मायाबंदर बस स्टैंड में स्थानीय
बसों की समय सारणी लगी है। यहां से पोर्ट ब्लेयर, रंगत, कदमतल्ला आदि के लिए बसे
हैं। मायाबंदर से चैनपुर और करमाटांड के लिए भी रास्ता जाता है। मतलब मायाबंदर इस
मार्ग का प्रमुख पड़ाव है। मायाबंदर में रहने के लिए होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध
हैं।
मायाबाबंदर का बाजार भी अच्छा खासा है। यहां जरूरत की सारी चीजें मिल जाती हैं। हमारी बस में दुकानदारों का कुछ सामान लदा था जिसे कंडक्टर ने मायाबंदर में उतरवाया। यहां पर आनंद बस का बुकिंग काउंटर भी बना हुआ है।
थोड़ी देर रुकने के बाद हमारी बस मायाबंदर से डिगलीपुर के लिए चल पड़ी है। आधे घंटे चलने के बाद रास्ते में समंदर पर बना सड़क पुल आया। इसे ऑस्टिन ब्रिज कहते हैं। आधा किलोमीटर लंबा यह पुल 2002 में बनकर तैयार हुआ। यह पुल ऑस्टिन क्रीक पर बनाया गया है।
थोड़ी देर रुकने के बाद हमारी बस मायाबंदर से डिगलीपुर के लिए चल पड़ी है। आधे घंटे चलने के बाद रास्ते में समंदर पर बना सड़क पुल आया। इसे ऑस्टिन ब्रिज कहते हैं। आधा किलोमीटर लंबा यह पुल 2002 में बनकर तैयार हुआ। यह पुल ऑस्टिन क्रीक पर बनाया गया है।
यहां पर ऑस्टिन जेट्टि स्थित
है। जब ये पुल नहीं बना था तब यहां भी फेरी से रास्ता पार करना पड़ता था। यानी
2002 से पहले डिगलीपुर जाने के लिए तीन बार समंदर को फेरी से पार करना पड़ता था। ऑस्टिन
क्रीक पर बने पुल ने सफर को आसान कर दिया है। इस पुल का असली नाम चेंगप्पा ब्रिज
है। इस पुल को ये नाम वन अधिकारी बीएस चेंगप्पा के नाम पर दिया गया है। चेंगप्पा
ने इस क्षेत्र के वन संपदा के संरक्षण के लिए काफी काम किया था। पर लोग इस पुल को
ऑस्टिन ब्रिज के नाम से ज्यादा बुलाते हैं।
आजकल यहां एक नेचर पार्क का
निर्माण कराया गया है। मायाबंदर रुकने वाले सैलानी इसे देखने आते हैं। लोग यहां
पिकनिक मनाने भी पहुंचते हैं। मायाबंदर में रुककर आप बेतापुर के पास धनीनाला देखने
भी जा सकते हैं। यहां मेंग्रोव देखे जा सकते हैं। बेतापुर में ठहरने के लिए
टूरिस्ट गेस्ट हाउस उपलब्ध है। यहां पर आप करमाटांग बीच, एवीस आइलैंड की भी सैर कर
सकते हैं।
अंडमान ट्रंक रोड पर मायाबंदर
से डिगलीपुर की तरफ जाते समय कलारा जंक्शन से रास्ता बदलकर रामनगर बीच पर भी जाया
जा सकता है। यह बीच भी डिगलीपुर क्षेत्र का प्रमुख आकर्षण है।
हमारी बस तेजी से डिगलीपुर की तरफ भागी जा रही है। जब मंजिल करीब आ जाए तो कई बार वाहनों की गति तेज हो जाती है। वैसा ही कुछ हो रहा है अभी। इधर सड़क की दशा भी पहले से बेहतर है। हमलोग दोपहर के बाद साढ़े तीन बजे डिगलीपुर शहर में प्रवेश कर रहे हैं।
बस ने हमें डिगलीपुर बाजार के चौराहे पर लाकर उतार दिया है। अपने सामान के साथ उतरते हुए हमें काफी राहत मिली है। अब हमें रहने के लिए एक होटल की तलाश है। यहां हमने पहले से ऑनलाइन बुकिंग नहीं कर रखी है। बस स्टॉप के सामने एमवी लॉज है। पर इस लॉज के स्वागत कक्ष पर कोई कर्मचारी मौजूद नहीं है। मैं माधवी और वंश को यहीं छोड़कर आसपास के दूसरे ठिकाने ढूंढने निकल पड़ा।
हमारी बस तेजी से डिगलीपुर की तरफ भागी जा रही है। जब मंजिल करीब आ जाए तो कई बार वाहनों की गति तेज हो जाती है। वैसा ही कुछ हो रहा है अभी। इधर सड़क की दशा भी पहले से बेहतर है। हमलोग दोपहर के बाद साढ़े तीन बजे डिगलीपुर शहर में प्रवेश कर रहे हैं।
बस ने हमें डिगलीपुर बाजार के चौराहे पर लाकर उतार दिया है। अपने सामान के साथ उतरते हुए हमें काफी राहत मिली है। अब हमें रहने के लिए एक होटल की तलाश है। यहां हमने पहले से ऑनलाइन बुकिंग नहीं कर रखी है। बस स्टॉप के सामने एमवी लॉज है। पर इस लॉज के स्वागत कक्ष पर कोई कर्मचारी मौजूद नहीं है। मैं माधवी और वंश को यहीं छोड़कर आसपास के दूसरे ठिकाने ढूंढने निकल पड़ा।
डॉल्फिन चौराहा से पहले हमें
दूर्वा लॉज दिखाई देता है। इसमे 600 रुपये का नॉन एसी और 1200 का एसी कमरा है।
हमें कुछ खास पसंद नहीं आया। तो थोड़ी और तलाश में आगे बढ़े। डॉल्फिन चौराहा से
आगे एक नए बने मार्केट कांप्लेक्स में होटल कार्तिक इन में दाखिल हुआ। होटल का
कमरा बड़ा शानदार है। एसी रूम वे 1500 रुपये में देने को तैयार हो गए। तो तय हो
गया। सामान लेकर हमलोग कार्तिक इन की तीसरी मंजिल पर बने कमरे में जाकर पसर गए।
अरे हमलोग 300 किलोमीटर से ज्यादा का बस का सफर करके यहां तक पहुंचे हैं। इस बीच यात्रा में कितने ठहराव। दो बार समंदर को पार करना। उबड़ खाबड़ सड़के और पीछे की सीट। तो थोड़ा आराम तो बनता है न। पर डिगलीपुर की बातें तो जारी रहेंगी।
अरे हमलोग 300 किलोमीटर से ज्यादा का बस का सफर करके यहां तक पहुंचे हैं। इस बीच यात्रा में कितने ठहराव। दो बार समंदर को पार करना। उबड़ खाबड़ सड़के और पीछे की सीट। तो थोड़ा आराम तो बनता है न। पर डिगलीपुर की बातें तो जारी रहेंगी।
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