एक बार फिर आम का मौसम आ गया
है। आम के बारे में
हर किसी की पसंद खास होती है। पर पूर्वी दिल्ली से महज 20 किलोमीटर दूर बागपत जिले का रटौल गांव खुशबूदार आमों के
लिए अपनी खास पहचान रखता है। रटौल के आम के स्वाद का जबदस्त पाकिस्तान कनेक्शन भी
है। हालांकि अब यहां पहले जैसे विशाल बाग नहीं रहे पर रटौल के शानदार आमों की विरासत अभी भी बची हुई है।
रटौल का आम आकार में छोटा होता
है, पर यह अपनी खास तरह की खुशबू और स्वाद के लिए जाना जाता है। रटौल गांव में
दशहरी, चौसा, लंगड़ा समेत कई तरह के आम के बाग हैं। लोग बताते हैं कि अब बगीचे कम
हो गए हैं। पर अभी भी बचे हुई है आम की खुशबू। जून की भीषण गरमी के बीच जब आप रटौल से होकर
गुजरेंगे तो सड़क के दोनों तरफ बाग से तोड़े गए कच्चे और पके हुए आम बिकते नजर
आएंगे। यहां आप 20 रुपये किलो से लेकर 60 रुपये किलो तक के आम खरीद सकते हैं। आपको
पेड़ के पके हुए टपका आम भी यहां मिल सकते हैं। हालांकि यहां बिकने वाले आम को भी काफी
लोग अब आम को गैस से पकाने लगे हैं।
आजादपुर के फल मंडी में रटौल के
आम की काफी मांग रहा करती थी। पर अब यहां सिमटते बगीचों के कारण रटौल का आम दूर तक
नहीं जा पाता है।
एक
दर्जन प्रजातियां - रटौल में करीब एक दर्जन
प्रजाति के आम हुआ करते हैं। आपको दशहरी, सरौली, दुधिया गोला, रामकेला,
गुलाब जामुन, चौसा, सुरमई, नीमच, रटौल, मक्शूश, लंगड़ा, जुलाई वाला, खशुलखश जैसे
प्रजाति के आम देखने को मिल जाएंगे।
रटौल में सन 2000 से पहले तक 13
हजार हेक्टेयर में आम के बाग थे, जिसका रकबा अब सिमटता जा रहा है। फिर भी अभी रटौल
और आसपास में दो हजार हेक्टेयर में आम के बाग हैं। आसपास के गांव मुबारक पुर, बड़ागांव,
गौना आदि के बाग भी रटौल पट्टी में आते हैं।
सन 1937 में रटौल के आम उत्पादक
इसरारुल हक ने लंदन में बेहतर प्रजाति के लिए पुरस्कार प्राप्त किया था। सन 1995
में जावेद अफरीदी को दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में लगे आम मेले में पुरस्कार
मिला।
रटौल का पाकिस्तान कनेक्शन –
पाकिस्तान में भी अनवर रटौल नामक आम की किस्म होती है। बताया जाता है कि भारत के
विभाजन के समय जो मुस्लिम पाकिस्तान गए उनमें से एक अबरारूल हक सिद्दकी अपने साथ
आम का पौधा लेते गए। उस किस्म का नाम उन्होंने रटौल दिया। पाकिस्तान के मुल्तान
क्षेत्र में होने वाला ये आम काफी लोकप्रिय है। पर वह मूल रूप से बागपत के रटौल का
है।
ईंट भट्टों से बुरा असर – वैसे तो 1975 में इस क्षेत्र को राज्य सरकार ने
आम पट्टी घोषित कर दिया था। पर रटौल के आम के संरक्षण संवर्धन के लिए कभी प्रयास
नहीं किए गए। पिछले दो दशक में रटौल और आसपास के क्षेत्र में आम के उत्पादन पर ईंट
भट्टों के कारण बुरा असर पड़ा है। ईंट भट्टों से निकलने वाले प्रदूषण के कारण आम
में अब पहले जैसे बौर नहीं आ पाते। इसलिए कई आम उत्पादक अब आम से मुंह मोड रहे
हैं। एनसीआर के विस्तार का दंश रटौल झेल रहा है। पिछले कुछ सालों में रटौल में आम के बाग का रकबा घटने लगा है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( RATAUL, MANGO, BAGPAT, UP )
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( RATAUL, MANGO, BAGPAT, UP )
अच्छी जानकारी दी।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteपहली बार नाम जाना इस आम का।
ReplyDeleteरोचक जानकारी।
उत्सुकता होने लगी आम के बाग देखने की।
जरूर देखिए ऐतिहासिक गांव है। यह दसवीं 11वीं सदी में मूर्ति कला का बड़ा केंद्र भी था
Deleteमुंह में पानी भर आया रसीले आम देखकर
ReplyDeleteएक नई किस्म देखने को मिली, खाने के नाम पर तो दिल्ली अभी दूर है समझो!
बहुत अच्छी प्रस्तुति
चाह रखिए, खाने को भी मिल जाएगा
Deleteसब फलों का राजा आम ,किसे नही भाता है आम ,अच्छी जानकारी प्राप्त हुई ,धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद
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