मैं दूसरी बार पोर्ट ब्लेयर के
चाथम शॉ मिल में पहुंचा हूं। पर अपनी
पिछली यात्रा में इस एशिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने आरा मशीन वाले मिल को अंदर
घूम कर नहीं देख पाया था। पर इस बार हमलोग इसके वर्कशॉप में घुस गए हैं।
यहां है नैरो गेज रेलवे लाइन - जैसा की सभी जानते हैं कि अंदमान में कोई रेल नेटवर्क नहीं है। पर पोर्ट ब्लेयर के चाथम शॉ मिल में लकड़ी की ढुलाई के लिए रेल की पटरियां बिछाई गई हैं। वर्कशॉप के अंदर की लकड़ी को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए दो फीट की चौड़ाई वाली नैरो गेज लाइन वाली पटरियां यहां बिछाई गई हैं। इन पटरियों को बिछाने के लिए लकड़ी की फिश प्लेटों का सहारा लिया गया है। हालांकि इन पटरियों पर रेलगाड़ी के बजाय ट्राली चलाई जाती है। इस ट्रॉली को धक्का देकर ले जाया जाता है। ब्रिटिश काल में इस शॉ मिल में रेल की पटरियां बिछाने की योजना बनी थी जिससे की कामकाज आसान हो सके।
यहां है नैरो गेज रेलवे लाइन - जैसा की सभी जानते हैं कि अंदमान में कोई रेल नेटवर्क नहीं है। पर पोर्ट ब्लेयर के चाथम शॉ मिल में लकड़ी की ढुलाई के लिए रेल की पटरियां बिछाई गई हैं। वर्कशॉप के अंदर की लकड़ी को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए दो फीट की चौड़ाई वाली नैरो गेज लाइन वाली पटरियां यहां बिछाई गई हैं। इन पटरियों को बिछाने के लिए लकड़ी की फिश प्लेटों का सहारा लिया गया है। हालांकि इन पटरियों पर रेलगाड़ी के बजाय ट्राली चलाई जाती है। इस ट्रॉली को धक्का देकर ले जाया जाता है। ब्रिटिश काल में इस शॉ मिल में रेल की पटरियां बिछाने की योजना बनी थी जिससे की कामकाज आसान हो सके।
हमें शॉ मिल के अंदर रेल पटरियों का अस्तित्व आज
भी दिखाई देता है। कारखाने में इन पटरियों इस्तेमाल इन दिनों भी किया जा रहा है। कारखाने
में रेल की पटरियां लकड़ियों के स्टॉक से लेकर वर्कशॉप के बीच बिछाई गई हैं। येेआज भी उपयोगी है।
हमने छोटी मोटी आरा मशीन पर
लकड़ी चिराई का काम देखा है। पर इतनी विशाल मशीनों को मैं भी पहली बार ही देख रहा
हूं।

तो यह आरा मिल तीन मंजिला है। भवन के निर्माण में भी ज्यादातर लकड़ी का ही इस्तेमाल हुआ है। जंगल से आने वाले विशाल लकड़ी के पेड़ों को मांग के अनुसार चिराई कर अलग अलग आकार दिया जाता है।

तो यह आरा मिल तीन मंजिला है। भवन के निर्माण में भी ज्यादातर लकड़ी का ही इस्तेमाल हुआ है। जंगल से आने वाले विशाल लकड़ी के पेड़ों को मांग के अनुसार चिराई कर अलग अलग आकार दिया जाता है।
हम 72 इंच के वर्टिकल शॉ मशीन
को देख रहे हैं। इसका निर्माण 1984 में ब्रिटेन में हुआ है। तब इसे 40 लाख की
लागात से यहां लाकर स्थापित किया गया था। इस मशीन को 100 हार्स पावर के मोटर से
चलाया जाता है। इसमें 10 इंच चौड़ाई वाली आरी लगाई गई है। इसकी ब्लेड 9000 फीट
प्रति मिनट की गति से चलती है।
आगे हमें 48 इंच बैंड वाली री-शॉ मशीन दिखाई देती है। यह
मशीन 1955-56 में ब्रिटेन से आई थी। कुल 40 हार्स पावर के मोटर से चलने वाली यह
मशीन लकड़ी के बड़े टुकड़ों को छोटा टुकड़ा बनाने का कार्य करती है। इसके ब्लेड की
चौड़ाई 5 ईंच है।
इस आरा मिल में कई पुरानी मशीने
ऐसी हैं जो न्यूयार्क अमेरिका से आई हैं। सैकड़ो साल पुरानी मशीने आज भी चालू हालत
में हैं। आरा मिल के अंदर विशाल आरा को धार देने के काम भी किया जाता है। मिल के
सारे कर्मचारी बड़े मनोयोग से लगातार काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं।
आरा मिल में अंत में जाकर
ग्रेडिंग की इकाई है। यहां पर कटी हुई लकड़ियों को ग्रेड प्रदान किया जाता है। यहां
इस बात की भी जांच की जाती है कि लकड़ी में किसी तरह का नुक्श तो नहीं रह गया। आरा
मिल के वर्कशॉप में सैलानियों को आने की इजाजत है।
विश्वकर्मा का मंदिर - लकड़ी के
इस मिल के अंदर तीसरी मंजिल पर एक मंदिर भी बना है। इस मंदिर के अंदर जो भगवान की
विशाल मूर्ति है, वह भी अंदमान पादुक लकड़ी से बनी हुई है। लकड़ी की बनी
विश्वकर्मा की आदमकद प्रतिमा है। उनके हाथों में लकड़ी काटने वाली कुल्हाड़ी है।
आप चाहें तो चाथम शॉ मिल
परिसर से लकड़ी के बने कलात्मक उत्पाद
खरीद सकते हैं। हमने इस बार यहां से एक गणपति की प्रतिमा ले ली है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
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