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बारिश के बाद शाम की आरती के समय बाबा केदारनाथ का मंदिर। |
हमलोग तो रात नौ बजे के बाद केदारनाथ पहुंचे थे। तो पहली रात तो रुकना ही था। पर अगले दिन दर्शन के बाद हमारे साथियों को केदारनाथ के अलौकिक और आधात्मिक वातवरण में इतने रम गए कि वे एक दिन और रुकने की बात करने लगे। हमने भी हामी भर दी। इसका लाभ हुआ कि हम शाम की आरती में शामिल हो सके।
केदारनाथ में आवास – केदारनाथ धाम में मंदिर के आसपास आवास की सुविधा
उपलब्ध है। ये आवास अलग अलग पंडा लोगों द्वारा बनवाए गए धर्मशाला हैं। साल 2013 की
आपदा में इनमें से काफी आवास क्षेत्र तबाह हो गए थे। पर अब उनमें से काफी का
पुनर्निर्माण हो गया है। हमारे पहले दिन का ठिकाना बना पंजाब एंड सिंध आवास। इसके
कमरे बड़े और सुंदर बने हुए हैं। वे सुबह स्नान के लिए गर्म पानी भी उपलब्ध करा
देते हैं। पर कमरे का कुछ तय किराया नहीं है। जैसे यजमान उस हिसाब से दान का राशि
तय होती है। इसके प्रभारी पंडित विट्ठल अवस्थी हैं।
वैसे केदारनाथ में कई धर्मशालाओं में आपको 700 से 1000
रुपये में डबल या ट्रिपल बेड का कमरा मिल जाएगा। अगले दिन पंजाब सिंध का कमरा खाली
नहीं था। तो हमने अलीगढ़ हाथरस में जाकर शरण ली। इनके यहां हमें 1000 रुपये में
चार बेड वाला कमरा मिला। केदारनाथ में हिमाचल, पाटलिपुत्र जैसे अलग अलग शहरों के
नाम पर कई आवास क्षेत्र बने हुए हैं। सुविधाओं के हिसाब से इनका किराया तय होता है।
वैसे आप बेस कैंप के बाद रास्ते में कई जगह तंबू वाले
आश्रय स्थल में ठहर सकते हैं। यहां पर 250
से 300 रुपये प्रति व्यक्ति रहने की सुविधा मिल सकती है। यहां पर गढ़वाल
मंडल का अतिथिगृह भी बना हुआ है। इसमें भी डारमेटरी और रहने के लिए कमरे बने हुए
हैं।
भोजन और नास्ता – केदारनाथ
मे भोजन और नास्ता की बात करें तो बहुत ही सीमित विकल्प हैं। मंदिर के पास कुल चार
पांच औसत दर्जे के रेस्टोरेंट हैं। यहां पर आपको 120 से 150 रुपये की खाने की थाली
मिलती है। इससे कम में खाना हो तो 50 रुपये में एक पराठा या फिर मैगी आदि खा सकते
हैं। समोसा और पूरियां भी खाने के लिए मिल जाती है। मंदिर के पास तिवारी
रेस्टोरेंट खाने के लिए सबसे अच्छी जगह है। यहां पर कलाकंद और कुछ मिठाइयां भी मिल
जाती हैं। हमने यहां रात को थाली तो दिन मे पराठे खाए।
मंदिर के पास चाय बिस्किट का लंगर – केदारनाथ के ठंडे मौसम और बारिश के बीच अगर आपको अच्छी सी चाय पीने को मिल जाए तो क्या कहना। और वह भी मुफ्त में। मंदिर के दाहिनी तरफ हर रोज दोपहर 2 बजे से शाम 6.30
बजे तक चाय का लंगर लगता है। यह लंगर महाराष्ट्र की एक संस्था द्वारा लगाया जाता
है। यहां पहुंचने वालों को वे बड़ी श्रद्धा से चाय पीलाते हैं।

चाय के साथ कई बार बिस्कुट भी मिलता है। यहां चाय बनाने की तकनीक काफी अत्याधुनिक है। इसमें वाघ बकरी कंपनी की इंस्टेंट मिक्स से चाय बनाई जाती है। ऐसा मिक्स जिसमें चाय पत्ती, चीनी, दूध सब कुछ मिला हुआ है पहले से ही। चाय का स्वाद बहुत अच्छा होता है। लंगर लगाने वाली संस्था इस चाय के लंगर पर रोज सात से आठ हजार रुपये खर्च करती है। इतनी ऊंचाई पर जहां सारा सामान नीचे से ढोकर लाना पड़ता है। पुणे की एक संस्था द्वारा रोज लंगर चलाना बड़ा ही सम्मानजनक कार्य है। उनकी इस सेवा को नमन। हां स्टाक रहने पर लोगों को कभी कभी चाय के साथ यहां बिस्कुट नमकीन भी मिलता है।

चाय के साथ कई बार बिस्कुट भी मिलता है। यहां चाय बनाने की तकनीक काफी अत्याधुनिक है। इसमें वाघ बकरी कंपनी की इंस्टेंट मिक्स से चाय बनाई जाती है। ऐसा मिक्स जिसमें चाय पत्ती, चीनी, दूध सब कुछ मिला हुआ है पहले से ही। चाय का स्वाद बहुत अच्छा होता है। लंगर लगाने वाली संस्था इस चाय के लंगर पर रोज सात से आठ हजार रुपये खर्च करती है। इतनी ऊंचाई पर जहां सारा सामान नीचे से ढोकर लाना पड़ता है। पुणे की एक संस्था द्वारा रोज लंगर चलाना बड़ा ही सम्मानजनक कार्य है। उनकी इस सेवा को नमन। हां स्टाक रहने पर लोगों को कभी कभी चाय के साथ यहां बिस्कुट नमकीन भी मिलता है।
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