काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सिंह द्वार से आगे बढ़ रहा हूं। सड़क पर काफी कुछ बदल गया है, पर मेरी स्मृतियों में तो 1990-95 का लंका है। अब दोनों तरफ विशाल ऊंचे अपार्टमेंट बन गए हैं। इससे सिंह द्वार का सौंदर्य फीका पड़ने लगा है। तभी मुझे बसंत लाल मौर्य की याद आती है। सड़क के पूर्वी तरफ उनकी पुस्तकों और मैगजीन की दुकान है। कई साल बाद बसंत मिले। उसी पुरानी गर्मजोशी से। उनके साथ ढेर सारी पुरानी यादें ताजा की। उसके बाद आगे।
लंका मतलब बीएचयू के छात्रों की प्रिय जगह।
किताबें, स्टेशनरी कपड़ों आदि शॉपिंग या फिर यूं ही शाम को घूमना। टाइम पास करना
और फिर हॉस्टल लौट जाना। पर अब मैं देख पा रहा हूं लंका काफी बदल गया। खाने पीने
के तौर तरीके भी। अब मोमोज की दुकानें सज गई हैं। हमारे समय में लोग मैंगो शेक
पीया करते थे। अब चाइनीज डिश ने भी दस्तक दे दी है। कुछ दुकानें वही पुरानी हैं।
लंका पर जो स्टेशनरी की दुकाने हैं उनके नाम ड्राइंग इंपोरियम होते हैं। जैसे नंदा ड्राईंग इंपोरियम, विकास ड्राईंग इंपोरियम,
नटराज ड्राईंग इंपोरियम आदि आदि। इनमें से कुछ दुकानें उसी तरह दिखाई दीं। कुछ दूर
आगे चलने पर लंका का प्रसिद्ध स्टूडियो है गोरस स्टूडियो। लंका पर टहलते हुए पुरानी
यादें ताजा करते हुए मैं चार मुहानी पर पहुंच गया हूं। यहां से एक रास्ता दुर्गा
कुंड की ओर चला जाता है तो दूसरा रास्ता अस्सी की तरफ। एक रास्ता सामने घाट की तरफ जाता है।
इसी
चार मुहानी पहलवान की लस्सी की प्रसिद्ध दुकान है। यहां तक किसी जमाने हमलोग
लौंगलता खाने पहुंच जाते थे। कई बार देर रात को हॉस्टल से आकर यहां पर गर्म दूध भी
पीया करते थे। पहलवान की लस्सी गर्मियों में काफी लोकप्रिय रहती है। पर अभी नवंबर
का महीना है। हल्की सर्दी का दौर है। तो इस दौर में लस्सी नहीं यहां पर मिल रही है
मलइयो। बनारस का मलइयो अलग तरह की चीज है। यह काफी हद तक कानपुर के शुक्ला मलाई
मक्खन से मिलती जुलती है।
मिट्टी
के कप में मलइयो की दर है 25 रुपये कप। दाम वाजिब है। तो कप मलइयो पी लेना चाहिए।
हां एक बात और ये ऐसी लस्सी है जो सिर्फ सर्दी के दिनों में ही बनती है। गरमी में
ये अपने रुप में नहीं ठहर सकती। गरमी के कारण तुरंत ही पिघल जाएगी। इसलिए जब आप
सर्दी में बनारस पहुंचे तो मलइयो का स्वाद जरूर लें।
अब
हमें गोदौलिया पहुंचना है। मैं एक बैटरी
रिक्शा पर बैठ गया हूं। यहां से गोदौलिया की ओर जाने के लिए। अस्सी के बाद भदैनी
से पहले रिक्शा गलियों में मुड़ गया। जाम से बचने के लिए। पर गली में भी जाम लगा है। खैर सोनारपुरा मदनपुरा होते हुए मैं
गोदौलिया पहुंच रहा हूं। रिक्शा पर धीमी गति में गोदौलिया की ओर पहुंचना अच्छा लग
रहा है। हमारे बैटरी रिक्शा में कुछ लड़कियां बैठी हैं। उनसे पता चला कि अब आर्य
महिला और वसंता कॉलेज में भी पीजी की पढ़ाई शुरू हो गई है।
जंगमबाड़ी
मठ के थोड़ा आगे जाने पर बैटरी रिक्शा ने रोक दिया। उसने बताया कि आगे नहीं जाएगा।
गोदौलिया चौराहा तक जाने के लिए आपको थोडा पैदल चलना पड़ेगा। ये मेरे लिए खुश होने वाली बात ही थी, क्योंकि इन इलाकों में पैदल चलते हुए बनारस को महसूस करने का अपना अलग ही आनंद है।
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