क्या आपको पता है कि मौलाना अबुल कलाम आजाद की मजार कहां है। स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री, आईआईटी, आईआईएम, यूजीसी जैसी संस्थाओं की शुरुआत करने वाले मौलाना आजाद की मजार दिल्ली के जामा मसजिद के पास मीना बाजार में है। हालांकि आसपास के बहुत कम लोगों को इस मजार के बारे में जानकारी है। मजार के प्रवेश द्वार पर दुकानदारों ने कब्जा जमा रखा है।
स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा
मंत्री थे मौलाना अबुल कलाम आजाद। ग्यारह वर्षों तक
शिक्षामंत्री रहते हुए उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए
उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना में भूमिका निभाई।
भारतीय औद्योगिक संस्थान, आईआईटी और विश्वविद्यालय
अनुदान आयोग की स्थापना का श्रेय उन्ही को जाता है। संगीत
नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी की
स्थापना उन्ही के कार्यकाल में हुई। उनके द्वारा
स्थापित भारतीय सांस्कृतिक सम्बंध परिषद आज कला, संस्कृति
और साहित्य के विकास और संवर्धन के क्षेत्र में एक अग्रणी संस्था है।
मरणोपरांत भारत रत्न
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म 11 नवंबर, 1888 में मक्का में हुआ था। उनका असली नाम अबुल कलाम गुलाम मोहिउद्दीन था । उनके पिता मौलाना
खैरुद्दीन ने एक अरब महिला ’आलिया’ से विवाह किया। मौलाना आजाद का निधन 22 फरवरी, 1958 को दिल्ली
में हुआ। साल 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न
से सम्मानित किया गया।
इंडिया विन्स फ्रीडम’
मौलाना आजाद ने कई
पुस्तकों की रचना और अनुवाद भी किया । उनके द्वारा रचित पुस्तकों में ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ प्रमुख हैं। इसका प्रकाशन 1957 में हुआ था। मौलाना आजाद ने उर्दू, हिन्दी, फारसी, बंगाली, अरबी
और अंग्रेजी सहित कई भाषाओँ में महारत हासिल कर ली थी । वे कवि, लेखक, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। छोटी उम्र में ही उन्होंने कुरान के पाठ में
निपुणता हासिल कर ली थी। उन्होंने काहिरा के अल अजहर विश्वविद्यालय में शिक्षा
प्राप्त की थी। साल 1912 में उन्होंने ‘अल हिलाल’ नामक एक उर्दू अखबार का प्रकाशन प्रारंभ किया। इस अखबार ने हिन्दू-मुस्लिम
एकता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महादेव देसाई की पुस्तक

भारत पाक विभाजन के खिलाफ
मौलाना अबुल कलाम
भारत-पाकिस्तान बंटवारे के सख्त ख़िलाफ़ थे। मौलाना आज़ाद कभी भी मुस्लिम लीग की
द्विराष्ट्रवादी सिद्धांत के समर्थक नहीं बने। उन्होंने हमेशा इसका खुलकर इसका विरोध किया। भारत विभाजन के समय भड़के
हिन्दू-मुस्लिम दंगों के दौरान मौलाना आजाद ने हिंसा प्रभावित बंगाल, बिहार, असम और पंजाब राज्यों का दौरा किया और
वहां शरणार्थी शिविरों में रसद आपूर्ति और सुरक्षा का बंदोबस्त किया।
हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर
आगरा में 1921 में दिए अपने एक भाषण में उन्होंने कहा, मैं यह
बताना चाहता हूं कि मैंने अपना सबसे पहला लक्ष्य हिंदू-मुस्लिम एकता रखा है। मैं दृढ़ता के साथ मुसलमानों से कहना चाहूंगा कि यह उनका कर्तव्य है कि वे
हिंदुओं के साथ प्रेम और भाईचारे का रिश्ता कायम करें जिससे हम एक सफल राष्ट्र का
निर्माण कर सकेंगे।
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