शाम के छह बजे हैं और मैं एक
बार होटल से निकल कर अपनी साइकिल लेकर माया देवी मंदिर की ओर चल पड़ा हूं। इस
मंदिर का प्रवेश गेट नंबर 4 से है। गेट से करीब एक किलोमीटर अंदर जाने के बाद हरे
भरे विशाल परिसर में मायादेवी का मंदिर है। काफी लोग मंदिर की ओर पैदल भी जा रहे
हैं। यहां पर प्रवेश के लिए पहले टिकट लेना पड़ता है। भारतीय नागरिकों के लिए 25
रुपये का टिकट है। नेपाली रुपये में 40 रुपये। मैं टिकट लेकर मंदिर परिसर की तरफ
बढ़ चला। पर इससे पहले जूते उतारने हैं स्टैंड पर। यहां पर पेयजल का भी बेहतरीन
इंतजाम है। विश्व विरासत में शामिल इस मंदिर में प्रवेश से पहले सुरक्षा जांच से गुजरना पड़ता है। लुंबिनी का
मायादेवी मंदिर युनेस्को की विश्व विरासत स्थली है। धीरे धीरे शाम ढल रही है।
पश्चिम में सूरज डूब रहा है। मेरी तरह सैकड़ो लोग तथागत की जन्म स्थली में प्रवेश
कर रहे हैं। मंदिर परिसर में कई जामुन के पेड़ हैं। उनसे पके हुए जामुन गिर रहे
हैं।
शाक्यमुनि गौतम बुद्ध का जन्म
लुंबिनी वन में 563 ईस्वी पूर्व में हुआ था। ऐसा तो हम बचपन से पुस्तकों में पढ़ते
आए हैं। वह वैशाख पूर्णिमा का दिन था। अब इस दिन को बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है। राजा
शुद्धोधन की पत्नी मायादेवी कपिलवस्तु से अपने मायके देवदह जा रही थीं। वे रामगाम
के कोलिय वंश की राजकुमारी थीं। स्थापित परंपरा के मुताबिक वे पुत्र जन्म के लिए
अपने मायके जा रही थीं। उनके साथ पूरा लाव लस्कर था। लुंबिनी के वन से गुजरते हुए उन्हें प्रसव वेदना महसूस हुई। इसी स्थली
पर एक साल वृक्ष के नीचे उन्होंने तथागत को जन्म दिया। उनका बचपन में नाम
सिद्धार्थ रखा गया। पुत्र को जन्म देने के बाद उन्होंने पास के सरोवर में स्नान किया।
शाक्यमुनि आगे चलकर पूरे विश्व को शांति, मानवतावाद, करुणा, ज्ञान और सौहार्द का महान संदेश दिया। बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और उनके महापरिनिर्वाण की तारीखें एक ही हैं यानी वैशाख पूर्णिमा। कहा जाता है कि तथागत अपने जन्म के तुरंत बाद सात कदम चले। उनके जन्म होते ही सरोवर के कमल पुष्प खिल उठे। साथ ही उन्होंने ऐलान किया कि यह उनका आखिरी जन्म है।
शाक्यमुनि आगे चलकर पूरे विश्व को शांति, मानवतावाद, करुणा, ज्ञान और सौहार्द का महान संदेश दिया। बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति और उनके महापरिनिर्वाण की तारीखें एक ही हैं यानी वैशाख पूर्णिमा। कहा जाता है कि तथागत अपने जन्म के तुरंत बाद सात कदम चले। उनके जन्म होते ही सरोवर के कमल पुष्प खिल उठे। साथ ही उन्होंने ऐलान किया कि यह उनका आखिरी जन्म है।
मायादेवी मंदिर वास्तव में कोई
मंदिर नहीं है, बल्कि बुद्ध के जन्म स्थल को संरक्षित किया गया है। सफेद रंग का
सुंदर सा भवन बाहर से दिखाई देता है। पर इसके अंदर जाने पर उस वृक्ष के अवशेष हैं
जहां माया देवी ने बुद्ध को जन्म दिया था। साल 2003 में इस स्थल को संरक्षित कर आम
लोगों के दर्शन के लिए खोला गया है। इसके आंतरिक हिस्से में फोटोग्राफी की मनाही
है।
मंदिर के पृष्ठ भाग में सुंदर
सा सरोवर है जहां मायादेवी ने यात्रा के दौरान स्नान किया था। मंदिर के पीछे के
हिस्से में विशाल पार्क है। इसमें हरे भरे पेड़ हैं। मंदिर परिसर का वातावरण इतना
खूबसूरत है कि यहां आने के बाद जल्दी निकलने की इच्छा नहीं होती। शाम गहराने लगी
है। अंधेरा होने के बाद सफेद रंग की इमारत नन्हें नन्हे बल्बों से जगमगा उठी है। इसे
देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो तथागत अपने विचारों से पूरे विश्व को आलोकित कर रहे
हों।
बाद में बुद्ध के जन्म स्थली के पास कपिलवस्तु के राजा
शुद्धोधन ने बाद में विशाल सरोवर का निर्माण कराया। महात्मा बुद्ध के कुशीनगर में
महापरिनिर्वाण के बाद से ही लुंबिनी बौद्ध मतावलंबियों का तीर्थ स्थल बन गया। दूर
दूर से लोग तथागत की जन्म स्थली को देखने के लिए यहां पहुंचने लगे। आजकल को विश्व
के हर देश से लोग यहां पहुंचते हैं।
( MAYA DEVI MANDIR, UNESCO
WORLD HERITAGE SITE )
आपकी दी हुई जानकारी और लेख बहुत ही अद्भुत है...बिल्कुल ऐसा लग रहा है कि में लुम्बिनी देख रहा हु..अद्भुत
ReplyDeleteत्रिपटकों में तथागत शब्द का उपयोग गौतम बुद्ध ने स्वयं के लिये किया है। इस शब्द का अर्थ है- तथा+गत = 'वह जो (जैसा आया था), वैसा ही चला गया'।
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ReplyDeleteफालोबर्स का विजेय भी लगाइए इस ब्लॉग पर
ReplyDeleteलगा दिया है सर
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