पिपरहवा में कपिलवस्तु के
पुरातन स्थल पर पहुंच गया हूं। मई 2019 से ही यहां प्रवेश के लिए 25 रुपये का टिकट
निर्धारित कर दिया है। यह प्रवेश टिकट की दर भारत और सभी बिमस्टेक सदस्यों देशों
के नागरिकों के लिए है। अन्य विदेशी नागरिकों के लिए प्रवेश टिकट 300 रुपये का है।
इससे पहले यहां प्रवेश निःशुल्क था। प्राचीन स्मारकों के रखरखाव के लिए टिकट होना
आवश्यक भी है। टिकट लिए जाने से लोग स्मारकों का महत्व भी समझते हैं। यह स्मारक
सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। मैं सुबह छह से सात बजे के बीच यहां पहुंच
गया हूं।
इस पुरातन स्मारक के बाहर लगे
बोर्ड पर लिखा गया है कि कपिलवस्तु ( वर्तमान में पिपरहवा) छठी शताब्दी ईसा पूर्व
में शाक्य गणराज्य की राजधानी था। इसी कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन गौतम बुद्ध के
पिता थे। भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनके अस्थि अवशेषों को आठ
भागों विभाजित किया गया था। उनमें से एक
भाग शाक्य गणराज्य कपिलवस्तु को मिला था।
शाक्य परिवार ने बनवाया स्तूप
- पिपहरवा में जो मूल स्तूप स्थित है वह शाक्यों द्वारा गौतम बुद्ध के अस्थि अवशेष
पर निर्मित किया गया था। इसका संकेत सबसे पहले 1898 में डब्लू सी पेपे द्वारा यहां
से प्राप्त खड़िया पत्थर से निर्मित अस्थि मंजूषा पर लिखे अभिलेख से मिलता है।
इसमें लिखा गया है कि भगवान बुद्ध के लिए इस स्तूप का निर्माण उनके शाक्य भाइयों
द्वारा अपनी बहनों, पुत्र-पुत्रियों और पत्नियों द्वारा मिल जुलकर किया गया था।
इसके बाद 1971 से 1976 के दौरान
हुई खुदाई में यहां से मृणमुद्राएं मिली हैं। इन पर ओम देवपुत्र विहारे कपिलवस्तुस
भिक्षुसंघसच लिखा है। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह स्थल प्राचीन कपिलवस्तु का
बौद्ध स्थल था। खुदाई के दौरान यहां चौथी, पांचवी, छठी शताब्दी इस्वी पूर्व की
अस्थि मंजूषाएं मिली हैं। यहां पर बौद्ध विहार, मंदिर, मनौती स्तूप आदि के भी
अवशेष मिले हैं।
पिपरहवा बौद्ध स्तूप से नेपाल
में स्थित कपिलवस्तु की दूरी ज्यादा नहीं है। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि राजा
शुद्धोधन के गणराज्य के समय भारत और नेपाल के ये सभी क्षेत्र कपिलवस्तु राज्य की
सीमा में रहे हों। यहां बौद्ध स्तूप का निर्माण कराया गया और राजा का राज प्रसाद
नेपाल की वर्तमान सीमा के अंदर स्थित हो, ऐसा खूब संभव है। ऐसे में कपिलवस्तु पर
दोनों देशों का दावा सही है।
सुंदर उद्यान और पके हुए आम -
पिपरहवा का बौद्ध स्तूप परिसर कई एकड़ में फैला है। अंदर हरा भरा विशाल उद्यान है।
मुख्य स्तूप, मनौती स्तूप के अलावा यहां पर सुंदर सरोवर है। इसमें कमल पुष्प खिले
हुए हैं। परिसर में आम का बाग भी है। इससे पड़े के पके हुए आम टपक कर गिर रहे हैं।
यहां पर मुझे दो पके मिलते हैं। मैं उन्हें भगवान बुद्ध का आशीर्वाद समझ कर ग्रहण
कर लेता हूं। यहां मौजूद माली बताते हैं। इन पेड़ों के आम की बिक्री नहीं की जाती।
यूं ही पक कर गिरते रहते हैं।
मुख्य स्तूप के आसपास कई
संघाराम का निर्माण कराया गया था। इन संघाराम में बौद्ध भिक्षु निवास करते थे। पर
चीनी यात्री फाहियान लिखता है कि जब वह यहां पहुंचा तो कपिलवस्तु उजाड़ हो चुका
था। दूसरा विदेशी यात्री ह्वेनसांग भी कपिलवस्तु की खोजखबर लेने पहुंचा था। आजकल
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और उद्यान विभाग ने इस परिसर को इतना सुंदर सजा रखा है
कि यहां आकर दिल खुश हो जाता है। पर हर रोज गिनेचुने सैलानी ही यहां पहुंचते हैं।
नमो बुद्धाय। आगे चलते हैं।
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( PIPRAHWA,
KAPILVASTU, BUDDHA, STUPA )
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 17 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद
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