रुद्र प्रयाग से ऋषिकेश जा रही
बस मे हमने देव
प्रयाग तक का ही टिकट ले रखा है। रुद्र प्रयाग से देव प्रयाग का टिकट 100
रुपये
का है। देव प्रयाग तक ही क्यों। क्योंकि हम देव प्रयाग का संगम देखकर ही आगे बढ़ना
चाहते थे। देव प्रयाग पहुंचने पर वहां के बस स्टैंड में हमलोग अपने सामान के साथ
उतर गए। सामने एक चाय-नास्ते की दुकान है। इसी दुकान पर हमने अपना बैग रख दिया।
इसके बाद संगम का रास्ता पूछ कर हमलोग आगे बढ़ चले।
पतली गलियों से सीढ़ियां उतरते हुए संगम तक जाने का रास्ता है। इस रास्ते में दोनों तरफ दुकानें हैं। कपड़ों की मिठाइयों की। एक दुकान पर विशाल आकार की जलेबी टंगी हुई दिखाई दे गई। रास्ते में देव प्रयाग नगरपालिका परिषद का कार्यालय है। पहाड़ी शहरों में बाजार ज्यादा बड़े नहीं होते। पर इन बाजारों का अपना अलग आकर्षण होता है।
इस तरह मिला देव प्रयाग नाम - देवप्रयाग में भगवान श्रीराम का
नागर और कत्यूर शैली में बना एक प्राचीन मंदिर भी है। इस मंदिर में भगवान विष्णु
की छह फीट ऊंची मूर्ति है। कहा
जाता जाता है सतयुग मे देवशर्मा ऋषि ने यहां कठोर तप किया था। तप से प्रसन्न होकर
भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि मैं यहां सदैव निवास करूंगा। और यह स्थान तुम्हारे
नाम से प्रसिद्ध होगा। इसलिए इस शहर का नाम देव प्रयाग पड़ा। देव प्रयाग शहर को
दक्षिण भारतीय साहित्य में कण्डवेणूकडिनगरम कहा गया है। स्कंद पुराण के केदारखंड
के अनुसार देवप्रयाग सभी प्रयागों में उत्तम तीर्थ है।
कोतवाली के बगल में बाजार से
होते हुए काफी सीढ़ियां उतरने के बाद हमलोग एक झूला पुल पर पहुंच गए। यह झूला पुल
भागीरथी नदी पर बना है। यह पुल 1928 में
निर्मित है। यानी 92 साल
पुराना है। पुल बिल्कुल ऋषिकेश के लक्ष्मण झूला और राम झूला की तरह ही है। इस पुल
के पास लगे निर्देश में लिखा है पुल केवल पैदल यात्रियों के लिए खुला हुआ है। किसी
भी तरह के वाहनों का प्रवेश निषेध है।
इस झूला पुल से भी संगम का
नजारा देखा जा सकता है। भागीरथी नदी की धारा सीधी बहती जा रही है। उसमें बायीं तरफ
से आकर अलकनंदा मिल जाती है। इस संगम पर दोनों नदियों का पानी अलग अलग दिखाई देता
है। भागीरथी का पानी थोड़ा मटमैला है तो अलकनंदा का साफ। देवप्रयाग से पहले तक
पानी के लिहाज से अलकनंदा बड़ी नदी और भागीरथी छोटी। पर पर देवप्रयाग में भागीरथी में
समाहित होकर अलकनंदा अपना अस्तित्व गंगा में मिला देती है। यहां से आगे नदी को नाम
मिलता है गंगा।
हमलोग चलते हुए संगम घाट पर
पहुंच गए हैं। यहां पर मछलियों को खिलाने की लिए आटे की गोलियां मिल रही हैं। हम
कुछ पैकेट गोलियां लेकर संगम पर पहुंच गए हैं। वैसे तो नदी में मछलियां नहीं दिखाई
दे रही हैं। पर संगम पर आटे की गोलियां डालते ही न जाने कहां से मछलियां उन्हे
लपकने के लिए आ जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि मछलियों को दाना देने से नवग्रह की
शांति होती है। संगम पर गंगा जी का छोटा सा मंदिर बना हुआ है। यहां पर एक पुजारी
और एक साधु भी बैठे हुए हैं।
पिंडदान करने की परंपरा
- देव प्रयाग संगम पर भी अपने
पितरों को पिंडदान करने की भी परंपरा है। कहा जाता है कि रावण वध के बाद राजा राम
चंद्र को ब्रह्म हत्या का पाप लगा था। तब उन्होंने देव प्रयाग में कठोर तप किया
था। यहां भागीरथी और अलकनंदा के संगम पर उन्होंने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया
था। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए काफी लोग यहां पर पिंडदान करने आते हैं।
देव प्रयाग संगम पर सुंदर घाट
का निर्माण पोरबंदर गुजरात के निवासी राज रतन सेठ ने 1945
में
कराया था। यहां उनके नाम का पट्टिका लगी है। इस घाट पर सीढ़ियां उतर कर स्नान भी
कर सकते हैं। नदी के जल का बहाव तेज है। पर स्नान करने के दौरान सावधानी के लिए
घाट पर लोहे की चेन भी लगी हुई है। संगम का वातावरण अत्यंत शांत और मनोरम है। यहां
से आगे बढ़ने की तो इच्छा नहीं हो रही है। पर समय चक्र चलता जाता है। तो हमें भी
चलना ही पड़ेगा। तो अब चलें गंगा के संग संग।
देव प्रयाग से हमने ऋषिकेश की
बस ले ली है। पर दस किलोमीटर आगे बस वाले तीन धारा में भोजन के लिए रुक गए। पर
हमारी पेट पूजा की कोई इच्छा नहीं। क्योंकि हमलोग देव प्रयाग में ही पराठे उदरस्थ
कर चुके हैं। आधे घंटे बाद बस फिर चल पड़ी। दोपहर में हमलोग ऋषिकेश बस स्टैंड में
पहुंच गए हैं। वहीं जहां से हमने अपनी यात्रा आरंभ की थी। ऋषिकेश बस स्टैंड के
स्टोर से मैंने बुरांश का जूस खरीद लिया है।
मैं यहां से दिल्ली जाने वाली
उत्तराखंड रोडवेज की वातानूकुलित बस में बैठ गया। इसमें मोहननगर तक का किराया 410
रुपये
है। बस की सीट आरामदेह है। लेग स्पेस भी अच्छा है। ऊपर सामान रखने की जगह भी काफी
है। बस रास्ते में मुजफ्फरनगर से पहले बिकानो फूड कोर्ट में रुकी,
चाय
नास्ता के लिए। मैं फूड कोर्ट का मुआयना करके बिना कुछ खाए पीए आकर बस में बैठ
जाता हूं। यहां पर गौतम बुद्ध की एक सुंदर सी प्रतिमा लगी है। बस एक बार फिर चल
पड़ी है। दिल्ली की ओर तीव्र गति से दौड़ने लगी है।
( केदारनाथ यात्रा को यहीं विराम देते हैं। पर यात्रा जारी है। अब हम चलेंगे जम्मू कश्मीर- माता वैष्णो देवी के दरबार में उसके बाद पटनी टॉप, नत्था टॉप और सानासर लेक )
- ( DEV
PRAYAG SANGAM, ALAKNANDA, BHAGIRATHI, GANGA, TINDHARA, RISHIKESH, UTTTRAKHAND
ROADWAYS, KEDAR-26 )
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