चोपता में सुबह 5
बजे
मैं जग गया हूं। हल्का उजाला हो रहा है। राजकमल होटल भी खुल चुका है। मैं अपने
होटल वाले से जाकर नहाने के लिए गर्म पानी की मांग करता हूं। वे बाल्टी भर गर्म
पानी दे देते हैं। यह पानी लकड़ी के चुल्हे पर गर्म किया गया है। यहां खाना भी
लकड़ी के चुल्हे पर ही बनाया जा रहा है। मैं स्नान करने के बाद बाहर सड़क पर टहलने
लगता हूं। मेरे बाकी साथी तैयार हो रहे हैं। चोपता उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले
में 2680 मीटर या 8790
फीट
की ऊंचाई पर बसा है। यह मूल रूप से अति सुंदर बुग्याल के लिए जाना जाता है। बुग्याल
मतलब ऊंचाई पर बने चारागाह।
यहां सुबह-सुबह हमारी मुलाकात
जमशेदपुर से आए चार बुजुर्ग साथियों से होती है। मूल रूप से भोजपुर जिले के
जगदीशपुर के रहने वाले राम अवध राय टाटा स्टील से रिटायर हुए हैं। भोजपुर मेरे
ननिहाल का जिला है। तो उन लोगों से बात करके घर जैसी आत्मीयता महसूस हो रही है। उनके
चार साथियों में एक की उम्र 75 साल
के पार है। वे बताते हैं कि हमलोग 1991 से
लगातार उत्तराखंड के पहाड़ों की यात्रा पर आ रहे हैं। जब पहली बार हम चोपता आए थे
तो यहां एक चाय की दुकान के अलावा कुछ नहीं था। उसी दुकान में हमलोग कंबल लेकर सो
गए थे। अब तो यहां कई होटल बन गए हैं।
मैंने जानना चाहा कि जमशेदपुर
से हर साल उत्तराखंड के पहाड़ों की यात्रा ही क्यों आप कहीं और भी तो जा सकते हैं।
राय साहब का एक शब्द का जवाब था – फिटनेस।
वे कहने लगे – हम पहाड़ों की
पर ट्रैकिंग सफलतापूर्वक कर सकें इसलिए सालों भर अपना खान पान और शारीरिक श्रम इस
तरह का रखते हैं कि पहाड़ों की यात्रा कर सकें। वास्तव में वे लोग मुझे बुजुर्ग
नहीं नौजवान लगे। उत्साह और ऊर्जा से लबरेज जवान। मुझे केदारनाथ के मार्ग पर वह
गुरुग्राम के आईटी कंपनी में काम करने वाला युवा याद आया जो 32
साल
की उम्र में केदारनाथ जाने में खुद को अक्षम पा रहा था। जबकि उसकी माता जी आराम से
चढ़ाई कर रही थीं। जमशेदपुर वाले ये चारों मित्र अपनी उम्र को मात दे रहे हैं।
वे चारों नौजवान तुंगनाथ की
यात्रा से लौट चुके हैं। अब वापस जाने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच हमारे साथी
तैयार होकर आ गए हैं। हमलोगों ने सुबह-सुबह चाय पी। एक –एक
डंडा लिया और तुंगनाथ महादेव की ट्रैकिंग के लिए निकल पड़े। होटल के ठीक सामने से
ट्रैकिंग का मार्ग शुरू होता है। यहां प्रवेश द्वार बना है। वहां घंटी भी लगी है।
सुबह के पौने सात बजे हैं। हम साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई पर निकल पड़े हैं।
मंदिर की ओर जाने वाला रास्ते
पर पत्थर बिछा हुआ है। यहां पर भी लोग घोड़े से जाते हैं। यहां घोड़े वाले 700
रुपये
मंदिर जाने तक का मांग रहे हैं। कुछ काले कुत्ते भी हमारे साथ चल रहे हैं। वास्तव
में ये कुत्ते तुंगनाथ की ट्रैकिंग में गाइड की भूमिका निभाते हैं। इस रास्ते में
एक नेपाली युवक मिला। वह काठमांडु के एक दैनिक अखबार का पत्रकार है। वह अपनी इन
यात्राओं को अपने अखबार में प्रकाशित करा रहा है। तकरीबन एक किलोमीटर चलने के बाद
एक चाय नास्ते की दुकान आई। इस दुकान के बगल में विशाल बुग्याल है।
इस बुग्याल में कुछ भैंसे और
दूसरे जानवर चारा खा रहे हैं। चाय की दुकान में कुछ सैलानियों की तस्वीरें लगी
हैं। दुकान मुझसे खाने और चाय आदि के बारे में पूछते हैं मैं उन्हें सम्मान से मना
कर देता हूं। थोड़ी देर बैठने के बाद मैं फिर आगे चल पड़ा। अकेला अकेला...साथी
पीछे छूट गए हैं। मंदिर से पहले रास्ते में दो जगह और दुकानें आती हैं। इन दुकानों
में खाने पीने के अलावा विश्राम करने का भी इंतजाम है।
तकरीबन तीन घंटे की ट्रैकिंग के
बाद हमलोग तुंगनाथ महादेव मंदिर के पास पहुंच गए हैं। मंदिर से पहले चाय नास्ता और
प्रसाद की कई दुकाने हैं। इन दुकानों में रात्रि विश्राम का भी इंतजाम है। कई लोग
जो तुंगनाथ मंदिर से एक किलोमीटर आगे चंद्रशिला तक जाते हैं। वे शाम को आकर
तुंगनाथ मंदिर के पास रुक जाते हैं। फिर सुबह सूर्योदय से पहले एक किलोमीटर का
ट्रैक करके सूर्योदय देखने चंद्रशिला तक जाते हैं। ( आगे पढ़िए - तुंगनाथ महादेव के दर्शन)
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और ये रहा तुंगनाथ की ट्रैकिंग के दौरान हमारा गाइड। |
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विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
( CHOPTA, TRACK, BUGYAL, TUNGNATH MAHADEV, UTTRAKHAND, KEDAR 19 )
( CHOPTA, TRACK, BUGYAL, TUNGNATH MAHADEV, UTTRAKHAND, KEDAR 19 )
जवान बुजुर्गों की जीवन शैली प्रेरणादाई है। बढ़िया लेख।
ReplyDeleteधन्यवाद
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