

दिल्ली के पुलबंगश मेट्रो
स्टेशन से उतरिए और बाड़ा हिंदुराव अस्पताल की ओर चलिए। इस इलाके में आपको इतिहास
के कुछ पन्ने दिखाई देंगे। इनमें से एक है अशोक स्तंभ।
दिल्ली में हैं दो अशोक स्तंभ -
दिल्ली में हैं दो अशोक स्तंभ -
वैसे तो दिल्ली में सम्राट अशोक
द्वारा स्थापित दो स्तंभ है। हालांकि मूल रूप से दोनों दिल्ली में नहीं स्थापित
किए गए थे। पर अब ये दिल्ली की शान बढ़ा रहे हैं। अंबाला के पास टोपरा का अशोक
स्तंभ फिरोजशाह कोटला मैदान में है तो दूसरा अशोक स्तंभ उत्तरी दिल्ली में कमला नेहरु रिज इलाके में स्थित है। इन दोनों तो फिरोजशाह तुगलक के शासन
काल में दिल्ली लाया गया था।

पुलबंगश मेट्रो स्टेशन से बाड़ा हिंदुराव अस्पताल जाने के मार्ग पर म्युटिनी मेमोरियल से थोड़ा आगे दाहिनी तरफ अशोक स्तंभ दिखाई देता है। कभी मेरठ की शान रहा अशोक स्तंभ अब राजधानी दिल्ली का मान बढ़ा रहा है। यह जगह दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस के करीब ही है। पर इस अशोक स्तंभ के दिल्ली पहुंचने तक की कहानी बड़ी दारुण है। आखिर यह मेरठ से दिल्ली में इस स्थल तक पहुंचा कैसे। इसे 42 पहियों वाले विशाल रथ पर लादकर लाया गया था। इसे बड़े जतन से सिल्क के कपड़े में लपेटा गया था जिससे कोई नुकसान न हो। कोई खरोंच न आए।
फिरोजशाह तुगलक लाए दिल्ली
इस स्तंभ को दिल्ली के शासक फिरोजशाह तुगलक ने 1356 में मेरठ के आसपास से दिल्ली लाने का उपक्रम किया। फिरोज शाह तुगलक मेरठ आया तो भ्रमण के वक्त उसकी नजर अशोक स्तंभ पर पड़ी। जैसे वह अंबाला के पास टोपरा के स्तंभ को दिल्ली लेकर आया उसी तरह इसको मेरठ से दिल्ली लाया गया। इतिहासकारों का कहना है कि ये स्तंभ मूल स्थल से दिल्ली तक पहले सड़क मार्ग फिर नदी मार्ग से लाए गए थे। इन्हें लाने के लिए बड़ी हिफाजत की गई थी।
इस स्तंभ को दिल्ली के शासक फिरोजशाह तुगलक ने 1356 में मेरठ के आसपास से दिल्ली लाने का उपक्रम किया। फिरोज शाह तुगलक मेरठ आया तो भ्रमण के वक्त उसकी नजर अशोक स्तंभ पर पड़ी। जैसे वह अंबाला के पास टोपरा के स्तंभ को दिल्ली लेकर आया उसी तरह इसको मेरठ से दिल्ली लाया गया। इतिहासकारों का कहना है कि ये स्तंभ मूल स्थल से दिल्ली तक पहले सड़क मार्ग फिर नदी मार्ग से लाए गए थे। इन्हें लाने के लिए बड़ी हिफाजत की गई थी।
विस्फोट से पांच टुकड़े किए-
तुगलक ने टोपरा के स्तंभ को
फिरोजशाह कोटला में स्थापित कराया तो इस स्तंभ को कुशक के जंगलों में शिकार महल
में स्थापित किया था। पर आगे इस स्तंभ की कहानी और दर्दनाक है। मुगल शासक
फर्रुखसियर (1713-1719) के शासन काल में इस स्तंभ पर निशाना
लगाकर विस्फोट किया गया, जिससे इसके पांच टुकड़े हो गए
थे। यह विस्फोट मजाक मजाक में ही किया गया था। इस पर लिखे अभिलेखों को भी आरी से
मिटाने की कोशिश की गई।
ब्रिटिश काल में एक बार फिर जोड़ा गया - बाद में ब्रिटिश काल में इसे जोड़ने की कोशिश की गई। एशियाटिक
सोसायटी ऑफ बंगाल को इसके टुकड़े भेजे गए। वर्ष 1866 में ये वापस लाए गए और 1867 में इसे वर्तमान
स्थल पर स्थापित कर दिया गया।
इस मीनार के टुकड़ों को जोड़ने में ब्रिटिश शासन की भी भूमिका रही। हो सकता है इस स्तंभ के ऊपर भी शेर की आकृति बनी रही हो, जैसा कि लौरिया नंदनगढ़ और वैशाली के अशोक स्तंभ के ऊपर बनी हुई है।
इस मीनार के टुकड़ों को जोड़ने में ब्रिटिश शासन की भी भूमिका रही। हो सकता है इस स्तंभ के ऊपर भी शेर की आकृति बनी रही हो, जैसा कि लौरिया नंदनगढ़ और वैशाली के अशोक स्तंभ के ऊपर बनी हुई है।
अब इस अशोक स्तंभ
ऊंचाई 10 मीटर यानी 33 फीट है। हालांकि
हिंदूराव अस्पताल के पास स्थापित अशोक स्तंभ जर्जर हो गया है। इसमें लिखीं
सम्राट अशोक की राजाज्ञाएं
मिट रही हैं। इस मीनार पर ब्राह्मी लिपि में अशोक के
धर्म सन्देश लिखे गए हैं जिन्हें 1837 में जेम्स
प्रिंसेप ने पढ़ने की कोशिश की थी।
स्तंभ के बाहर ताला लगा, कोई सुरक्षा नहीं
हाल के दिनों में भारतीय
पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के दिल्ली सर्किल ने इस अशोक स्तंभ के फाउंडेशन को
मजबूती देने के लिए संरक्षण कार्य किया है। पर दुखद है कि इस स्तंभ के बाहर ताला
लगा रहता है। यहां कोई सुरक्षा गार्ड भी तैनात नहीं है। प्राचीन भारत की इस महान
विरासत को देखने वाले कम ही लोग यहां हर रोज पहुंचते हैं।
-
विद्युत
प्रकाश मौर्य- vidyutp@gmail.com
(ASHOKA
PILLER, BARA HINDURAO, KAMLA NEHRU RIDGE, DELHI )
No comments:
Post a Comment