्या था, मुझे नहीं मालूम।
तो मैं दूबे के सोहवलिया में किसी की बारात में जा रहा हूं यह बात गांव के लोगों के गले नहीं उतर रही थी। तो दोपहर के बाद एक बस और कुछ कारों से बारात निकल पड़ी। मुझे सम्मान से बस में जगह मिली। बीएचयू से एक और हमारे सीनियर जीतेंद्र द्विवेदी भी बारात में चल रहे थे। मदन दूबे के पिताजी श्री रंगनाथ दूबे, चाचा दारोगा दूबे आदि से परिचय इसी बारात यात्रा के दौरान हुआ। बारात में कुछ बच्चे बस की छत पर भी सवार हो गए थे।
तिलौथू, अमझोर, बनजारी की ओर - पहले कुदरा फिर सासाराम, फिर डेहरी ओनसोन के बाद बस चल पड़ी डेहरी नौहट्टा मार्ग पर। रास्ते में तिलौथू आया। कभी तिलौथू छोटा सा एस्टेट (राजघराना ) हुआ करता था। इसके बाद बस चल बंजारी की ओर। डेहरी ओनसोन के आगे का ये रास्ता मेरे लिए बिल्कुल नया था। तिलौथू के बाद आया अमझोर। ये रास्ता सोन नदी के पश्चिमी किनारे के साथ साथ चल रहा है। अमझोर के बाद चितौली, करमा फिर बनजारी। बनजारी में कभी सीमेंट का कारखाना हुआ करता था। इस मार्ग पर कभी डेहरी रोहतास लाइट रेलवे भी दौड़ती थी।
तो मैं दूबे के सोहवलिया में किसी की बारात में जा रहा हूं यह बात गांव के लोगों के गले नहीं उतर रही थी। तो दोपहर के बाद एक बस और कुछ कारों से बारात निकल पड़ी। मुझे सम्मान से बस में जगह मिली। बीएचयू से एक और हमारे सीनियर जीतेंद्र द्विवेदी भी बारात में चल रहे थे। मदन दूबे के पिताजी श्री रंगनाथ दूबे, चाचा दारोगा दूबे आदि से परिचय इसी बारात यात्रा के दौरान हुआ। बारात में कुछ बच्चे बस की छत पर भी सवार हो गए थे।
तिलौथू, अमझोर, बनजारी की ओर - पहले कुदरा फिर सासाराम, फिर डेहरी ओनसोन के बाद बस चल पड़ी डेहरी नौहट्टा मार्ग पर। रास्ते में तिलौथू आया। कभी तिलौथू छोटा सा एस्टेट (राजघराना ) हुआ करता था। इसके बाद बस चल बंजारी की ओर। डेहरी ओनसोन के आगे का ये रास्ता मेरे लिए बिल्कुल नया था। तिलौथू के बाद आया अमझोर। ये रास्ता सोन नदी के पश्चिमी किनारे के साथ साथ चल रहा है। अमझोर के बाद चितौली, करमा फिर बनजारी। बनजारी में कभी सीमेंट का कारखाना हुआ करता था। इस मार्ग पर कभी डेहरी रोहतास लाइट रेलवे भी दौड़ती थी।
रोहतासगढ़
से आगे बांदू - बनजारी के बाद हमलोग
बौलिया रोड पर नवाडीह की तरफ बढ़ रहे थे। इसी इलाके में अकबरपुर के पास रोहतासगढ़
का किला भी स्थित है। हमलोग अकबरपुर से आगे बढ़ चुके हैं। ये रोहतास जिले के
रोहतासगढ़ प्रखंड का इलाका है। कैमूर अलग जिला बन जान के बाद भी रोहतास बहुत बड़ा
जिला है। बौलिया के पास एक ऐसी जगह आई जहां पर बस जाकर रुक गई। बताया गया कि बस
यहां से आगे नहीं जाएगी। अब यहां से सबको पैदल चलना होगा। बस आगे इसलिए भी नहीं
जाएगी क्योंकि आगे सड़क नहीं है।
हमें जाना हैं बांदू गांव। ये
सोन नदी के किनारे का गांव है।यह नौहट्टा प्रखंड के अंतर्गत आता है। पंडित जी को लोगों का प्रसिद्ध गांव है। तो पैदल
पैदल कोई चार किलोमीटर चलने के बाद हमलोग बांदू गांव में पहुंच गए। बारातियों के
लिए दो बड़े बड़े तंब यान शामियाना लगे हुए थे। बांदू पहुंचते हुए शाम गहरा गई थी।
तो मैंने बताया था कि बांदू गांव सोन नदी के किनारे है। यहां एक ट्राली मार्ग बना
हुआ है जिससे पहाड़ से पत्थरों की ढुलाई जपला सीमेंट फैक्टरी के लिए की जाती है।
बांदू के सामने सोन नदी के उस पार पलामू जिले का हैदरनगर कस्बा आता है।
रात गहराने के साथ शादी की
रश्में शुरू हो गईं। बारातियों को पहले नास्ता कराया गया, फिर थोड़ी देर बाद भोज
में शामिल हुए हम सारे लोग। दूबे जी के परिवार के रिश्तेदार लोग जो मुझे नहीं
जानते थे सब मेरा परिचय पूछ रहे थे। सबके लिए मेरा बारात में आना सुखद रूप से
आश्चर्यजनक था। बारातियों के लिए एक विशाल शामियाना लगा हुआ था।
तो बारातियों के मनोरंजन के लिए
शादी में गीता रानी की नौटंकी का भी इंतजाम था। गीता रानी रोहतास जिले की उस जमाने
की प्रसिद्ध नौटंकी वाली थी। गीता के साथ नाचने वाली कई और लोगों की टीम थी। देर
रात तक नाच गाने की महफिल जमी रही। अगले दिन बारात का मरजाद था।
मरजाद मतलब की शादी के अगले दिन भी बारात विदाई नहीं होगी। हमारे इलाके के कई
शादियों में पहले मरजाद हुआ करता था। इसका मतलब की आज गई बारात कल के बजाय परसों
गांव लौटेगी। यानी दो रातें लड़की वालों के घर।
आर्थिक रूप से संपन्न लोग ही मरजाद वाली बारात करते हैं। शादियां अक्सर गेहूं कट जाने के बाद गरमियों में होती हैं इसलिए लोगों के पास भी समय होता है। सुबह का नास्ता दोपहर का खाना उसके बाद रात को फिर खाना। दोपहर में फिर गीतारानी के नौटंकी की महफिल जमी। गीता रानी एक के बाद एक फरमाईश वाले भोजपुरी गीत सुनाती रही। कुछ अच्छे गीत तो कुछ द्विअर्थी गाने।
आर्थिक रूप से संपन्न लोग ही मरजाद वाली बारात करते हैं। शादियां अक्सर गेहूं कट जाने के बाद गरमियों में होती हैं इसलिए लोगों के पास भी समय होता है। सुबह का नास्ता दोपहर का खाना उसके बाद रात को फिर खाना। दोपहर में फिर गीतारानी के नौटंकी की महफिल जमी। गीता रानी एक के बाद एक फरमाईश वाले भोजपुरी गीत सुनाती रही। कुछ अच्छे गीत तो कुछ द्विअर्थी गाने।
इस महफिल में कुछ ऐसे लोग भी आ
बैठे थे जो न तो लड़की वाले न लड़के वाले किसी भी तरफ से आमंत्रित नहीं थे। ऐसे
लोग नाच नौटंकी के बारे में सूंघ कर पहुंच जाते हैं। कई लोग तो दस-दस किलोमीटर
पैदल चलकर नाच देखने पहुंच जाते हैं। ऐसे आशिकों को नौटकी टीम से ही जानकारी मिल
जाती है कि अगला प्रोग्राम किस गांव में किसके दरवाजे पर है। दो दिन शादी के दौरान
मदन दूबे बार बार मेरा हाल चाल पूछ रहे हैं। ठीक से खाना क्या न... कोई दिक्कत तो
नहीं है। मुझे मिल रहे इस खास तवज्जो से कुछ उनके रिश्तेदारों को कौतूहल हो रहा
है।
हां मदन भैया की शादी में
दुल्हन घूंघट में आई। पूरी शादी में किसी ने दुल्हन का चेहरा नहीं देखा। संभवतः
मदन भैया ने भी अपनी होने वाली पत्नी की तस्वीर तक पहले नहीं देखी थी। परिवार ने
शादी तय कर दी और वे तैयार हो गए। कन्या पक्ष के लोग टाटानगर में रहते हैं। गांव
में सिर्फ शादी करने आए हैं। परिवार पढ़ा लिखा है पर अभी भी लड़की दिखाने का रिवाज
नहीं है।
अगली रात नाच देखने के बाद सब
लोग शामियाना में सो गए। अचानक सुबह 4.30 बजे ही सबको जगाया जाने लगा। चलिए उठिये
और चल पड़िए। मतलब तीसरे दिन कोई चाय नाश्ता नहीं मुंह अंधेरे बारात विदाई। हमलोग
उजाला होते होते खेतों के उबड़ खाबड़ पैदल रास्ते से होते हुए सड़क तक पहुंच गए जहां
हमारी बस खड़ी थी।
बारातियों को लेकर बस चल पड़ी। कुछ
देर बाद तिलौथू बाजार में बस रुकी। यहां पर लोगों ने चाय-नास्ता किया। फिर आगे बढ़
चले। दोपहर होने से पहले हम अपने गांव सोहवलिया पहुंच चुके थे।
बांदू गांव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – इस गांव से एक शिलालेख मिला था। फ्रांसिस बुकानन ( 1812-13 ) ने अपने यात्रा वृतांत में बांदू शिलालेख का उल्लेख किया है। इस शिलालेख में खरवार राजा प्रताप धवल देव और रोहतासगढ़ पर शासन करने वाले अन्य राजाओं के नाम दिए गए हैं। इस शिलालेख में कुल 11 राजाओं के नाम हैं।
पुल बनाने की मांग - झारखंड के भवनाथपुर के विधायक पूर्व मंत्री भानु प्रताप शाही ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखकर नौहट्टा प्रखंड के बांदू एवम पलामू जिला के हैदरनगर प्रखंड के कबरा कला गांव के बीच सोन नदी पर पुल बनाने का मांग की है। विधायक ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है कि आदिवासियों का प्रमुख तीर्थ स्थल ऐतिहासिक रोहतास गढ़ किला इस पुल से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि कबरा कलां व बिहार के नौहट्टा प्रखंड के बांदु गांव को सोन नदी पर पुल बनाकर जोड़ देने से ऐतिहासिक स्थल रोहतास गढ़ कीला की दूरी झारखंड से 120 किलो मीटर कम हो जाएगी। उन्होंने लिखा है कि पलामू के हैदरनगर, हुसैनाबाद, उंटारी रोड, विश्रामपुर, छतरपुर, ,रमुना आदि के लोगों को बिहार के रोहतास जिला तक जाने के लिए 120 किलो मीटर दूर डेहरी ओन सोन में सोन नदी का पुल है। ( दैनिक भास्कर, 2018 )
बांदू गांव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – इस गांव से एक शिलालेख मिला था। फ्रांसिस बुकानन ( 1812-13 ) ने अपने यात्रा वृतांत में बांदू शिलालेख का उल्लेख किया है। इस शिलालेख में खरवार राजा प्रताप धवल देव और रोहतासगढ़ पर शासन करने वाले अन्य राजाओं के नाम दिए गए हैं। इस शिलालेख में कुल 11 राजाओं के नाम हैं।
पुल बनाने की मांग - झारखंड के भवनाथपुर के विधायक पूर्व मंत्री भानु प्रताप शाही ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिखकर नौहट्टा प्रखंड के बांदू एवम पलामू जिला के हैदरनगर प्रखंड के कबरा कला गांव के बीच सोन नदी पर पुल बनाने का मांग की है। विधायक ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा है कि आदिवासियों का प्रमुख तीर्थ स्थल ऐतिहासिक रोहतास गढ़ किला इस पुल से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि कबरा कलां व बिहार के नौहट्टा प्रखंड के बांदु गांव को सोन नदी पर पुल बनाकर जोड़ देने से ऐतिहासिक स्थल रोहतास गढ़ कीला की दूरी झारखंड से 120 किलो मीटर कम हो जाएगी। उन्होंने लिखा है कि पलामू के हैदरनगर, हुसैनाबाद, उंटारी रोड, विश्रामपुर, छतरपुर, ,रमुना आदि के लोगों को बिहार के रोहतास जिला तक जाने के लिए 120 किलो मीटर दूर डेहरी ओन सोन में सोन नदी का पुल है। ( दैनिक भास्कर, 2018 )
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( SOHWALIA DAYS 12, BARAT, DEHRI, TILAUTHU, AMJHOR, BANJARI, ROHTAS, BAULIA, BANDU, SONE RIVER )
( SOHWALIA DAYS 12, BARAT, DEHRI, TILAUTHU, AMJHOR, BANJARI, ROHTAS, BAULIA, BANDU, SONE RIVER )
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