पिपरहवा स्मारक देखने के बाद
आगे निकल पड़ा हूं। यहां मौजूद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के स्टाफ ने बताया कि आप
आगे जाकर गनवरिया के प्राचीन स्मारक भी देख लें। सड़क पर लगे मार्ग संकेतक में दो
प्रमुख बौद्ध स्थलों की दूरी यहां से लिखी गई है। कुशीनगर 147 किलोमीटर और
श्रावस्ती 148 किलोमीटर।
गनवरिया के प्राचीन स्मारक – मेरी
अगली मंजिल है गनवरिया। पिपरहवा से आधा किलोमीटर आगे सड़क के दाहिनी तरफ गनवरिया
नामक एक और बुद्धकालीन स्मारक है। गनवरिया में 1971 से 1976 के दौरान खुदाई हुई।
यह कपिलवस्तु का रिहायइसी इलाका था और धार्मिक क्रियाकलाप का बड़ा केंद्र था। यह
चार अलग अलग कालखंडों में महत्वपूर्ण स्थल था। बुद्ध के पहले भी यहां क्रियाकलाप
होते थे। बुद्ध बाद शुंग काल और कुषाण काल में भी यह सक्रिय स्थल था। बाद में इसका
महत्व कम हो गया। आजकल सिर्फ यहां पुरानी यादें रह गई हैं।
यहां पर 25 कमरों वाले विशाल भवन का अवशेष मिलता है। इसमें एक विशाल आंगन भी था। यह सब देखकर लगता है कि यह किसी प्रमुख व्यक्ति का आवास रहा होगा। कुछ इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि यह कपिलवस्तु के राजा का महल रहा होगा। हालांकि इसको लेकर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है। यहां पर कुछ संघाराम और मनौती स्तूप के भी अवशेष मिलते हैं।
यहां पर 25 कमरों वाले विशाल भवन का अवशेष मिलता है। इसमें एक विशाल आंगन भी था। यह सब देखकर लगता है कि यह किसी प्रमुख व्यक्ति का आवास रहा होगा। कुछ इतिहासकार अनुमान लगाते हैं कि यह कपिलवस्तु के राजा का महल रहा होगा। हालांकि इसको लेकर कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है। यहां पर कुछ संघाराम और मनौती स्तूप के भी अवशेष मिलते हैं।
कपिलवस्तु संग्रहालय - कपिलवस्तु
और गनवरिया में खुदाई से प्राप्त सामग्री को कपिलवस्तु संग्रहालय में रखा गया है।
ये संग्रहालय यहीं पर सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित है। गनवरिया से
थोड़ा आगे सिद्धार्थ विश्वविद्यालय का
परिसर बना है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इस विश्वविद्यालय की स्थापना मुख्यमंत्री
अखिलेश यादव के कार्यकाल में की गई। कपिलवस्तु संग्रहालय में मुद्रा, मुद्रांक,
मिट्टी के खिलौने, मनके, चूड़ियां, मिट्टी
के बरतन, बाणाग्र, अंजन शलाकाएं आदि प्राप्त हुई हैं।
सिद्धार्थ विश्वविद्यालय - कपिलवस्तु
– सिद्धार्थनगर जिले में कुछ साल पहले ही सिद्धार्थ विश्वविद्यालय की स्थापना की
गई है। इसका परिसर गनवरिया के पास बर्डपुर गांव से थोड़ा आगे है। इसमें गोरखपुर
विश्वविद्यालय से काट कर कुछ जिलों के कालेजों को संबद्ध किया गया है। साल 2014
में इस विश्वविद्यालय के परिसर का निर्माण कार्य आरंभ हुआ। इसका परिसर अभी आकार ले
रहा है। यहां कला संकाय, विज्ञान संकाय, वाणिज्य संकाय, विधि संकाय में अध्ययन
अध्यापन का कार्य शुरू हो चुका है।
विश्वविद्यालय परिसर से निकल कर
मैं बर्डपुर के बुद्धचौक पहुंच गया हूं। यहां पर सुनहले रंग की विशाल बुद्ध
प्रतिमा लगी हुई है। यहां से मैं एक शेयरिंग आटोरिक्शा में बैठ गया। यह मुझे
ककरहवा बार्डर ले जाएगा। थोड़ी देर में मैं ककरहवा बार्डर पहुंच गया हूं। यहां
अतिक्रमण हटाओ अभियान का ताजा ताजा असर है। बाजार के दोनों तरफ मकान दुकान तोड़कर
सड़क को काफी चौड़ा किया जा रहा है।
आटो वाले ने हमें जहां उतार दिया वहां से पैदल चलते हुए भारत नेपाल सीमा पर पहुंच गया हूं। यहां पर सशस्त्र सुरक्षा बल (एसएसबी) के जवान तैनात हैं। वे मेरा बैग चेक करते हैं और पैदल नेपाल की सीमा में प्रवेश करने की इजाजत दे देते हैं। हां इस सीमा से सिर्फ भारतीय नागरिक ही नेपाल में प्रवेश कर सकते हैं। यहां विदेशी नागरिकों के लिए कोई इमिग्रेशन काउंटर नहीं है। विदेशी नागरिकों को अगर नेपाल में जाना है तो सोनौली बार्डर से प्रवेश करना होगा।
आटो वाले ने हमें जहां उतार दिया वहां से पैदल चलते हुए भारत नेपाल सीमा पर पहुंच गया हूं। यहां पर सशस्त्र सुरक्षा बल (एसएसबी) के जवान तैनात हैं। वे मेरा बैग चेक करते हैं और पैदल नेपाल की सीमा में प्रवेश करने की इजाजत दे देते हैं। हां इस सीमा से सिर्फ भारतीय नागरिक ही नेपाल में प्रवेश कर सकते हैं। यहां विदेशी नागरिकों के लिए कोई इमिग्रेशन काउंटर नहीं है। विदेशी नागरिकों को अगर नेपाल में जाना है तो सोनौली बार्डर से प्रवेश करना होगा।
ककरहवा बार्डर से नेपाल में भगवान बुद्ध की जन्म स्थली लुंबिनी की दूरी केवल 10
किलोमीटर है। ककरहवा सीमा पर कोई नो मेंस लैंड नहीं है। आखिरी सीमा रेखा तक दुकाने
हैं। एक कदम बढ़ाया और नेपाल के अंदर प्रवेश। इस पार ककरहवा और उस पार भोडवलिया। नेपाल
की सीमा में प्रवेश करते ही पहली दुकान नजर आई – न्यू गुप्ता फैंसी स्टोर,
भोड़वलिया, जिला रुपनदेही नेपाल। सामने एक मिनी बस मेरा इंतजार कर रही है जो
लुंबिनी जाने को तैयार है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य – vidyutp@gmail.com
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( GANWARIA, KAPILVASTU UNIVERSITY, BARDPUR,
KAKRAHWA, BHODWALIA, RUPANDEHI, LUMBINI, NEPAL )
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