
हेलियोडोरस स्तंभ देखने के बाद
विदिशा शहर में पहुंच गया हूं। आटोरिक्शा ने हमें विदिशा शहर के उत्तरी छोर पर
उतार दिया है। यहां पर मेला लगा हुआ है। मैं पैदल चलता हुआ शहर को देखता हुआ आगे
बढ़ रहा हूं।
कुशवाहा धर्मशाला से थोड़ा आगे चलने पर मैंने एक दुकानदार से पूछा कि
मुझे सिटी म्युजियम देखने जाना है। उन्होंने कहा दूर है बैटरी रिक्शा पर बैठ जाइए।
इस के बाद मैं बैटरी रिक्शा पर बैठ गया। पर इस दौरान विदिशा शहर को देखकर बड़ी
निराशा हुई।
विदिशा देश के प्राचीनतम
ऐतिहासिक शहरों में से एक है। विदिशा लोकसभा क्षेत्र है। यहां से मध्य प्रदेश के
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज जैसे लोग
सांसद रह चुके हैं। पर विदिशा मध्य प्रदेश के सबसे अव्यवस्थित और गंदे शहरों में
शुमार है। शहर की सड़के बेतरतीब हैं। शहर को योजनाबद्ध ढंग से विकसित नहीं किया
गया है। इतने प्राचीन शहर को हेरिटेज सिटी या अमृत योजना का भी लाभ नहीं मिला है।
केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों से ये उपेक्षा का शिकार है।
साल 2018 मे केंद्र सरकार
द्वारा लागू की गई अमृत सिटी योजना में विदिशा नगरपालिका को शामिल किया गया है। पर
अभी इसका कोई असर दिखाई नहीं देता। अमृत सिटी योजना में भी ग्रीन बेल्ट बढ़ाने और
सालिड वेस्ट मटेरियल के निष्पादन का प्रावधान किया गया है। शहर का बस स्टैंड बड़ा
ही गंदा और असुविधाजनक है। आसपास की सड़कों पर स्वच्छ भारत अभियान का कोई असर
दिखाई नहीं देता।
विदिशा को ऐतिहासिक व
पुरातात्विक दृष्टिकोण से क्षेत्र मध्य भारत का महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है।
आजकल विदिशा से तीन किलोमीटर उत्तर में बेसनगर नामक एक छोटा-सा गांव है,
यहां प्राचीन विदिशा नगरी हुआ करती थी।
विदिशा नगर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था। यह बाद में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी-सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है। विदिशा के आसपास विंध्य पर्वत की श्रेणियां हैं जो ज्यादा ऊंची नहीं है। इस क्षेत्र को वरदान है कि यहां कभी सूखा नहीं पड़ता। विदिशा के आसपास शहर से 12 किलोमीटर दूर मुरेल खुर्द में बौद्ध स्तूप देखा जा सकता है।
विदिशा नगर पहले दो नदियों के संगम पर बसा हुआ था। यह बाद में दक्षिण की ओर बढ़ता जा रहा है। इन प्राचीन नदियों में एक छोटी-सी नदी का नाम वैस है। इसे विदिशा नदी के रूप में भी जाना जाता है। विदिशा के आसपास विंध्य पर्वत की श्रेणियां हैं जो ज्यादा ऊंची नहीं है। इस क्षेत्र को वरदान है कि यहां कभी सूखा नहीं पड़ता। विदिशा के आसपास शहर से 12 किलोमीटर दूर मुरेल खुर्द में बौद्ध स्तूप देखा जा सकता है।
नगर के सरकिट हाउस के सामने
विदिशा का जिला संग्रहालय स्थित है। इसका निर्माण 1964 में हुआ था। पर यह आजकल
बदहाली का शिकार है। इसका प्रवेश टिकट दस रुपये का है। यह सुबह दस बजे से शाम पांच
बजे तक खुला रहता है। संग्रहालय हर सोमवार को बंद रहता है। हालांकि संग्रहालय के
अंदर संग्रह काफी अच्छा है।
पर संग्रहालय की देखभाल बिल्कुल नहीं की जा रही है।
तमाम कलाकृतियां और उसके आसपास गंदगी का आलम है। संग्रहालय के अंदर रोशनी का
इंतजाम भी अच्छा नहीं है। कई मूर्तियां जिन पैडल स्टल पर रखे हैं,
उनको भी दीमक चाट चुके हैं। कई बेशकीमती पुरातत्व महत्व की
प्रतिमाएं बाहर खुले में पड़ी हैं। पूरी बिल्डिंग जगह-जगह से दरक रही है। थोड़े से
पानी गिरने पर ही उसके अंदर पानी भर जाता है।
संग्रहालय में प्रदर्शित कलाकृतियों
में शैव,
वैष्णव, शाक्त, जैन एवं
अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं और विदिशा उत्खनन से प्राप्त सामग्री है। वर्तमान
में इस संग्रहालय में लगभग 1700 पुरावशेष संकलित है। यहां पर दूसरी सदी ईसा पूर्व
की यक्ष प्रतिमा खास आकर्षण है।
यक्षराज कुबेर की विशालतम (3.36 गुणा 1.36 मीटर) प्रतिमा भी देखी जा सकती है जो सफेद बलुआ प्रस्तर पर निर्मित है। संग्रहालय में प्रदर्शित प्रतिमाओं में गणेश की नृत्य एवं ललितासीन प्रतिमाएं, शिव नटेश, उमा महेश्वर, भैरव भी काफी महत्वपूर्ण हैं।
सूर्य की दुर्लभ प्रतिमा - यहां पर ग्यारहवीं सदी की दुर्लभ सूर्य की प्रतिमा है। इसमें सूर्य रथ पर सवार होकर निकलते हुए दिखाए गए हैं। यह सूर्य का भिल्लस्वामिन रूप है जिसके नाम पर विदिशा का नाम भेलसा कहा जाता है। पर यह प्रतिमा भी बड़े खराब हाल में रखी गई है।
यक्षराज कुबेर की विशालतम (3.36 गुणा 1.36 मीटर) प्रतिमा भी देखी जा सकती है जो सफेद बलुआ प्रस्तर पर निर्मित है। संग्रहालय में प्रदर्शित प्रतिमाओं में गणेश की नृत्य एवं ललितासीन प्रतिमाएं, शिव नटेश, उमा महेश्वर, भैरव भी काफी महत्वपूर्ण हैं।
सूर्य की दुर्लभ प्रतिमा - यहां पर ग्यारहवीं सदी की दुर्लभ सूर्य की प्रतिमा है। इसमें सूर्य रथ पर सवार होकर निकलते हुए दिखाए गए हैं। यह सूर्य का भिल्लस्वामिन रूप है जिसके नाम पर विदिशा का नाम भेलसा कहा जाता है। पर यह प्रतिमा भी बड़े खराब हाल में रखी गई है।
विदिशा का संग्रहालय देखने के बाद वापस चल पड़ा। रास्ते में दो जगह रूक कर स्ट्रीट फूड का आनंद लेते हुए थोड़ी से पेट पूजा की। विदिशा के बस स्टैंड से भोपाल के लिए प्राइवेट बस ली। मध्य प्रदेश में सरकारी बसें तो चलती ही नहीं। भोपाल के हमिदिया रोड के पास स्थित नादरा बस स्टैंड पहुंचते हुए शाम गहरा गई है।
मैं हमिदिया रोड के ही एक होटल में रात्रि भोजन के लिए रुक गया। सुस्वादु भोजन के बाद भोपाल जंक्शन पर पहुंचकर अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगा। पर ट्रेन आने में अभी समय है तो भोपाल जंक्शन के प्लेटफार्म नबंर एक वाले हिस्से में बाहर घूमने पहुंचा। स्टेशन के बाहर एक विशाल तिरंगा झंडा लहराने लगा है। मेरा आरक्षण 12713 तेलंगाना एक्सप्रेस में है। टिकट वेटिंग था जो अब कन्फर्म हो चुका है। ट्रेन समय से चल रही है। रात दस बजे ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर लग गई है। तो सायोनारा...
मैं हमिदिया रोड के ही एक होटल में रात्रि भोजन के लिए रुक गया। सुस्वादु भोजन के बाद भोपाल जंक्शन पर पहुंचकर अपनी ट्रेन का इंतजार करने लगा। पर ट्रेन आने में अभी समय है तो भोपाल जंक्शन के प्लेटफार्म नबंर एक वाले हिस्से में बाहर घूमने पहुंचा। स्टेशन के बाहर एक विशाल तिरंगा झंडा लहराने लगा है। मेरा आरक्षण 12713 तेलंगाना एक्सप्रेस में है। टिकट वेटिंग था जो अब कन्फर्म हो चुका है। ट्रेन समय से चल रही है। रात दस बजे ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर लग गई है। तो सायोनारा...
हमारी मध्य प्रदेश की यात्रा में फिलहाल इतना ही। फिर किसी और यात्रा पर चलेंगे । पढ़ते रहिए, दानापानी।
कभी ख्वाबों में कभी तेरे दर पे, कभी दर बदर,
ऐ गमे जिंदगी तुझे ढूंढते ढूंढते हम कहां भटक गए।
aapki post jaankaariyon se bhari hui hoti hai aur chitra ke saath saath chalte hue ham bilkul aapke saath ho lete hain " aap mere pasandida blog lekhak hain vidyut jii .
ReplyDeletevidisha ke baare mein jaan kar dukh hua magar hairaanii nahin hui kyunki bahut saare sthalon kaa kamobesh yahi haal hai . saajhaa karne ke liye shukriya aapka .
aapke blog par google input se hindi mein tippani kyun nahin ho paati hai ??
बिल्कुल होनी चाहिए।
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