उत्तर
प्रदेश के सबसे पुराने और संग्रह के लिहाज से महत्वपूर्ण संग्रहालयों में से एक है
मथुरा संग्रहालय। यहां पर प्राचीन भारतीय इतिहास के कई कालखंडों की झलक देखी जा
सकती है। सनातन, बौद्ध, जैन धर्म से जुड़ी मूर्तियां और कई तरह के समृद्ध संग्रह
से रूबरु कराता है ये संग्रहालय। आप यहां पहुंचने के बाद दो हजार साल पुरानी दुनिया में पहुंच जाते हैं। इतिहास के कई महत्वपूर्ण अध्याय समेटे हुए है ये नायाब म्युजियम।
मथुरा
संग्रहालय मथुरा जंक्शन रेलवे स्टेशन से तकरीबन दो किलोमीटर की दूरी पर डैंपियर
चौराहा के पास स्थित है। रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से बैटरी रिक्शा से यहां आसानी
से पहुंचा जा सकता है। संग्रहालय की इमारत लाल रंग की वृताकार बनी है। इमारत भी
दूर से आकर्षित करती है। इमारत के परिसर में गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा बनी है।
दरअसल मथुरा कभी बौद्ध संस्कृति का बड़ा केंद्र था। स्वयं गौतम बुद्ध भी मथुरा में पधारे थे। वृताकार इमारत के अंदर एक विशाल आंगन भी है। अगर आप कला के पारखी हैं तो
यहां पर आप मूर्तियों को देखते हुए घंटों गुजार सकते हैं।
पांच रुपये का प्रवेश टिकट - संग्रहालय
में प्रवेश का टिकट महज 5 रुपये का है। मोबाइल से फोटोग्राफी के लिए 20 रुपये का
टिकट लेना पड़ता है। हां, संग्रहालय के अंदर वीडियोग्राफी की मनाही है। मूर्तियों
की तस्वीरें आप चाहें जितनी ले सकते हैं। विदेशी पर्यटकों के लिए शुल्क 25 रुपये
है। वहीं बच्चों के लिए प्रवेश शुल्क 2 रुपये रखा गया है। प्रवेश द्वार पर बैग आदि
जमा करने के लिए लगेज काउंटर भी बना हुआ है। यह सुविधा निःशुल्क है। यह संग्रहालय
उत्तर प्रदेश शासन के अधीन आता है। संग्रहालय के स्टाफ का व्यवहार काफी मित्रवत
है।
मथुरा
के संग्रहालय में जो मूर्तियां संग्रहित की गई हैं वे मथुरा शहर आसपास के गांव से
खुदाई से प्राप्त हुई हैं। यहां पड़ोसी राज्य राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बागपत
जिले के रटौल से प्राप्त मूर्तियों का भी संग्रह है।
काल
खंड के मुताबिक देखें तो यहां सबसे ज्यादा मूर्तियां पहली और दूसरी शताब्दी की दिखाई
देती हैं। संग्रहालय की कुछ मूर्तियां अत्यंत विलक्षण है। कई मूर्तियां ऐसी हैं
जिनका दुनिया भर में दूसरा कोई सानी नहीं है। इस लिहाज से यह उत्तर प्रदेश का बेहतरीन संग्रहालय है।
नाग पूजन की प्राचीन परंपरा के दर्शन आमतौर
पर देश में कहीं भी छठी शताब्दी से पहले की हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां हमें देखने को नहीं मिलती हैं। पर
मथुरा के संग्रहालय में कुछ संग्रह हमें आश्चर्यचकित करते हैं। पहली शताब्दी में बड़वा
गांव मथुरा से प्राप्त भूमि नाग की प्रतिमा देखी जा सकती है। इसमें नाग और नागिन को
दिखाया गया है। इससे लगता है कि नाग पूजन की परंपरा हमारे देश में काफी पुरानी रही है। यह भी संभव है कि तब नाग को
बलिष्ठ जाति रही हो।
नंद और सुंदरी की प्रणय लीला - संग्रहालय में मौजूद कलात्मक मूर्तियों में से एक है दूसरी
सदी में गुरुग्राम हरियाणा से प्राप्त मूर्ति। इसमें अश्वघोष द्वारा
रचित सौंदर्यानंद की कथा का चित्रण है। इसमें नंद और सुंदरी की प्रणय लीला का अंकन
है। इसमें पुरुष स्त्री के बालों को संभालता हुआ दिखाई दे रहा है। वहीं स्त्री
अपने हाथों में दर्पण लिए हुए है। पास में खड़ी दासी के पास श्रंगार पेटिका है। यह
महलों के अंतःपुर का दृश्य प्रतीत होता है।
बापू और नेहरू का अस्थि कलश है यहां पर - यहां पर वह कलश देखा जा सकता है जिससे महात्मा गांधी यानी बापू की
अस्थियों को मथुरा में यमुना नदी में 12 फरवरी 1948 में प्रवाहित किया गया था। इसके
बाद इस कलश को तत्कालीन जिलाधिकारी को सौंप दिया गया था। बाद में यह कलश संग्रहालय में लाकर रख दिया गया।
दूसरा
अस्थि कलश देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का है। सन 1964 में उनकी मृत्यु के बाद उनकी
अस्थियां भी मथुरा में यमुना नदी में प्रवाहित करने के लिए लाई गई थीं। इस कलश को भी मथुरा के
संग्रहालय में संभाल कर रखा गया है। आगे हम शिव और बुद्ध के और कई रूप इस
संग्रहालय में देखेंगे।
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(
MATHURA , MUSEUM, SHIVA, BUDDHA )
आगे पढ़िए - बौद्ध संस्कृति का बड़ा केंद्र हुआ करता था मथुरा
आगे पढ़िए - बौद्ध संस्कृति का बड़ा केंद्र हुआ करता था मथुरा
मथुरा एक बार ही जाना हुआ, वो भी बस से. जिस काम को गए थे, उसमें दम मारने की फुर्सत नहीं मिलती थी, सो कहीं जा नहीं सके. अबकी आपकी पोस्ट का सहारा लेकर घूम लेंगे.
ReplyDeleteजरूर जाएं, अदभुत संग्रहालय है। मैंने इस पर चार पोस्ट लिखे हैं। आगे भी तीन पोस्ट आएंगे
Deleteवाह गुरु आप तो खजाना दिखाए रहे हैं बधाई हो धन्यवाद हो आभार हो
ReplyDeleteआगे भी तीन पोस्ट हैं इसी म्युजियम पर, जरूर पढ़ें
Deleteकोशिश करें कि हम रोज आ पाए इस ब्लॉग पर
ReplyDeleteस्वागत है।
Deleteअच्छी जानकारी मिली मौका मिला तो देखेंगे भी।
ReplyDeleteहां, पवन जी जरूर देखिएगा।
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