तुंगनाथ मंदिर से चोपता बस
स्टैंड तक वापसी में दोपहर के 12 से
ज्यादा बज गए हैं। हमलोग
अब चोपता से रुद्र प्रयाग की तरफ जाना चाहते हैं। हमारे
होटल वाले ने बताया कि अब तो ऊखी मठ तक जाने वाली बस ही मिलेगी जो दो से ढाई बजे
के बीच गोपेश्वर से आती है। कुछ और लोग उस बस का इंतजार कर रहे हैं। पर थोड़ी देर
बाद पता चला कि गोपेश्वर से आने वाली बस आज नहीं आएगी। क्योंकि उस बस को गोपेश्वर
में एक भी यात्री नहीं मिले। मतलब पहाड़ों पर ऐसा भी होता है कि सवारी नहीं मिली तो गाड़ी नहीं चलेगी।
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ऊखी मठ बस स्टैंड के आसपास का बाजार |
बस नहीं आने की बात सुनकर हमारी चिंता बढ़ गई। इसी बीच संयोग से एक टैक्सी आ गई जो शेयरिंग में यात्रियों को गौरी कुंड तक ले जा रही है। पर हमारे बाकी साथी तो अभी तुंगनाथ से वापस ही नहीं आए हैं। मैंने टैक्सी वाले आग्रह करके उन्हें थोड़ा रुकने को कहा। वे भी यात्रियों के इंतजार में रुकने को तैयार हो गए। इस बीच हमने राजकमल होटल का हिसाब-किताब भी चुकता कर दिया। उनका सहयोगपूर्ण व्यवहार याद रहेगा।
हमलोग 150 रुपये प्रति सवारी पर तय करके ऊखी मठ के लिए चल पड़े। अगर शेयरिंग टैक्सी नहीं मिलती तो आरक्षित टैक्सी के लिए ज्यादा धन देना पड़ता। इसलिए इस टैक्सी का आ जाना हमारे लिए सस्ता ही पड़ा। चोपता से ऊखी मठ का रास्ता बड़ा मनोरम है। पूरा रास्ता जंगल से होकर गुजरता है। इस सड़क पर आम तौर पर रात में वाहन नहीं चला करते। क्योंकि सड़क पर जंगली जानवरों के आने का खतरा रहता है।
चोपता से उखी मठ के मार्ग में
जगह जगह कैंपिंग साइट आते हैं। काफी सैलानी इधर आकर तंबू में रहना पसंद करते हैं।
इसके लिए पैकेज बने हुए हैं। कई तंबुओं की ऑनलाइन बुकिंग भी होती है। इस टैक्सी ने
हमें ऊखी मठ बाजार में छोड़ दिया। हालांकि वह गुप्त काशी तक जा रही है। हमारे पास
इस टैक्सी से कुंड तक जाने का विकल्प था। पर हम ऊखी मठ बाजार में ही उतर गए।
उखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर - जब केदारनाथ में कपाट बंद हो जाते है तो विग्रह मूर्ति पुजारी के साथ ओंकारेश्वर मंदिर ऊखी मठ में लाई जाती है। छह माह कपाट बंद के दौरान इसी मूर्ति की अर्चना कर केदारनाथ जी को पूजा समर्पित की जाती है। केदारनाथ धाम में रावल गुरू स्थान (गद्दी) में विराजमान रहते हैं। उनके पांच शिष्यों में से एक हर वर्ष केदारनाथ में पूजा करता है। कपाट बंद होने के बाद जब भगवान केदारनाथ शीतकालीन प्रवास पर उखी मठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर आ जाते हैं, तब भी पूजा का यही क्रम जारी रहता है।
ऊषा मठ बिगड़कर हुआ उखी मठ - ओंकारेश्वर मंदिर के बारे में
लोककथाओं के अनुसार, बाणासुर
की बेटी ऊषा यहां रहती थीं। वास्तव में ऊषा मठ का नाम ही बिगड़ कर उखी मठ हो गया है। ऊषा बहुत सुंदर थी और मां पार्वती की अनन्य भक्त थी। ऊषा का विवाह अनिरुद्ध से हुआ था। भगवान कृष्ण को रुक्मणी से दस पुत्र हुए, जिसमें प्रद्युम्न सबसे बड़े थे। प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध हुए जिनका विवाह
बाणासुर की बेटी ऊषा से हुआ। उखी मठ के ओंकारेश्वर मंदिर में ऊषा और ऊषा की विश्वासपात्र सखी चित्रलेखा की भी मूर्ति मंदिर में स्थापित की गई है। इस मंदिर में ऊषा के पति अनिरुद्ध, शिव, पार्वती और मांधता की भी मूर्तियां स्थापित हैं।
केदारनाथ का मुख्यालय - ऊखी मठ केदारनाथ मंदिर का
मुख्यालय है। साल के छह महीने जब बर्फबारी के दौरान जब केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद होते हैं
तो केदार बाबा की डोली यहां पर आती है। बद्री केदार से जुड़े सारे मंदिरों के
पुजारियों का मुख्यालय यहीं है। इस तरह से बाबा केदारनाथ का स्थायी मंदिर यहां स्थित
है। केदारनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी का स्थायी आवास भी ऊखी मठ में ही रहता है। केदारनाथ के पंडों का भी स्थायी पता ऊखी मठ का होता है।
मध्य महेश्वर यात्रा का मार्ग - पंच केदार में से अगर मध्य महेश्वर की यात्रा पर आपको जाना हो तो उसका पड़ाव भी उखी मठ ही हो सकता है। उखी मठ से रांसी तक वाहन से जाया जा सकता है। श्रद्धालुओं को रांसी से 25 किलोमीटर की पदयात्रा करनी पड़ती है। आम तौर पर इस यात्रा पर जाने में दो दिन लगते हैं। जाने और आने में उखी मठ से आमतौर पर चार दिन लगते हैं। केदारनाथ की तुलना में यह यात्रा थोड़ी मुश्किल है।
(आगे पढ़िए - ऊखी मठ से रुद्र प्रयाग वापसी का सफर )
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विद्युत प्रकाश मौर्य – vidyutp@gmail.com
( KEDARNATH-22 , CHOPTA TO UKHI MATH, CAMPING SITES )
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