माता पूर्णागिरी मंदिर के
रास्ते में जितनी भी दुकानें बनी हैं सभी वन विभाग की जमीन पर अवैध तरीके से ही
बनी हैं। किसी के पास यहां जमीन का मालिकाना हक नहीं है। पर रास्ते में पक्के घर,
बिजली कनेक्शन, डिश टीवी पहुंच गया। चाय नास्ते और भोजन की दुकानें खुल चुकी हैं।
श्रद्धालुओं को इनसे सुविधा होती है और स्थानीय लोगों का कारोबार चल रहा है। पर ये
सब कुछ अधिकृत नहीं है। मंदिर के आसपास की चट्टाने कोमल हैं। उनके खिसकने का खतरा
भी बना रहता है।
भारत नेपाल की सीमा - मंदिर के
आसपास की ऊंचाई से शारदा नदी का व्यापक विस्तार नजर आता है। नदी में सालों भर पानी
रहता है। शारदा नदी को काली, महाकाली या काली गंगा के नाम से भी जाना जाता है। ये
नदी नेपाल से निकलती है। यह टनकपुर के पास भारत में प्रवेश करती है। लंबी यात्रा
करते हुए सरयू (घाघरा) नदी में जाकर मिल जाती है। नेपाल में से महाकाली नदी के नाम
से जाना जाता है।
माता पूर्णागिरी के दर्शन के
बाद मैं वापस शहर जाने के लिए तैयार हूं। पर कोई जीप वापस जाने वाली नहीं है
क्योंकि उनके पास सवारियां नहीं है। थोड़ी देर इंतजार के बाद एक निजी कार वाले
जाने लगे। उन्होने मुझे अपनी गाड़ी में जगह दे दी। वे टनकपुर बाजार के ही रहने
वाले हैं। शहर आने पर उन्होंने मुझसे कोई किराया लेने से भी इनकार कर दिया।
अब में रात्रि विश्राम के लिए कोई होटल या धर्मशाला तलाश में निकल पड़ा। लोगों ने पंचमुखी मंदिर धर्मशाला जाने की सलाह दी। पर मुझे उससे पहले सुमंगल धर्मशाला में अच्छा कमरा मिल गया। इसका किराया 250 रुपये है, अटैच लैट-बाथ के साथ वाला कमरा। बड़ा और हवादार भी है। तो मैंने यहीं डेरा जमा लिया। उसके बाद रात्रि भोजन के लिए निकला। राजाराम चौराहा पर अग्रवाल शाकाहारी भोजनालय (मेरठ वाले) के यहां दाल रोटी खाने के बाद वापस आकर सो गया।
अब में रात्रि विश्राम के लिए कोई होटल या धर्मशाला तलाश में निकल पड़ा। लोगों ने पंचमुखी मंदिर धर्मशाला जाने की सलाह दी। पर मुझे उससे पहले सुमंगल धर्मशाला में अच्छा कमरा मिल गया। इसका किराया 250 रुपये है, अटैच लैट-बाथ के साथ वाला कमरा। बड़ा और हवादार भी है। तो मैंने यहीं डेरा जमा लिया। उसके बाद रात्रि भोजन के लिए निकला। राजाराम चौराहा पर अग्रवाल शाकाहारी भोजनालय (मेरठ वाले) के यहां दाल रोटी खाने के बाद वापस आकर सो गया।
सुबह सुबह टनकपुर की सड़क पर
फिर से निकल पड़ा हूं। थोड़ी दूर चलने पर शारदा नदी के तट पर पहुंच गया हूं। यहां
सुंदर घाट बना हुआ है। पर शारदा नदी तेज जलधारा देखकर इसमें स्नान करने का साहस
नहीं हुआ। यहां नदी की चौड़ाई एक किलोमीटर से भी ज्यादा नजर आ रही है। घाट पर जल
पुलिस चौकी भी बनी हुई है।
टनकपुर में बैराज और नहर - टनकपुर
में शारदा नदी पर बैराज बना है। इस बैराज के साथ पुल भी है। शारदा बैराज कुल 26
दरवाजे बने हैं। इसकी चौड़ाई तकरीबन आधा किलोमीटर है। टनकपुर और बनबसा में इस नदी
पर एनएचपीसी का हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट भी है। बनबसा पावर प्रोजेक्ट से 120
मेगावाट बिजली पैदा की जाती है। बनबसा में 40 मेगावाट की तीन इकाइयां लगाई गई हैं।
इस परियोजना की शुरुआत 1993 में हुई थी। टनकपुर में शारदा नदी पर बैराज बनाकर
सिंचाई के लिए नहर निकाली गई है। इससे बड़ा इलाके की सिंचाई हो पाती है।
पंचेश्वर परियोजना प्रस्तावित -
वैसे शारदा नदी पर कई और विद्युत परियोजनाएं निर्माणधीन है। शारदा नदी इस क्षेत्र
में भारत और नेपाल की सीमा बनाती है। टनकपुर और बनबसा के उस पार नेपाल है। बनबसा
के उस पार नेपाल का महेंद्रनगर शहर है। शारदा नदी पंचेश्वर परियोजना प्रस्तावित
है। पर भारत नेपाल के बीच इस परियोजना को लेकर करार नहीं हो सका है। इसलिए ये
परियोजना लटकी हुई है। भारत में शारदा नदी उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में दुधवा
नेशनल पार्क से होकर गुजरती है। यहां पर भी शारदा नदी पर एक बैराज का निर्माण किया
गया है। शारदा नदी यूपी- उत्तराखंड के बड़े हिस्से के लिए वरदान है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( SHARDA RIVER, TANAKPUR, DAM, BORDER, MAHENDRANAGAR, NEPAL )
( SHARDA RIVER, TANAKPUR, DAM, BORDER, MAHENDRANAGAR, NEPAL )
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