हमारी
टैक्सी जारवा के वन क्षेत्र से धीरे धीरे गुजर रही है। आगे पीछे और भी वाहन हैं।
मेरे मन में जारवा लोगों को लेकर कई तरह के ख्याल आते जा रहे हैं। अंदमान आने वाले
सैलानियों के लिए जारवा लोग कौतूहल का विषय हो सकते हैं। पर किसी जमाने में अंदमान
द्वीप के बड़े हिस्से पर जारवा लोगों का सम्राज्य हुआ करता था। पिछले कुछ सौ सालों
में हमने उनके इस सम्राज्य में प्रवेश की कोशिश की है। इसका गुस्सा समय समय पर
जारवा लोगों में दिखाई देता है।
आजकल
कदमतल्ला क्षेत्र में पांच किलोमीटर का बफर जोन हैं जहां के जंगलों में जारवा लोग
रहते हैं। इस क्षेत्र में गैर जारवा लोगों का प्रवेश निषेध है। पर इस यात्रा के
दौरान मुझे पता चला कि कदमतल्ला क्षेत्र में रहने वाले जारवा लोगों का स्थानीय
बंगाली सेटलर लोगों के साथ आजकल संवाद स्थापित होने लगा है। ये जारवा लोग हिंदी और
बांग्ला बोलना सीख गए हैं। कई बार वे लोग कदमतल्ला के बाजार में घूमते हुए आ जाते
हैं। दुकानदारों से खाने पीने की चीजें मांगते हैं। फिर लौट जाते हैं। कई बार वे
अपने ओर से जंगलों से निकाला गया शहद आदि स्थानीय लोगों को दे जाते हैं।
इनमें से
कई जारवा लोग कपड़े भी पहनने लगे हैं। टी शर्ट और जींस पैंट भी। मुझे एक बंगाली आटो
वाले ने अपने मोबाइल में एक जारवा की कपड़े पहने हुए फोटो दिखाई। आटो वाले कहने
लगे कि जारवा लोगों को मालूम हो गया है कि भारत सरकार हमारे लिए तमाम तरह सुविधाएं
लेकर आती है। सरकार हमारे ऊपर खर्च कर रही है। वे अब अपने हक और अधिकार मांगने लगे
हैं। आटो वाले कह रहे हैं कि हो सकता है आने वाले दिनों में जारवा लोग जल्द ही
अपना आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड बनाने की मांग भी कर सकते हैं।
कई
बार जारवा लोग किसी खाली ट्रक को कब्जे में ले लेते हैं। फिर उस पर बैठकर कदमतल्ला
से बाराटांग से आगे अपने दूसरे जंगल वाले क्षेत्र में चलने के लिए कहते हैं।
कई
बारे वे सैलानियों की बसों में भी सवार हो जाते हैं फिर कुछ किलोमीटर जाने के बाद
उतर जाते हैं। इसलिए जारवा संरक्षित वन क्षेत्र से गुजरने वाले लोगों को सावधान
रहने की सलाह दी जाती है। अपनी ओर से आप जारवा लोगों से मिलने जुलने की कोशिश कभी
न करें। पोर्ट ब्लेयर के बाजारों में घूमते हुए आपको जारवा दिखाई देते हैं। लकड़ी
के बने हुए नन्हे नन्हे जारवा। लोग इन्हें अपने साथ ले जाते हैं। अपने ड्राईंग रूम
की शोभा बढ़ाने के लिए।
तिरुर
में भी जारवा -
पोर्टब्लेयर से जिरिकटांग के रास्ते में एक कस्बा आता है फेररगंज। फेररगंज से एक
रास्ता जाता है तिरुर की ओर। तिरुर के जंगलों में भी जारवा लोग रहते हैं। ये
संरक्षित इलाका है। कई बार तिरुर के जारवा लोग जिरिकटांग की तरफ भी चले जाते हैं।
हमारे
टैक्सी वाले बड़े मजेदार व्यक्ति हैं। बाराटांग से पोर्ट ब्लेयर का सफर कब खत्म
होने को आया पता ही नहीं चला। हमारी टैक्सी गारचरमा से गुजर रही है। सामने स्टेट बैंक की शाखा दिखाई दे रही है। टैक्सी पोर्ट ब्लेयर के शहरी सीमा में प्रवेश कर
चुकी है। एक दो सहयात्री जिनका होटल रास्ते में था वे उतर गए। टैक्सी वाले ने
हमारे होटल का नाम पूछा फिर उन्होंने हमें ब्लेयर होटल के सामने ले जाकर छोड़
दिया। मतलब हमें बिल्कुल चलना नहीं पड़ा। उनसे कोई किराया तय नहीं हुआ था पर उन्होंने
इस सफर के लिए 800 रुपये मांगे। तीन लोगों के लिए यह किराया वाजिब ही रहा। तो
टैक्सी वाले भाई का धन्यवाद। वर्ना हमें तो बाराटांग से पोर्ट ब्लेयर के लिए किसी
बस में जगह भी नहीं मिल रही थी।
ब्लेयर होटल में हमलोग दोपहर में पहुंचे हैं। इस
बार उन्होंने हमें चार बेड वाला विशाल फेमिली रूम दे दिया है। हालांकि हमारी
बुकिंग तो इससे छोटे कमरे की है। कमरा आकार में काफी बड़ा है। इसमें सोफा भी लगा
है। अलमारियां भी हैं। यूं लग रहा है हम किसी विशाल घर में हों। अब हमें दोपहर के
भोजन पर चलना है। तो चलते हैं न सरदार जी ढाबे पर।
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विद्युत प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
(ANDAMAN, JARWA, BARATANG TO PORT BLAIR )
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