शुकदेव जी का आश्रम और विशाल वट
वृक्ष – शुकताल या फिर शुक्रताल का रिश्ता महाभारत कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता
है कि यहीं पर शुकदेव जी ने श्रीमदभागतवत की कथा सुनाई थी। हनुमान प्रतिमा और गणेश
प्रतिमा के दर्शन के बाद हम चल पड़े है स्वामी कल्याण देव जी द्वारा स्थापित
शुकदेव आश्रम की ओर। यह शुकताल का सबसे प्रमुख आकर्षण है। ऐसा माना जाता है कि
शुक्रताल स्वामी शुकदेव जी की साधना स्थली रही है।
इस परिसर में शुकदेव जी का
मंदिर है। साथ ही यहां पर विशाल वट वृक्ष है। इस वृक्ष को महाभारत काल का माना
जाता है। इस पेड़ से कई चमकदार की बातें जुड़ी है। जैसे कहा जाता है कि इसके पत्ते
कभी नहीं सूखते। इस वृक्ष को संरक्षित करके रखा गया है। कहा जाता है कि इसी वृक्ष
के नीचे शुकदेव जी ने 88 हजार मुनियों
को श्रीमदभागवत की कथा सुनाई थी। हालांकि वैज्ञानिक बताएंगे कि क्या ये वृक्ष वाकई
पांच हजार साल से ज्यादा पुराना है। पर श्रद्धालुओं में इस वृक्ष को लेकर अगाध
आस्था है। लोग आकर इस वृक्ष के नीचे सिर झुकाते हैं। आजकल श्रद्धालु यहां आकर
सत्यनारायण की कथा भी करवाते हैं।
स्वामी कल्याण देव जी द्वारा
स्थापित यह मंदिर परिसर अत्यंत मनोरम है। यहां पर समय समय पर देश के प्रमुख
राजनेता पधार चुके हैं। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे कन्हैया लाल मणिक लाल मुंशी,
विवि गिरी यहां आ चुके हैं। यहां पर लिखी कई एक शिलापट्टिका के
मुताबिक देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी 26
नवंबर 1958 को यहां पधारे थे।
लाल बहादुर शास्त्री का खास
रिश्ता – शुकताल से देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी खास
रिश्ता है। सन 1922 से 1926 तक देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर
शास्त्री भी शुकताल में इसी स्थान पर रहे थे। बताया जाता है कि शास्त्री जी ने
यहां चार साल तपस्वी का जीवन व्यतीत किया था।
महान शिक्षा सुधारक स्वामी
कल्याण देव - स्वामी कल्याण देव जी आधुनिक
भारत के महान तपस्वी संत हैं। उन्होंने ज्ञान के मंदिरों की स्थापना की। उन्होंने अपने
जीवन काल में शुकताल समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली और
हरियाणा में तीन सौ से ज्यादा शिक्षण
संस्थानों की स्थापना की। ये सारे संस्थान उन्होंने बिना सरकारी मदद से लोगों के
दान और चंदा लेकर स्थापित किया। वे एक महान संत थे। उनका जीवन अत्यंत सादगी भरा
था। उनका जन्म 21 जून 1876 को बागपत
में हुआ था। वे सौ साल से ज्यादा इस धरती पर रहे।
खेतड़ी में स्वामी विवेकानंद से
मुलाकात ने उनके जीवन को समाज सेवा के लिए प्रेरित किया। अपने जीवन काल में वे
अयोध्या,
हरिद्वार और ऋषिकेश में भी रहे। अपने जीवन में उन्होंने छूआछूत और
जात-पात खत्म करने को लेकर भी काफी काम किया। सन 1982 में
उन्हें पद्मश्री और सन 2000 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म
भूषण से सम्मानित किया। उनका निधन 14 जुलाई 2004 को हुआ। वे नए भारत के निर्माता संत थे। महान संत को नमन। उनकी परंपरा को
स्वामी ओमानंद जी महाराज आगे बढ़ा रहे हैं।
---- विद्युत प्रकाश
मौर्य vidyutp@gmail.com
(SHUKTAL, LONGEST HANUMAN, VAT VRIKSHA,
SWAMI KALYAN DEV )
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