गुप्त काशी रुद्र प्रयाग जिले
का छोटा सा शहर है पर इसका बाजार बड़ा ही सुंदर है। गुप्त काशी उतरने के बाद हमारी
पहली कोशिश थी रात में रुकने के लिए एक होटल ढूंढने की। छोटे से बाजार में यहां पर
कई होटल हैं। आधे घंटे में हमने चार पांच होटल देख डाले। अभी सभी खाली पड़े हैं।
इसलिए उपलब्धता सबमें है। अंत में महाराष्ट्र मंडल के कमरे पसंद आ गए। यहां कमरों
में गीजर का गर्म पानी भी उपलब्ध है।
बिना गर्म पानी वाले कमरे इससे सस्ते भी मिल रहे थे। महाराष्ट्र मंडल का यह गेस्ट हाउस ओओ रुम्स पर भी उपलब्ध है। यहां मराठी श्रद्धालु ज्यादा आते हैं तो मराठी व्यंजन भी यहां मांग पर उपलब्ध है। कमरे में सामान जमाने के बाद हमने गर्म पानी में स्नान किया इसके बाद मंदिर दर्शन के लिए निकल पड़े। काशी विश्वनाथ का मंदिर बाजार से सीढ़ियां चढ़ते हुए तकरीबन आधा किलोमीटर चलने के बाद आता है।
पांडवों ने बनवाया था गुप्रकाशी का काशी विश्वनाथ मंदिर
गुप्तकाशी स्थित काशी विश्वनाथ
मंदिर केदारधाम यात्रा के मार्ग में प्रमुख दर्शनीय स्थल है। रुद्रप्रयाग
जिले में गुप्तकाशी 1319 मीटर या 4327 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। शहर
का वातावरण सालों भर मनोरम रहता है। कभी यहां बर्फबारी भी होती थी। पर 1994 के बाद
गुप्तकाशी में बर्फ नहीं गिरी।
गुप्तकाशी मुख्य बाजार से आधा
किलोमीटर सीढियां चढ़ने के बाद काशी विश्वनाथ मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
केदारनाथ से पहले यह शिव का प्रसिद्ध मंदिर है। मंदिर का वास्तु उत्तराखंड के
दूसरे मंदिरों की तरह ही है।
पहाड़ों की तलहटी में बना सफेद रंग का ये मंदिर बड़ा सुंदर दिखाई देता है। प्रवेश द्वार के ऊपर सुंदर कमल का फूल बना है। गुंबद के ठीक नीचे शेर की मुखाकृति बनी है। मंदिर परिसर में मुख्य विग्रह शिव लिंगम है। परिसर में शिव की दूसरी मूर्ति अर्धनारीश्वर रुप में है। मंदिर के गर्भ गृह के बाहर काले पत्थर से बनी नंदी की सुंदर प्रतिमा है। मंदिर के द्वार पर भैरव की प्रतिमा बनी है। पहाड़ो की तलहटी में बना मंदिर अत्यंत सुंदर है।
गुप्त काशी गांव का इतिहास पांच
हजार साल पुराना मिलता है। इसका पुराना नाम मांडी था। कहा जाता है कि जब पांडव
भगवान शंकर के दर्शन के लिए हिमालय की ओर जा रहे थे तो इस स्थान पर शिव ने
गुप्तवास किया था। इसके बाद पांडवों ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण
कराया। फिर इस स्थान का नाम गुप्त काशी पड़ा। कहा जाता है कि यहीं पर शिव ने
पार्वती को विवाह के लिए स्वीकृति दी थी। बाद में उनका विवाह त्रियुगी नारायण में
संपन्न हुआ। हमारे कई साथियों को इस तरह की कहानियों की सत्यता पर संदेह होता है। पर हिंदू आस्था में हर धार्मिक स्थल के साथ इस तरह की कहानियां जोड़ी गई हैं। इससे उन स्थलों का लोगों की नजरों में महत्व बढ़ जाता है।
गुप्त काशी के काशी विश्वनाथ
मंदिर का प्रबंधन भी बद्री केदार मंदिर समिति ही देखता है। इसके पुजारी की
नियुक्ति भी प्रबंधन द्वारा होती है। मंदिर के पुजारी दक्षिण भारत के होते हैं।
हमने मंदिर के पुजारी जी से देर तक बातचीत की। गुप्तकाशी मंदिर के पुजारी कर्नाटक
के दावणगेरे जिले के रहने वाले हैं। वे 30 साल
पहले ही उत्तराखंड आ गए थे। वे साल में तीन महीने के लिए अपने गांव कर्नाटक जाते
हैं।
गंगा और यमुना की जलधारा - मंदिर परिसर में दो जलधाराओं से
लगातार पानी आता रहता है। इन जलधाराओं के नाम गंगा और यमुना है। ये जलधाराएं एक
कुंड में गिरती हैं। इस कुंड का नाम मणिकर्णिका है। लोग श्रद्धा से इस कुंड का
पानी भर कर ले जाते हैं। यह जलधारा आगे जाकर मंदाकिनी में मिल जाती है। मंदिर
परिसर में कुछ और ऐतिहासिक कलात्मक प्रतिमाएं दिखाई देती हैं।
मंदिर परिसर में अतिथि गृह का
भी निर्माण कराया गया है। मंदिर के आसपास पूजन सामग्री और प्रसाद की दुकानें भी
हैं। मंदिर सूर्योदय से रात्रि नौ बजे तक खुला रहता है। केदारनाथ जाने वाले
श्रद्धालु बड़ी संख्या में गुप्तकाशी रुककर मंदिर के दर्शन करते हैं फिर आगे की
यात्रा पर बढ़ते हैं।
गुप्त काशी मंदिर के दर्शन के
बाद हमलोग भोजन के लिए निकले। महाराष्ट्र मंडल के पास सैनिक भोजनालय है। पर हमलोग
पंजाब सिंध के पास चौहान भोजनालय में खाने के लिए पहुंचे। खाने की मीनू दिल्ली के
ढाबों जैसा ही है।
हमारे होटल के बॉलकोनी ने सामने
उखीमठ दिखाई दे रहा है। रात की रोशनी में उखीमठ शहर दिवाली मनाता हुआ नजर आ रहा
है। दिन भर की यात्रा की थकान है तो बिस्तर पर जाते ही तुरंत नींद आ गई।
बहुत ही सुंदर सचित्र वर्णन ,जय बाबा काशी विश्वनाथ जी को नमन ,जय शिव शिव शम्भु जय हो नमन
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी...
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