लखनऊ के कैसरबाग डिपो पहुंच गया
हूं। यहां से मुझे गोंडा की बस लेनी है। वैसे तो गोंडा ट्रेन से भी जा सकता था। पर
सुबह सात बजे कोई ट्रेन नहीं है। इसलिए बस से यात्रा करने को तय किया। वैसे तो
मुझे गोंडा से आगे बलरामपुर जाना है। कैसरबाग डिपो से एक बस सीधे बलरामपुर भी जा
रही है। यह वाया बहराइच जाएगी। पर मैंने वाया गोंडा जाना तय किया। गोंडा जाने वाली
बस ज्यादा आरामदेह नहीं है। इसकी सीट सिटी बस जैसी यानी ऊंचाई में कम है।
वैसे तो बलरामपुर कभी रियासत हुआ करती थी। पर ये शहर भले ही अब यूपी जिला बन चुका है पर यह किसी पुराने कस्बे सा नजर आता है। शहर का बस स्टैंड पतली सी सड़क पर अंदर जाकर है। आसपास में कोई अच्छा होटल रेस्टोरेंट नहीं दिखाई देता। यहां से प्रस्थान करने वाली बसों की संख्या भी ज्यादा नहीं है। बस स्टैंड का परिसर अत्यंत गंदा और अव्यवस्थित है।
साल 1997 में गोंडा जिले का विभाजन करके बलरामपुर नया जिला बनाया गया। पर देवीपाटन मंडल का यह जिला यूपी के पिछड़ेपन की तस्वीर दिखाने के लिए आदर्श उदाहरण हो सकता है।
गोमती नदी का काला जल - कैसरबाग
डिपो से बस निकलने के बाद गोमती नगर, अंबेडकर चौराहा को पार करती हुई गोमती नदी के
रिवर फ्रंट से होकर गुजर रही है। मैं देख पा रहा हूं कि भले ही रिवर फ्रंट बन गया
हो पर गोमती नदी का पानी काला है। बिल्कुल गंदा। पानी भी यूं जैसे किसी गांव के
तालाब का ठहरा हुआ काला जल हो। तहजीब के शहर लखनऊ में गोमती की यह दशा देखकर बड़ी
निराशा हुई। स्वच्छ गंगा की बात चल रही है सालों पर पर गोमती की स्वच्छता पर कब
बात होगी। आगे चलकर हमारी बस पोलीटेक्निक चौराहे पर थोड़ी देर के लिए रूकी। यह
लखनऊ शहर का व्यस्त चौराहा है। इसके बाद निकल पड़ी शहर से बाहर। बाराबंकी रोड पर।
लखनऊ से बाराबंकी की दूरी महज 30 किलोमीटर है। यानी अब ये लखनऊ के उपनगर जैसा हो
चुका है।
![]() |
घाघरा नदी पर बना ऐतिहासिक एल्गिन ब्रिज। |
ऐतिहासिक एल्गिन ब्रिज से गुजरते हुए - बस घाघरा नदी पर बने सड़क पुल से होकर गुजर रही है। मेरी नजरों में रेलवे का ऐतिहासिक पुल दिखाई दे रहा है। इसे एल्गिन ब्रिज के नाम से जाना जाता है। कुल 1126 मीटर लंबा ये रेल पुल 1896 में बना था। यह गोंडा और बाराबंकी को जोड़ता है। नदी के इस पार चौका घाट रेलवे
स्टेशन है तो पुल के उस पार घाघरा घाट रेलवे स्टेशन। इस पुल को 1862-63 में भारत के गवर्नर जनरल रहे लार्ड एल्गिन के नाम पर ये नाम मिला। पुल के निर्माण में इस बात का खासा ख्याल रखा गया है कि नदी में बाढ़ आने पर पुल सुरक्षित रहे। इसलिए पुल की लंबाई नदी की समान्य धारा से अधिक रखी गई है। बरसात के दिनों में घाघरा यहां उफान पर होती है। एल्गिन ब्रिज से कुछ किलोमीटर पहले घाघरा नदी में शारदा नदी आकर मिलती है।
गंगा की दूसरी बड़ी सहायक नदी घाघरा - घाघरा नदी (सरयू) नेपाल से भारत में आती है। यह लंबाई के लिहाज से यमुना के बाद गंगा की दूसरी सबसे लंबी सहायक नदी है। यूपी के बाराबंकी, बहराइच, गोंडा, अयोध्या, फैजाबाद, देवरिया जैसे शहर घाघरा नदी के आसपास आबाद हैं। ये नदी सरयू के नाम से भी जानी जाती है और ये बिहार में छपरा के पास जाकर गंगा में मिल जाती है। कर्नलगंज से पहले घाघरा पर रेलवे का यह लंबा एल्गिन ब्रिज नजर आता है। बलिया और छपरा के बीच माझी में भी इस नदी पर रेल पुल बना है।
कर्नलगंज से पहले चाय नास्ता - घाघरा घाट के बाद बस रामनगर में एक लाइन होटल पर सुबह के नास्ते के लिए रुक गई। हम अभी बहराइच जिले में हैं। यहां पर चाय नास्ते के अलावा बेहतरीन किस्म के दशहरी आम भी बिक रहे हैं। ये आम पेड़ से तोड़े गए बिल्कुल ताजे पके हुए हैं। बस आगे चल पड़ी है। कर्नलगंज कस्बा आ गया है। यह गोंडा जिले की तहसील है। लगभग तीन घंटे में 125 किलोमीटर के सफर के बाद बस गोंडा शहर में प्रवेश कर गई है। हमारे एक पत्रकार मित्र प्रमोद कुमार तिवारी गोंडा के रहने वाले हैं। उनसे मैंने अपने यात्रा मार्ग को लेकर सलाह ली थी। यूं तो मैं गोंडा रेल से कई बार गुजरा हूं। पर बस से पहली बार गोंडा शहर में प्रवेश किया है।
गोंडा एक थका हुआ शहर - कुछ चौराहों को पार करती हुई बस गोंडा के बस स्टैंड में जाकर लगी। बस स्टैंड की छोटी सी पुरानी इमारत है। ऐसा लग रहा है मानो किसी गांव के छोटे से बस अड्डे में आ गए हों। गोंडा बस स्टैंड उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन की कहानी बयां करता है। यूपी के इस पुराने जिला मुख्यालय शहर के बस स्टैंड को देखकर निराशा होती है। यात्री सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी तो नहीं है।
मुझे भूख लगी है तो बस स्टैंड के चौराहे से बायीं तरह चलकर एक साधारण से होटल में खाने बैठ गया। थाली है खाने की 50 रुपये की। खाना संतोषजनक है। ताजी रोटियां और चावल, दाल, सब्जी। खाने के बाद बलरामपुर जाने वाली बस की तलाश में लग गया। चौराहे से पूरब की तरफ बलरामपुर की बस लगती है। थोड़ी ही देर में एक अच्छी बस मिल गई। गोंडा से बलरामपुर की दूरी 40 किलोमीटर है। गोंडा से छह किलोमीटर आगे शहर के बाहरी इलाके में सभापुर नामक रेलवे स्टेशन आया। गोंडा से बलराम भी रेलवे मार्ग है। दिन भर में कई पैसेंजर एक्सप्रेस रेलगाड़ियां इस मार्ग पर हैं। एक घंटे के सफर के बाद बस बलरामपुर शहर में प्रवेश कर चुकी है।
गंगा की दूसरी बड़ी सहायक नदी घाघरा - घाघरा नदी (सरयू) नेपाल से भारत में आती है। यह लंबाई के लिहाज से यमुना के बाद गंगा की दूसरी सबसे लंबी सहायक नदी है। यूपी के बाराबंकी, बहराइच, गोंडा, अयोध्या, फैजाबाद, देवरिया जैसे शहर घाघरा नदी के आसपास आबाद हैं। ये नदी सरयू के नाम से भी जानी जाती है और ये बिहार में छपरा के पास जाकर गंगा में मिल जाती है। कर्नलगंज से पहले घाघरा पर रेलवे का यह लंबा एल्गिन ब्रिज नजर आता है। बलिया और छपरा के बीच माझी में भी इस नदी पर रेल पुल बना है।
कर्नलगंज से पहले चाय नास्ता - घाघरा घाट के बाद बस रामनगर में एक लाइन होटल पर सुबह के नास्ते के लिए रुक गई। हम अभी बहराइच जिले में हैं। यहां पर चाय नास्ते के अलावा बेहतरीन किस्म के दशहरी आम भी बिक रहे हैं। ये आम पेड़ से तोड़े गए बिल्कुल ताजे पके हुए हैं। बस आगे चल पड़ी है। कर्नलगंज कस्बा आ गया है। यह गोंडा जिले की तहसील है। लगभग तीन घंटे में 125 किलोमीटर के सफर के बाद बस गोंडा शहर में प्रवेश कर गई है। हमारे एक पत्रकार मित्र प्रमोद कुमार तिवारी गोंडा के रहने वाले हैं। उनसे मैंने अपने यात्रा मार्ग को लेकर सलाह ली थी। यूं तो मैं गोंडा रेल से कई बार गुजरा हूं। पर बस से पहली बार गोंडा शहर में प्रवेश किया है।
गोंडा एक थका हुआ शहर - कुछ चौराहों को पार करती हुई बस गोंडा के बस स्टैंड में जाकर लगी। बस स्टैंड की छोटी सी पुरानी इमारत है। ऐसा लग रहा है मानो किसी गांव के छोटे से बस अड्डे में आ गए हों। गोंडा बस स्टैंड उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन की कहानी बयां करता है। यूपी के इस पुराने जिला मुख्यालय शहर के बस स्टैंड को देखकर निराशा होती है। यात्री सुविधाओं के नाम पर यहां कुछ भी तो नहीं है।
मुझे भूख लगी है तो बस स्टैंड के चौराहे से बायीं तरह चलकर एक साधारण से होटल में खाने बैठ गया। थाली है खाने की 50 रुपये की। खाना संतोषजनक है। ताजी रोटियां और चावल, दाल, सब्जी। खाने के बाद बलरामपुर जाने वाली बस की तलाश में लग गया। चौराहे से पूरब की तरफ बलरामपुर की बस लगती है। थोड़ी ही देर में एक अच्छी बस मिल गई। गोंडा से बलरामपुर की दूरी 40 किलोमीटर है। गोंडा से छह किलोमीटर आगे शहर के बाहरी इलाके में सभापुर नामक रेलवे स्टेशन आया। गोंडा से बलराम भी रेलवे मार्ग है। दिन भर में कई पैसेंजर एक्सप्रेस रेलगाड़ियां इस मार्ग पर हैं। एक घंटे के सफर के बाद बस बलरामपुर शहर में प्रवेश कर चुकी है।
वैसे तो बलरामपुर कभी रियासत हुआ करती थी। पर ये शहर भले ही अब यूपी जिला बन चुका है पर यह किसी पुराने कस्बे सा नजर आता है। शहर का बस स्टैंड पतली सी सड़क पर अंदर जाकर है। आसपास में कोई अच्छा होटल रेस्टोरेंट नहीं दिखाई देता। यहां से प्रस्थान करने वाली बसों की संख्या भी ज्यादा नहीं है। बस स्टैंड का परिसर अत्यंत गंदा और अव्यवस्थित है।
साल 1997 में गोंडा जिले का विभाजन करके बलरामपुर नया जिला बनाया गया। पर देवीपाटन मंडल का यह जिला यूपी के पिछड़ेपन की तस्वीर दिखाने के लिए आदर्श उदाहरण हो सकता है।
( LUCKNOW, GOMATI, BARABANKI, GHAGHRA RIVER, COLONELGANJ,
GONDA, BALRAMPUR, ELGIN BRIDGE )
आप अपनी यात्रा में पाठकों को भी साथ लिए चलते हैं।आप के माध्यम से मैं पिछले दो दिनों से यूपी घुम रहा हूँ। आपके विवरण रोमांचित करते हैं...।
ReplyDeleteआगे भी जरूर पढे, तुलसीपुर, कपिलवस्तु , लुंबिनी की यात्रा
Delete