

इश्क के खंजर से मरते हैं अमीनुद्दीन जो।
जिंदा रहते हैं हमेशा मिस्ले कुतुबद्दीन वो।
चिश्ती परंपरा को दिल्ली पहुंचाया - कुतुबद्दीन बख्तियार काकी से पहले भारत में चिश्ती तरीका राजस्थान के अजमेर और नागौर शहर तक ही सीमित था। कुतुबद्दीन बख्तियार काकी ने दिल्ली में चिश्ती परंपरा को स्थापित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई। मेहरौली में उनकी दरगाह दिल्ली की सबसे प्राचीन दरगाहों में से एक हैं। उनकी मजार पर हर साल विशाल उर्स का आयोजन होता है। यह रबी-उल-अव्वल की चौदहवीं तारीख को मनाया जाता है। तब यहां देश भर से लाखों लोग पहुंचते हैं।

शेरशाह ने बनवाया भव्य प्रवेश द्वार - महान शासक सासाराम के शेरशाह सूरी ने संत की मजार के पास एक भव्य प्रवेश द्वार बनवाया था। जबकि बहादुर शाह प्रथम ने यहां मोती मस्जिद का निर्माण कराया। मोती मस्जिद में सुंदर नक्काशी देखी जा सकती है। इस मजार पर सभी धर्म के लोग चाहे वे हिंदू , मुस्लिम, सिख और ईसाई क्यों न हों मत्था टेकने पहुंचते हैं। खास तौर पर हर गुरुवार को यहां जायरीनों की भीड़ ज्यादा देखने को मिलती है। लोग मजार पर सुर्ख गुलाब के फूल चढ़ाते हैं।
कुतुबद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पर सालों भर अकीदतमंदों की भीड़ उमड़ती है। यहां पर आपको रोज ही मेले जैसा माहौल नजर आएगा। दरगाह की ओर जाने वाली गली में दोनो तरफ दुकानें सजी हुई नजर आती हैं। न सिर्फ देश के कोने कोने से बल्कि दुनिया के कई मुल्कों से जायरीन यहां पर इबादत करने के लिए पहुंचते हैं।

शेरशाह ने बनवाया भव्य प्रवेश द्वार - महान शासक सासाराम के शेरशाह सूरी ने संत की मजार के पास एक भव्य प्रवेश द्वार बनवाया था। जबकि बहादुर शाह प्रथम ने यहां मोती मस्जिद का निर्माण कराया। मोती मस्जिद में सुंदर नक्काशी देखी जा सकती है। इस मजार पर सभी धर्म के लोग चाहे वे हिंदू , मुस्लिम, सिख और ईसाई क्यों न हों मत्था टेकने पहुंचते हैं। खास तौर पर हर गुरुवार को यहां जायरीनों की भीड़ ज्यादा देखने को मिलती है। लोग मजार पर सुर्ख गुलाब के फूल चढ़ाते हैं।

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