पोर्ट ब्लेयर में अबरडीन बाजार
के पास ही स्थित है गुरुद्वारा लाइन। इसका नाम गुरुद्वारा लाइन इसलिए है कि यहां
पर स्थित है दीवान सिंह गुरुद्वारा। यह पोर्ट ब्लेयर के प्रसिद्ध गुरु घर में से
एक है। पर ये दीवान सिंह कौन थे जिनके नाम पर यहां गुरुद्वारा बना है।
गुरुद्वारा के ठीक सामने एक
छोटा सा उद्यान बनाकर दीवान सिंह कालापानी की विशाल मूर्ति की स्थापना की गई है।
यहां पर दीवान सिंह का संक्षिप्त परिचय लिखा गया है। अमर शहीद डॉक्टर दीवान सिंह
कालापानी का जन्म 12 मई 1897 को मलोटिया जिला सियालकोट (पंजाब, अब पाकिस्तान में
है) हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार सुंदर सिंह और माता का नाम सरदारनी इंदर कौर
था। उन्होंने 1916 में हाईस्कूल की परीक्षा पास की। आगरा से 1921 में उन्होंने
डॉक्टरी का डिप्लोमा लिया। इसके बाद में इंडियन आर्मी के चिकित्सा सेवा कोर में शामिल
हो गए। उनकी पोस्टिंग ब्रिटिश बर्मा (अब म्यांमार) के रंगून में हुई। बाद में उनका
तबादला अंदमान कर दिया गया।
जापानी भी हमें आजादी नहीं
देंगे - सरदार दीवान सिंह की एक डॉक्टर
के तौर पर सन 1926 में अंदमान निकोबार में नियुक्ति हुई। उन्होंने 1927 में सेल्युलर
जेल में कैदियों की चिकित्सा का कार्यभार संभाला और देश भक्तों की सेवा में अपना
जीवन न्योक्षावर कर दिया। पोर्ट ब्लेयर में रहते हुए उन्होंने भारत की स्वतंत्रता
की आवाज बुलंद की। वे भारतीय स्वतंत्रता संघ के अगुवा भी बने। दूसरे विश्व युद्ध
के दौरान पोर्ट ब्लेयर पर जब जापान ने कब्जा कर लिया तो उन्होंने जापानियों के
खिलाफ आवाज उठाई।
उनका साफ विचार था कि अंग्रेजों ने हमें आजादी नहीं दी, जापानी
भी हमें आजादी नहीं देंगे। उनके विचारों से ज्ञात होता है कि वे वैचारिक रूप से
कितने प्रखर रहे होंगे। जापानियों ने दीवान सिंह को रेडियो पर ब्रिटिश सरकार के
खिलाफ बोलने को कहा, पर उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। दीवान सिंह ब्रिटिश और
जापानी दोनों को ही भारत का दुश्मन मानते थे।

1944 में शहीद हो गए -
दीवान सिंह के उग्र आंदोलन के कारण 23 अक्तूबर 1943 को उन्हें सेल्युलर जेल में गिरफ्तार
कर लिया गया। तकरीबन 82 दिन तक उनके साथ जेल में काफी क्रूर व्यवहार किया गया। लगातार
आंदोलन करते हुए 14 जनवरी 1944 को दीवान सिंह शहीद हो गए। भारत सरकार ने इस भूले
बिसरे शहीद को 1987 में जाकर स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया। यहां पर यह समझने
की बात है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस जापान के सहयोग से अपना आंदोलन चला रहे थे।
पर सरदार दीवान सिंह जैसे लोग जापान से सहयोग लेने पर बिल्कुल सहमत नहीं थे। वे
जापानियों को अंग्रेजों से भी ज्यादा क्रूर मानते थे।
बाद में पोर्ट ब्लेयर में रहने
वाले सिख समाज ने शहीद दीवान सिंह की याद में इस गुरुद्वारा का निर्माण कराया।
गुरुद्वारा का परिसर अत्यंत सुंदर है। प्रार्थना कक्ष के बाहर बैठने की जगह है।
परिसर में रंग बिरंगे फूल खिले हैं।
सन 2011 में दीवान सिंह की याद
मे उनकी एक प्रतिमा की स्थापना की गई है। इस मूर्ति की स्थापना सरदार हरगोविंद पाल
सिंह जो गुरुद्वारा दीवान सिंह के अध्यक्ष हैं, उनके प्रयासों से की गई। सेल्युलर
जेल में क्रूर यातन सहते हुए वतन के लिए प्राण गंवाने वालों में सरदार दीवान सिंह
भी एक बड़ा नाम है। पर उनकी प्रतिमा सेल्युलर जेल के बाहर नहीं है। उसे देखने के
लिए आपको एक किलोमीटर दूर गुरुद्वारा लाइन में आना पड़ेगा।
दीवान सिंह पंजाबी के कवि भी थे। उन्होंने
पंजाबी में दो काव्य संग्रह लिखे। उनका पंजाबी में काव्य संग्रह वगदे पानी 1938
में आया। उनका दूसरा कविताओं का संग्रह अंतिम लहरें 1962 में मरणोपरांत प्रकाशित
हुआ। वे छंदमुक्त कविताएं लिखते थे जिनमें रुमानी पुट हुआ करता था।
सरदार दीवान सिंह जैसे शहीदों
की कहानी को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों
को इस महान शहीद के बारे में पता चल सके।
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( SHAHEED DIWAN SINGH
KALAPANI, PORT BLAIR, GURUDWARA )
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