कोसी कलां
से मैं नंदगांव के रास्ते पर हूं। रास्ते में मील के पत्थरों को देख रहा हूं जो
नंदगांव की दूरी को कम होता हुआ दिखा रहे हैं। सड़क के दोनों तरफ हरे भरे खेत हैं।
इन्ही खेतों में कभी नंदबाबा की गायें चरती थीं। पर मुझे सड़क के दाहिनी तरफ एक
विशाल प्रतिमा दिखाई देती है। काले रंग की यह शनि की विशाल प्रतिमा है। इतनी विशाल
की कई किलोमीटर दूर से ही दिखाई देती है। शनि आशीर्वाद की मुद्रा में हैं। इस
प्रतिमा के आगे एक प्रवेश द्वार नजर आता है। इस पर लिखा है- शनिदेव मंदिर कोकिल वन
धाम में आपका स्वागत है। यहां प्रवेश द्वार पर बिहारी मंदिर के बारे में भी लिखा
है और प्रवेश द्वार पर श्री कृष्ण की रथ संचालन करते हुए प्रतिमा लगी है। तो मैं
मुड़ जाता हूं कोकिल वन की तरफ। मुख्य सड़क से कोकिल वन की दूरी कोई दो किलोमीटर
है।
मथुरा
जिले में कोसी कलां से पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोकिल वन में कई मंदिरों का
समूह है। देश भर से श्रद्धालु यहां आते रहते हैं। यहां पर श्री रामेश्वर मंदिर,
गोकुलेश्वर मंदिर और गिरिराज मंदिर भी स्थित है। यहां महान संत आचार्य बल्लभाचार्य
महाप्रभु जी की बैठक भी है। मंदिर का परिसर 20 एकड़ में फैला हुआ है। कोकिल वन की
पौराणिक महत्ता है।
कहा
जाता है कि यहां पर शनिदेव ने श्रीकृष्ण के दर्शन पाने के लिए कठोर तप किया था।
उनके तप से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने कोकिला को रूप में उन्हें दर्शन दिए
थे। कहा जाता है कि द्वापर युग में शनिदेव अपने आराध्य श्रीकृष्ण के बाल रूप के
दर्शन के लिए यहां आए थे। पर शनिदेव को नंद बाबा ने रोक लिया। इसके बाद वे नंदगांव
से थोड़ा पहले कोकिल वन में ही रुक कर तपस्या करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर
श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए।
श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया। कहा जाता है कि जो कोकिल वन में शनि के दर्शन करता है उस पर शनि की वक्र दृष्टि नहीं पड़ती है। वैसे तो शनिदेव की छवि एक दंड नायक देवता की है। पर कोकिल वन में उनका रूप एक वर दायक देवता की है। माना जाता है कि यहां शनि देव के दर्शन करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। कोकिल वन में शनिदेव के मंदिर में शनिदेव के अगल बगल में श्रीकृष्ण और राधाजी भी विराजमान हैं।
श्रीकृष्ण ने उन्हें आशीर्वाद दिया। कहा जाता है कि जो कोकिल वन में शनि के दर्शन करता है उस पर शनि की वक्र दृष्टि नहीं पड़ती है। वैसे तो शनिदेव की छवि एक दंड नायक देवता की है। पर कोकिल वन में उनका रूप एक वर दायक देवता की है। माना जाता है कि यहां शनि देव के दर्शन करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। कोकिल वन में शनिदेव के मंदिर में शनिदेव के अगल बगल में श्रीकृष्ण और राधाजी भी विराजमान हैं।
अब कोकिल
वन में शनिदेव का विशाल मंदिर बनाया गया है। मंदिर परिसर के आसपास विशाल पार्किग
की जगह है। शनिवार के दिन तो यहां पर मेले जैसा माहौल रहता है। शनि को श्रद्धालु
तेल चढ़ाते हैं तो यहां हर दुकान पर शनि को चढाने वाला प्रसाद मिलता है। श्रद्धालु
यहां पर शनिवार के दिन भंडारा भी कराते हैं। कोकिल वन आने वाले भक्त सवा कोस की
परिक्रमा भी करते हैं। यहां पर बने सूर्य कुंड में स्नान भी करते हैं।
भगवान
कृष्ण के जीवन काल में और उनकी लीलाओं में कोकिल वन काफी महत्वपूर्ण स्थल है।
इसलिए देश भर से कृष्ण भक्त भी कोकिल वन पहुंचते हैं।
वैसे
तो आज शनिवार नहीं है इसलिए श्रद्धालुओं की ज्यादा भीड़ नहीं है। फिर भी मंदिर के
पास कुछ यात्री बसें आई हुई हैं। मंदिर पास कुछ दुकाने हैं। खाने पीने की और
प्रसाद की। मैं अपनी बाइक पार्क करके शनिदेव के दर्शन करने चला जाता हूं। मंदिर के
बगल में बंगाल से आया श्रद्धालुओं का एक समूह दिखाई देता है। ये लोग हरे राम हरे
कृष्णा संप्रदाय के लोग हैं। वे सुबह का नास्ता कर रहे हैं। मैं एक बार फिर चल
पड़ा हूं आगे। नंदगांव की ओर।
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विद्युत प्रकाश मौर्य – vidyutp@gmail.com
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(
KOKIL VAN , SHANI TEMPLE, KOSI KALAN, NANDGAON )
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