मड वाल्केनो देखने के दौरान
अनादि के दोनों पांव कीचड़ में फंस गए थे। उनकी चप्पल और उसके ऊपर सीमेंट के रंग
का कीचड़ चढ़ चुका था। थोड़ा हमने जंगल के पत्तों से पांव साफ करने की कोशिश की पर
सफलता नहीं मिली। उन्ही कीचड़ सने पांव के साथ वे दो किलोमीटर जंगल में पदयात्रा
करते बाहर निकले। हमें उम्मीद थी बाहर कहीं पानी मिलेगा तब सफाई हो सकेगी। बाहर
निकलते ही एक किसान का घर दिखा। घर के बाहर सुंदर बागीचा और एक तालाब था।
हमने अनादि को कहा इस तालाब में जाकर अपने पांव साफ करो। अनादि बोले घर वाले से पूछ लेना चाहिए। हमने गृहस्वामी को आवाज लगाई। उन्होंने कहा बाल्टी लेकर तालाब से पानी निकालें और सफाई कर लें। पर हमने अनादि को सलाह दी कि ये जो लकड़ी की सीढ़ियां बनी हैं इससे तालाब में उतर जाओ। आखिरी सीढ़ी पर बैठकर आराम से पांव और चप्पल साफ करो। अनादि सफाई में लग गए।
तकरीबन आधा घंटा वे सफाई करते रहे। कभी गांव में नहीं रहे अनादि को कीचड़ मिट्टी के स्पर्श का ज्यादा अनुभव नहीं है पर मेरा बचपन तो गांव में गुजरा है। बारिश के दिनों में हमारे गांव की गलियों में घुटने भर कीचड़ हो जाता है। उसमें उतर कर ही रोज घर से दालान तक आना जाना पड़ता था।
हमने अनादि को कहा इस तालाब में जाकर अपने पांव साफ करो। अनादि बोले घर वाले से पूछ लेना चाहिए। हमने गृहस्वामी को आवाज लगाई। उन्होंने कहा बाल्टी लेकर तालाब से पानी निकालें और सफाई कर लें। पर हमने अनादि को सलाह दी कि ये जो लकड़ी की सीढ़ियां बनी हैं इससे तालाब में उतर जाओ। आखिरी सीढ़ी पर बैठकर आराम से पांव और चप्पल साफ करो। अनादि सफाई में लग गए।
तकरीबन आधा घंटा वे सफाई करते रहे। कभी गांव में नहीं रहे अनादि को कीचड़ मिट्टी के स्पर्श का ज्यादा अनुभव नहीं है पर मेरा बचपन तो गांव में गुजरा है। बारिश के दिनों में हमारे गांव की गलियों में घुटने भर कीचड़ हो जाता है। उसमें उतर कर ही रोज घर से दालान तक आना जाना पड़ता था।
हर घर में बिल्लियां पालते हैं
लोग
जब तक अनादि अपने पांव और चप्पल
साफ कर रहे थे मैं गृहस्वामी विजय विश्वास से बातें करने लगा। उन्होंने चार
बिल्लियां पाल रखी हैं। ये बिल्ली क्यों। दरअसल यहां के किसान धान उगाते हैं। घर
में रखे धान को चूहे खा जाते हैं। बिल्ली पालने का फायदा है कि वह चूहों को खा
जाती है इसलिए बिल्ली धान की संरक्षक है। उनकी चारों बिल्ली आपस में खेल रही हैं।
पर उन्होंने दर्जन भर बत्तख और मुर्गियां भी पाल रखी हैं। कई बकरियां भी हैं और
गाय भी।
घर के आगे बागीचे में आम,
शरीफा, कटहल, केले समेत कई पेड़ हैं। वे कई सब्जियां भी उगा लेते हैं। बताते हैं
कि सिर्फ शहर से आलू लाता हूं कभी कभी। खाना बनाने के लिए चूल्हे जलाने को जंगल से
लकड़ियां मिल जाती हैं। साल भर के लिए जलावन की लकड़ी का स्टाक कर रखा है। उनके
पास एक डोंगी (नाव) भी है। नाव से नाली ( छोटी जलधारा ) से होकर सागर में जाते हैं
और मछलियां पकड़ लाते हैं। इन मछलियों को शहर में बेच आते हैं। उम्र के 59 वसंत
देख चुके विजय विश्वास किसी नौजवान जैसे दिखाई देते हैं। दो पीढ़ी पहले उनका
परिवार बंगाल के उत्तर 24 परगना से यहां जल टेकरी में आया था।
हमलोग उनके बातें कर रहे थे कि अचानक पेड़ से एक पका आम गिरा। मैंने आम उठाया और अनादि को खाने को दिया। विजय ने चाकू और प्लेट लाकर दी आम खाने के लिए। साथ ही कुछ और पके आम लाकर रख दिए जो आज ही पेड़ से गिरे थे। आम खाकर हम चलने को हुए तो विजय भाई ने रुकने को कहा। रसोई में गए और दो ग्लास गाय का दूध लेकर आए। उसके ऊपर छाली की मोटी परत थी। मैं तो पूरा ग्लास गटक गया पर अनादि को इस दूध को पीने में काफी देर लगी। शहर के लोगों को ऐसा खालिस दूध कहां नसीब हो पाता है। मुझे अपना बचपन याद आ गया जब हमारे घर में भी एक गाय हुआ करती थी और कच्चा गोरस पीया करता था।
अंदमान डिगलीपुर शहर से 35 किलोमीटर दूर अपने गांव में विजय विश्वास अपनी जिंदगी से खुश हैं। सरकार पेयजल का टैंकर लेकर रोज गांव में आती है, इसे लोग अपने ड्राम में भर लेते हैं। पर विजय भाई का कोई बैंक खाता नहीं है। मैं उनकी पत्नी से पूछता हूं जन धन खाता क्यों नहीं खोला जीरो बैलेंस वाला। तो वे कहती हैं, पेट सबसे बड़ा बैंक है। सब उसमें ही समा जाता है। हमारी वापसी की बस का टाइम होने वाला है। हम उनसे विदा लेकर चल पड़ते हैं।
हमलोग उनके बातें कर रहे थे कि अचानक पेड़ से एक पका आम गिरा। मैंने आम उठाया और अनादि को खाने को दिया। विजय ने चाकू और प्लेट लाकर दी आम खाने के लिए। साथ ही कुछ और पके आम लाकर रख दिए जो आज ही पेड़ से गिरे थे। आम खाकर हम चलने को हुए तो विजय भाई ने रुकने को कहा। रसोई में गए और दो ग्लास गाय का दूध लेकर आए। उसके ऊपर छाली की मोटी परत थी। मैं तो पूरा ग्लास गटक गया पर अनादि को इस दूध को पीने में काफी देर लगी। शहर के लोगों को ऐसा खालिस दूध कहां नसीब हो पाता है। मुझे अपना बचपन याद आ गया जब हमारे घर में भी एक गाय हुआ करती थी और कच्चा गोरस पीया करता था।
अंदमान डिगलीपुर शहर से 35 किलोमीटर दूर अपने गांव में विजय विश्वास अपनी जिंदगी से खुश हैं। सरकार पेयजल का टैंकर लेकर रोज गांव में आती है, इसे लोग अपने ड्राम में भर लेते हैं। पर विजय भाई का कोई बैंक खाता नहीं है। मैं उनकी पत्नी से पूछता हूं जन धन खाता क्यों नहीं खोला जीरो बैलेंस वाला। तो वे कहती हैं, पेट सबसे बड़ा बैंक है। सब उसमें ही समा जाता है। हमारी वापसी की बस का टाइम होने वाला है। हम उनसे विदा लेकर चल पड़ते हैं।
-
विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( ANDAMAN, MUD VOLCANO, DIGLIPUR, JAL TEKRI )
( ANDAMAN, MUD VOLCANO, DIGLIPUR, JAL TEKRI )
-
No comments:
Post a Comment