हमलोगों ने सुबह पौने सात बजे
तुंगनाथ मंदिर के लिए पदयात्रा शुरू की थी। हौले-हौले साढ़े तीन किलोमीटर की आनंददायक ट्रैकिंग करते हुए तीन घंटे बाद दुनिया के सबसे ऊंचे महादेव के मंदिर में पहुंच गए
हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले दोनों तरफ कुछ नास्ते, भोजन
के लिए दुकानें बनीं हुई हैं। इन दुकानों में रात्रि विश्राम का भी इंतजाम है।
तुंगनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार
से पहले बायीं तरफ एक कुंड नजर आता है। इस कुंड में भी पितरों का पिंडदान करने की
परंपरा है। एक सज्जन यहां पर पिंडदान कराते हुए मिले। कुंड से जल निकालने के लिए
तांबे के विशाल कलश रखे हुए हैं। मंदिर में जल चढाने के लिए भी बहुत सारे तांबे के
कलश रखे हुए दिखाई दिए।
तुंगनाथ महादेव का मंदिर 3850 मीटर की ऊंचाई पर चन्द्रनाथ पर्वत पर स्थित है।
यह ऊंचाई के लिहाज से दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। यह उखीमठ से 30 किलोमीटर दूर उखीमठ-गोपेश्वर मार्ग पर स्थित है। शिव का यह मंदिर पत्थरों
से निर्मित है। इसके गुंबद में लकड़ी के सोलह दरवाजे का सुंदर नक्काशी वाला काम
देखा जा सकता है। इसमें चारों दिशाओं में चार-चार दरवाजों का निर्माण कराया गया
है। मंदिर के गर्भ गृह में शिवलिंगम के अलावा कई देवी देवताओं की मूर्तियां
स्थापित है।
तुंगनाथ मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंगम
के पीछे आदि गुरु शंकराचार्य की 2.5 फीट लंबी
मूर्ति स्थापित की गई है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर गणेश जी की बेहद सुंदर प्रतिमा
है। गणपति के हाथों में मोदक की कटोरी है। प्रवेश द्वार के बाहर नंदी की प्रतिमा
काले पत्थर की बनी हुई है। मंदिर के प्रवेश द्वार के ऊपर छत पर शेर की प्रतिमा बनी
हुई है।
ताम्र पात्र में जलाभिषेक - मंदिर में आने वाले श्रद्धालु यहां रखे तांबे के लोटे से जल लाकर शिव लिंगम पर जलाभिषेक करते हैं। आप चाहें तो मंदिर में मौजूद पुजारी गण से पूजा भी करवा सकते हैं।
शिव मंदिर के बगल में माता
पार्वती का सुंदर मंदिर अलग से निर्मित किया गया है। मंदिर के अंदर माता पार्वती
की पत्थर की बनी प्रतिमा स्थापित की गई है। मंदिर परिसर में पत्थर के बने छोटे
छोटे कई और लघु मंदिर बनाए गए हैं।
वन देवी और भूतनाथ का मंदिर – तुंगनाथ
मंदिर से थोड़ा ऊपर जाने पर पहले भैरव मंदिर फिर वन देवी और भूतनाथ के मंदिरों का
निर्माण कराया गया है। श्रद्धालु इन सभी मंदिरों के दर्शन करते हैं। मंदिर परिसर
में शिव पार्वती और दूसरे देवताओं की आप और भी कई कलात्मक मूर्तियां देख सकते हैं।
तुंगनाथ मंदिर की कथा - ऋषि
व्यास ने पांडवों को बताया कि वे अपने स्वयं के रिश्तेदारों की हत्या के दोषी हैं।
वे तभी पापमुक्त होंगे जब भगवान शिव न उनको माफ करेंगे। तो पांडवों ने शिव की तलाश
शुरू कर दी। भगवान शिव उनसे मिलने को टालते रहे। इसलिए भगवान भूमिगत हो गए। बाद
में उनके शरीर के अंग पांच अलग-अलग जगहों पर उठे। उन पांच जगहों पर शिव भगवान शिव
के पांच भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ है जिन्हें पंच केदार कहा जाता है। तुंगनाथ में
भगवान शिव के दोनों हाथ हैं। केदारनाथ में उनकी पीठ रुद्रनाथ में , उनका सिर कल्पेश्वर में उनके बाल और मदमहेश्वर में उनकी नाभि मानी जाती है।
मंदिर का समय – मंदिर श्रद्धालुओं के दर्शन के सुबह सूर्योदय के साथ ही खुल जाता
है। मंदिर में भगवान को भोग लगाने का समय दोपहर एक से दो बजे के बीच का है। इस दौरा मंदिर दर्शन के लिए बंद रहता है। संध्या
आरती शाम को साढ़े सात बजे होती है। आप चाहें तो मंदिर के आसपास की दुकानों में रात्रि विश्राम कर आसपास के नजारों का पूरा आनंद ले सकते हैं।
छह माह तक कपाट बंद रहते हैं - तुंगनाथ मंदिर के कपाट भी केदारनाथ की तरह ही साल के छह महीने तक बंद हो जाते हैं। सर्दियों में यहां कई फीट बर्फ जमी रहती है। इस दौरान भगवान जी को डोली यहां से 19 किलोमीटर दूर मक्खू मठ में चली जाती है। यहां से डोली ले जाने की परंपरा भी काफी रोचक है। यह कई गांवो से होती हुई मठ तक पहुंचती है।
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शानदार पोस्ट ,इसके बारे में मुझे पता ही नही था ,अद्भुत शिव धाम,सचित्र वर्णन के लिए आपका धन्यवाद ,जय भोलेनाथ की
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteक्या बात है नमन करता हूं
ReplyDeleteधन्यवाद जी
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