कुशीनगर तथागत बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली है। यह गोरखपुर के पास उत्तर प्रदेश का एक जिला है। इसकी सीमा गोरखपुर, देवरिया, नेपाल और बिहार से लगती है। बौद्ध ग्रंथों में इस स्थल का नाम कुशीनारा भी मिलता है।
कहा जाता है कि त्रेता युग में
भगवान राम के दो पुत्र लव कुश थे उनमें से कुश के द्वारा बसाया हुआ नगर कुशीनगर है।
हर साल दुनिया भर से लाखों पर्यटक और श्रद्धालु यहां आते हैं। यहां का मुख्य आकर्षण अनूठे डिजाइन वाले महापरिनिर्वाण मंदिर में लेटे हुए बुद्ध की विशालकाय मूर्ति है। कुशीनगर के स्मारकों को तीन वर्गों में बांट कर देखा जा सकता है। तथागत का महापरिनिर्वाण स्थल, मध्य स्तूप, मठाकुआर कोट और रामभर स्तूप के आसपास का इलाका।
हर साल दुनिया भर से लाखों पर्यटक और श्रद्धालु यहां आते हैं। यहां का मुख्य आकर्षण अनूठे डिजाइन वाले महापरिनिर्वाण मंदिर में लेटे हुए बुद्ध की विशालकाय मूर्ति है। कुशीनगर के स्मारकों को तीन वर्गों में बांट कर देखा जा सकता है। तथागत का महापरिनिर्वाण स्थल, मध्य स्तूप, मठाकुआर कोट और रामभर स्तूप के आसपास का इलाका।
नेशनल हाईवे से दो किलोमीटर
अंदर जाने के बाद बायीं तरफ कुशीनगर का मुख्य स्मारक है। इस रास्ते में कई अच्छे
आवासीय होटल बने हुए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित इस स्मारक
में जाने के लिए कोई प्रवेश टिकट नहीं है। कई एकड़ में फैले विशाल हरे भरे उद्यान
के बीच महापरिनिर्वाण स्तूप स्थित है। बुद्ध की विशाल लेटी हुई प्रतिमा के चारों
तरफ कई स्तूप बने हुए हैं।
बुद्ध की विशाल लेटी हुई
प्रतिमा 2.74 मीटर ऊंचे चबूतरे पर बनी है, जिसे एक मंदिर का स्वरूप प्रदान किया
गया है। यह मूर्ति 1876 की खुदाई
में प्राप्त हुई थी। यहां बुद्ध चिर निद्रा में लेटे हैं। यह मूर्ति 6.10 मीटर
लंबी है। इसे बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया है। उनके चेहरे पर एक स्थायी शांति
का भाव है। उनकी लेटी प्रतिमा वाले मंदिर के ठीक पीछे विशाल स्तूप है। वैसे मंदिर
के चारों तरफ कई स्तूपों के अवशेष देखे जा सकते हैं। ये सारे स्तूप उन्नीसवीं सदी में
उत्खनन के दौरान मिले हैं।
तथागत का महापरिनिर्वाण - कुशीनगर में गौतम बुद्ध की
मृत्यु 80 वर्ष की उम्र में 483 ईस्वी पूर्व में हुई थी। कहा जाता है कि एक ग्रामीण
व्यक्ति के घर कुछ खाने के कारण उनके पेट में दर्द शुरु हो गया। बुद्ध अपने
शिष्यों के साथ कुशीनारा की ओर चल दिए।
रास्ते में उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा, 'आनंद इस संधारी के चार तह करके बिठाओ। मैं थक गया हूं, अब लेटूंगा। उन्होंने हिरण्यवती नदी को पार किया और दो साल के वृक्षों के बीच कुशीनगर में अपने प्राण त्यागे। उनकी मृत्यु के छह दिन बाद उन्हे जलाया गया। उनके शव के अवशेषों का बंटवारा आठ हिस्सों में किया गया।
रास्ते में उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा, 'आनंद इस संधारी के चार तह करके बिठाओ। मैं थक गया हूं, अब लेटूंगा। उन्होंने हिरण्यवती नदी को पार किया और दो साल के वृक्षों के बीच कुशीनगर में अपने प्राण त्यागे। उनकी मृत्यु के छह दिन बाद उन्हे जलाया गया। उनके शव के अवशेषों का बंटवारा आठ हिस्सों में किया गया।
इन आठ स्थलों पर आठ स्तूप बने। ये स्थल हैं.. 1 कुशीनगर 2. कपिलवस्तु 3 रामग्राम 4 राजगृह 5 वैशाली 6 पावागढ़ 7 बेट द्वीप 8 अल्लकल्प।
बुद्ध की जन्म स्थली लुंबिनी से चलकर उसी दिन उनके महापरिनिर्वाण स्थल पर पहुंचते हुए मन में एक अलग सी अनुभूति हो रही है। कभी कभी ऐसा लग रहा है कि कम से कम आज तो कुशीनगर नहीं आना चाहिए था। एक बार सहज ही ये विश्वास करना काफी मुश्किल होता है कि हजारों साल पहले एक महामानव इस धरती पर आया था जिसने विश्व को ज्ञान और करुणा का ऐसा संदेश दिया। पर ये सत्य है। आज पूरी दुनिया शाक्यमुनि के की शिक्षाओं को याद करती है। बुद्ध ने भारत और नेपाल की भूमि का मान बढ़ाया।
हल्की बारिश के बीच महापरिनिर्वाण स्थल में कुछ घंटे गुजारने के बाद बड़े भरे मन से इस परिसर से बाहर निकल रहा हूं। कुशीनगर में गौतम बुद्ध की याद में काफी कुछ है। तो उनकी कुछ और स्मृतियों के दर्शन क्यों न कर लिए जाएं।
बेहतरीन वर्णन और जानकारी....एक ही दिन में आपने जन्म से लेकर निर्वाण तक का सफर तय कर लिया जबकि तथागत को एक जीवन लग गया इसमे....आपने बुद्धा को महसूस किया इस जगह पर वाकई अच्छा लगा...बुद्धा के मृत्यु के बाद इनके शव के उन आठ हिस्सो का क्या किया होगा ?
ReplyDeleteआठ अलग अलग स्तूप बने
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