मथुरा
की मूर्ति कला शैली का समय पहली शताब्दी से छठी शताब्दी के बीच का माना जाता है।
इस दौरान यहां पर सनातन हिंदू देवी देवताओं, बौद्ध और जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां
बड़े पैमाने पर बनीं। कहा जाता है मथुरा के आसपास जो टीले मिलते हैं, वे वास्तव
में उपासना स्थल और मूर्तिकला के केंद्र थे।
मथुरा
संग्रहालय के महादेव शिव के कई रूपों के दर्शन किए जा सकते हैं। सनातन धर्म में
शिव सबसे प्राचीन देवता हैं।
अदभुत है पंचमुखी शिवलिंगम - मथुरा संग्रहालय में शिवलिंग के निर्माण में अदभुत
प्रयोग दिखाई देता है। पहला शिवलिंग अपने पारंपरिक स्वरूप में है। पर पंचमुखी शिवलिंगम
तो आपको अपनी कलात्मकता से अचरज में डाल देता है। इस चारों तरफ से देखें, हर तरफ
से यहा कुछ नयापन लिए हुए दिखाई देता है। यह पूरी दुनिया में अनूठा है। इसके
प्रत्येक शिवलिंग में शिव की मुखाकृति भी बनी हुई है। इनमें चार मुख चार दिशाओं के सूचक हैं। जबकि उपर का मुख आसमान को इंगित करता है। गुप्तकाल में निर्मित इस मूर्ति को मथुरा के ही सप्त समुद्री कुआं से प्राप्त किया गया था।
आपने शिव की तमाम मूर्तियां देखी होंगी पर कभी आपने शिव की ऐसी मूर्ति शायद न देखी हो। इस मूर्ति में शिव की विशाल मूछे हैं। एक और अनूठा शिवलिंग देखा जा सकता है। इसमें लिंग के उपर शिव की मुखाकृति उभरी हुई है।
इस मुखाकृति में शिव की विशाल मूंछे भी बनाई गई हैं। संग्रहालय के गाइड बताते हैं कि यह विश्व में इस तरह का एकमात्र शिव लिंगम है।
उमा
महेश्वर की प्रतिमाएं - मथुरा संग्रहालय में उमा महेश्वर की भी कई सुंदर प्रतिमाएं हैं। इनमें से
कई प्रतिमाओं में शिव पार्वती प्रणय मुद्रा में हैं। कई में वे आलिंगन की मुद्रा
में हैं। इन प्रतिमाओं में कला का चरमोत्कर्ष देखने को मिलता है। इन प्रतिमाओं
शिल्पकारों की अदभुत कल्पनाशीलता देखने को मिलती है। शिव पार्वती की कई और
मूर्तियां भी यहां पर है जिसमें वे आलिंगन की मुद्रा में हैं।
पांचवी सदी की विष्णु की मूर्ति
- बुद्ध मूर्तियों
के बाद मथुरा के आसपास हिंदू मूर्तियां बनने लगी थीं। यहां पांचवी सदी में बनी
विश्वरूप विष्णु की मूर्ति देखी जा सकती है। यह मूर्ति अलीगढ़ क्षेत्र से प्राप्त
हुई है।
इसके
बाद मध्यकाल में मिली विष्णु की चतुर्भुज स्वरूप की प्रतिमा भी अत्यंत सुंदर है।
इसमें विष्णु ध्यान की मुद्रा में हैं। काले पत्थरों से बनी इस प्रतिमा में उनके एक तरफ सरस्वती तो दूसरी तरफ लक्ष्मी विराजमान हैं। ये मूर्ति मथुरा के पन्नापुर कुआं से मिली
थी।
कान्हा की जीवन लीला भी देखें - यहां पर कृष्ण के जीवन लीला से जुड़ी हुई कुछ बेहतरीन
मूर्तियां भी देखी जा सकती है। नवजात कृष्ण टोकरी में रखकर ले जाते हुए वसुदेव की
पहली सदी की बनी हुई प्रतिमा यहां पर देखी जा सकती है। यह वह काल खंड था जब हिंदू मूर्तियों
के निर्माण की शुरुआत हुई थी। यहां पर गोवर्धन पर्वत को अपने हाथों पर उठाए हुए
कृष्ण की भी एक प्रतिमा आप देख सकते हैं। यह प्रतिमा गुप्तकाल के बाद की है।
जैन धर्म में भी मथुरा अत्यंत
महत्वपूर्ण - मथुरा
शहर का जैन धर्म में भी महत्वपूर्ण स्थान है। जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर
सुपार्श्वनाथ जी की जन्मस्थली है मथुरा। मथुरा के संग्रहालय में कई जैन तीर्थंकरों
की भी मूर्तियां देखी जा सकती हैं।
मथुरा
संग्रहालय में कई विशाल मृदभांड भी देखे जा सकते हैं। ये मिट्टी के बने हुए हैं। कदाचित
इनका इस्तेमाल सामूहिक भोज के मौके पर किया जाता होगा।
मथुरा
की मूर्तिकला मध्यकालीन भारत में भी फलफूल रही थी। मुहम्मद गजनवी के आक्रमण से समय
में यहां की कला चरमोत्कर्ष पर थी। गजनवी ने कई मंदिर तोड़े पर कहा जाता है कि वह
मथुरा की मूर्तियों पर मोहित हो गया। उसने इन मूर्तियों के साथ छेड़छाड़ नहीं की।
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MATHURA, SHIVA, KRISHNA, JAIN )