पिछली यात्रा में मैं रॉस और
नार्थ बे गया था। दरअसल राजीव गांधी स्पोर्ट्स कांप्लेक्स से इन दोनों जगह के लिए
लगातार बोट सेवा चलती है। आमतौर पर नार्थ बे और रॉस का संयुक्त पैकेज होता है। पर
इस बार हम सिर्फ रॉस जा रहे हैं। भला अंदमान के सबसे खूबसूरत द्वीप पर जाने का
मौका अनादि और माधवी क्यों छोड़ें। तीन साल में इन बोट का किराया बढ़ गया है। अब
सिर्फ एक द्वीप के लिए 350 रुपये प्रति व्यक्ति लिए जा रहे हैं। एक बोट में हमने
तीन सीट बुक कर ली है। हमारे साथ एक स्थानीय परिवार भी है जो रॉस देखने जा रहा है।
बोट पर बैठकर हम सबने लाइफ
जैकेट बांध लिया है। पर रॉस तो सिर्फ 800 मीटर की दूरी पर है, नाव तेजी से नीले
समंदर के पानी में हिलोरें ले रही है। कुछ मिनटों में ही हमलोग रॉस द्वीप पहुंच गए
हैं। पर अब इस द्वीप का नाम बदलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप हो गया है। सुंदर
हिरण और नारियल पानी ने द्वीप पर हमारा स्वागत किया। अनादि और माधवी लग पड़े
हिरणों के साथ तस्वीर खिंचवाने में। तो उस बेजुबान जानवर ने भी आनाकानी नहीं की।
इस बार रॉस में हम कुछ उन
इलाकों में जा पहुंचने की कोशिश में हैं जहां पिछली बार मैं नहीं जा सका था। हरे
भरे पेड़ों की झुरमुट से होते हुए पगडंडी पकड़ कर हमलोग रॉस द्वीप के आखिरी छोर तक
पहुंच गए हैं। रास्ते में रॉस के कमिश्नर का निवास स्थान और सैनिकों की बैरक वाले
भवन मिले, जो कभी गुलजार रहे होंगे। आखिरी विंदु जहां तक बैटरी कार्ट वाले लेकर
आते हैं, वहां से हमने सीढियां उतरनी शुरू की। ये विंदु है दल लोन सेलर की।
समंदर में उतरने की सीढ़ियां बनी है। पानी के बीच में जाकर एक विशाल समाधि बनी है। समंदर पर लगातार अकेले खड़े होकर निगरानी करने वाले नाविक की समाधि बनी है यहां पर। उनके योगदान को याद किया गया है। हाथों में दूरबीन लिए सिर में हैट लगाए एक नाविक की प्रतिमा है यहां पर। उसकी ड्यूटी होती है पल पल चौकसी रखना। पास में समंदर में बना एक पुराना लाइटहाउस दिखाई दे रहा है।
समंदर में उतरने की सीढ़ियां बनी है। पानी के बीच में जाकर एक विशाल समाधि बनी है। समंदर पर लगातार अकेले खड़े होकर निगरानी करने वाले नाविक की समाधि बनी है यहां पर। उनके योगदान को याद किया गया है। हाथों में दूरबीन लिए सिर में हैट लगाए एक नाविक की प्रतिमा है यहां पर। उसकी ड्यूटी होती है पल पल चौकसी रखना। पास में समंदर में बना एक पुराना लाइटहाउस दिखाई दे रहा है।
हम जिस प्वाइंट तक पहुंच गए हैं
रॉस आने वाले सारे सैलानी यहां तक नहीं आते। इस स्मारक का निर्माण 2010 में कराया
गया है। दोपहर की तीखी धूप है , पर ठंडी ठंडी हवाएं चल रही हैं। लोन सेलर प्वाइंट
से रॉस द्वीप कैमरे में मुकम्मल नजर आता है। अब वापस जाने के लिए काफी सीढ़ियां
चढ़नी है। उतरना तो आसान था पर चढ़ना थोड़ा मुश्किल।
अब रॉस में आए और समंदर में नहीं
उतरें ये तो हो नहीं सकता। तो अगले विंदु पर हम उतर पड़े हैं पानी में थोड़ी जल
क्रीड़ा करने के लिए। अब सुभाष द्वीप पर भी विशाल तिरंगा लहराने लगा है। वापसी में
थकान हो गई है तो नारियल पानी और उसकी मलाई क्यों न खाई जाए। वैसे यहां पर कुल्फी
भी मिल रही है। अब लौटने का समय हो गया है। अगर देर की तो पिछली बार की तरह बोट
हमें छोड़ कर चली जाएगी। तो चलें।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य – vidyutp@gmail.com
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( ROSS, NETAJEE SUBHASH DWEEP )
आगे पढ़ें :चिड़िया टापू की ओर
अंदमान की यात्रा को पहली कड़ी से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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Looks beautiful. Love the barracks...
ReplyDeleteThanks
Deleteजजीरे का सफर रोमांचक रहा। तस्वीरें बहुत सुन्दर आई हैं। आगे की कड़ियों का इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteधन्यवाद
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