
उदयगिरी से हमलोग विदिशा की राह
पर हैं। पर हमारी उत्सुकता पहले हेलियोडोरस स्तंभ देखने की है। खास तौर पर विदिशा
का रहा हमने इसी स्तंभ को देखने के लिए पकड़ी है। तो हमारा आटो रिक्शा विदिशा शहर
में नहीं प्रवेश करता है। दरअसल यह स्तंभ विदिशा शहर से चार किलोमीटर बाहर स्थित
है। विदिशा शहर के बाहर विदिशा अशोक नगर हाईवे पर हलाली नदी का पुल पार करने के
बाद हमारा आटो एक जगह दाहिनी तरफ जाने वाली एक सड़क पर मुड़ गया। हलाली बेतवा की
सहायक नदी है। यहां ग्रामीण क्षेत्र में एक किलोमीटर जाने के बाद सड़क के दाहिनी
तरफ हेलियोडोरस स्तंभ हमारी नजरों के सामने था। इसे देखकर हमारी खुशियां दोगुनी हो
उठी। तकरीबन 2100 साल से ज्यादा पुराना ये स्तंभ आज भी नया नया सा ही प्रतीत होता
है।
खंभा बाबा और गरुड़ ध्वज स्तंभ - स्थानीय लोग हेलियोडोरस स्तंभ को खंभा बाबा के नाम से जानते हैं। इसका दूसरा नाम गरुड़ ध्वज स्तंभ भी है। खास तौर पर आसपास का मछुआरा समाज की इसकी सदियों से पूजा करता आ रहा है।
सन 1921 में ग्वालियर रियासत के पुरातत्व विभाग ने इस स्तंभ का जीर्णोद्धार कराया। तब माधव राव सिंधिया अलीराज बहादुर इसके शासक थे। यहां पर ग्वालियर स्टेट की ओर से एक पट्टिका लगातर इसकी जानकारी दी गई है।
हेलिओडोरस स्तम्भ पूर्वी मालवा के बेसनगर (वर्तमान
विदिशा) के बाहरी इलाके में स्थित है। इसे स्थानीय भाषा में खाम बाबा के नाम से भी
पुकारते हैं। इस स्तंभ की सबसे बड़ी विशेषता है कि इसे एक ही पत्थर को काटकर बनाया
गया है। यह स्तम्भ ऐतिहासिक
दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि देश बहुत
ही कम ऐतिहासिक स्तंभ है जो ईसा पूर्व के हों। अशोक द्वारा बनवाए गए स्तंभों के
बाद हेलियोडोरस का यह स्तंभ हमारे देश के प्राचीनतम ऐतिहासिक निधियों में से एक
है।
इसका निर्माण 110
ईसा पूर्व यूनानी राजदूत हेलिओडोरस ने कराया था। इसलिए स्तंभ को
उसके नाम पर ही जाना जाता है। आखिर ये हेलियोडोरस कौन था। वह यूनानी राजा अंतलिखित
का शुंग राजा भागभद्र के दरबार में दूत बनकर आया था। उसके बारे में कहा जाता है कि
वह वैदिक धर्म से काफी प्रभावित था। अपनी धर्मपरायणता की वजह से ही उसने इस स्तंभ
का निर्माण कराया।
इस स्तंभ पर पाली भाषा में ब्राम्ही लिपि का प्रयोग करते हुए एक अभिलेख
उत्कीर्ण कराया गया है। यह अभिलेख स्तंभ इतिहास बताता है। इस अभिलेख से पता चलता
है कि नवें शुंग शासक महाराज भागभद्र के दरबार में तक्षशिला के यवन राजा अंतलिखित की ओर से दूसरी सदी ईसा पूर्व हेलिओडोरस नाम का राजदूत
नियुक्त हुआ। इस राजदूत ने वैदिक धर्म की व्यापकता से
प्रभावित होकर भागवत धर्म स्वीकार कर लिया। तब हिंदू धर्म ऐसे ही नामों से जाना
जाता था। इस राजदूत ने भक्तिभाव से ओत प्रोत होकर एक विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया और उसके सामने गरुड़ ध्वज स्तंभ
बनवाया। हालांकि अब उस विष्णु मंदिर का कोई अवशेष यहां पर नहीं मिलता है। पर यह
स्तंभ बड़े शान से यहां पर खड़ा है।
पुरातात्विक अभिलेखों से पता
चलता हैं कि प्राचीन काल में यहां एक वृत्ताकार मंदिर था,
जिसकी नींव 22 सेंटीमीटर चौड़ी तथा 15 से 20 सेंटीमीटर गहरी मिली
है। गर्भगृह का क्षेत्रफल 8.13 मीटर का था। प्रदक्षिणा पथ की चौड़ाई 2.5 मीटर थी।
इसकी बाहरी दीवार भी वृत्ताकार थी। पूर्व की ओर एक सभामंडप का भी निर्माण कराया
गया था।
आज हेलियोडोरस स्तंभ को देखने
दिन भर में गिने चुने सैलानी ही आते हैं। आसपास लोग इस स्तंभ के ऐतिहासिक महत्व को
लेकर ज्यादा जागरूरत भी नहीं है।
खंभा बाबा और गरुड़ ध्वज स्तंभ - स्थानीय लोग हेलियोडोरस स्तंभ को खंभा बाबा के नाम से जानते हैं। इसका दूसरा नाम गरुड़ ध्वज स्तंभ भी है। खास तौर पर आसपास का मछुआरा समाज की इसकी सदियों से पूजा करता आ रहा है।
सन 1921 में ग्वालियर रियासत के पुरातत्व विभाग ने इस स्तंभ का जीर्णोद्धार कराया। तब माधव राव सिंधिया अलीराज बहादुर इसके शासक थे। यहां पर ग्वालियर स्टेट की ओर से एक पट्टिका लगातर इसकी जानकारी दी गई है।
कैसे पहुंचे – विदिशा रेलवे
स्टेशन से हेलियोडोरस स्तंभ की दूरी पांच किलोमीटर है। यह अशोक नगर हाईवे पर जाते हुए दाहिनी तरफ स्थित
है। शहर से कोई भी बैटरी रिक्शा वाला आपको इस स्तंभ तक पहुंचा देगा। स्तंभ देखने
के लिए आप सूर्योदय से सूर्यास्त तक पहुंच सकते हैं।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(HELIODORUS PILLER, VIDISHA, KHANBHA BABA, MP )
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