सांची से अब उदयगिरी की गुफाओं
की ओर। एक उदयगिरी ओडिशा में है तो दूसरा मध्य प्रदेश में विदिशा के पास। इस बार
उदयगिरी की गुफाओं को देखना हमारी सूची में है। उदयगिरी सांची से नौ किलोमीटर की
दूरी पर है। यह विदिशा शहर से पांच किलोमीटर की दूरी पर है। सांची से उदयगिरी जाने
के लिए आरक्षित वाहन से जाना सुविधाजनक है।
सांची के स्तूप में मेरी मुलाकात
तालबेहट के राजीव योगी से हुई। उन्हें भी उदयगिरी जाना है। हमने साझे तौर पर एक
आटोरिक्शा बुक कर लिया जो हमें उदयगिरी घुमाने के बाद विदिशा शहर के पास हेलियोडोर
स्तंभ भी दिखाएगा। तो हम चल पड़े हैं उदयगिरी की ओर। वैसे उदयगिरि विदिशा शहर से
वैसनगर होते हुए पहुंचा जा सकता है। नदी से यह गिरि लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर
है। यह बेतवा और वैस नदी के बीच की पहाड़ी है।
उदयगिरी में पहाड़ी के पूरब की
तरफ पत्थरों को काटकर गुफाएं बनाई गई हैं। इन गुफाओं में प्रस्तर- मूर्तियों के प्रमाण मिलते
हैं, जो भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में मील का पत्थर माना
जाता है। सच मानिए ये गुफाएं अदभुत हैं।
गुप्त काल की मूर्तियां -
उदयगिरि पांचवीं शताब्दी में
गुप्त साम्राज्य के दौरान चंद्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में इन गुफाओं पर फिर से काम किया गया। की गुफाओं में बेहद जटिल नक्काशी की गई है। यह
भारत की सबसे प्राचीन हिंदू देवी देवताओं पर आधारित मूर्तियों और चित्रों वाली
गुफा है। इसका स्थान विश्व प्रसिद्ध हिंदू गुफा मंदिरों में आता है। इसमें हिंदू इतिहास, संस्कृति
और आध्यात्मिकता के दर्शन होते हैं।
इस गुफा में पाए
जाने वाली अधिकांश मूर्ति भगवान शिव और उनके अवतार को समर्पित है। ये गुफाएं गुप्त
काल की सबसे प्रमुख पुरातात्विक क्षेत्र है और भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण
द्वारा इसे सुरक्षित कर लिया गया है।
विष्णु की लेटी हुई
प्रतिमा - गुफा में भगवान
विष्णु के लेटे हुए मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा है। इसकी सुंदरता देखते ही बनती
है। पत्थरों को काट कर बनाई ये
गुफाएं गुप्त काल के कारीगरों के कौशल और कल्पनाशीलता का का अदभुत नमूना है। गुफा
का प्रवेश द्वार भी लोगों को अचरज में डाल देता है।
वराह अवतार -
मूर्तिकला की दृष्टि से पांचवीं गुफा सबसे महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। इसमें वराह अवतार का दृश्य अंकित किया गया है। यहां वराह भगवान का बांया पांव
नाग राजा के सिर पर दिखलाया गया है। यहां वराह को मानव और पशु संयुक्त रूप में दिखाया
गया है।
इसी तरह छठी गुफा में दो द्वारपालों, विष्णु महिष-मर्दिनी एवं गणेश की मूर्तियां बनाई हैं। गुफा संख्या छह से प्राप्त लेख से ज्ञात होता है कि उस क्षेत्र पर सनकानियों का अधिकार था।
उदयगिरी की गुफाओं में महादेव - शिव
का मंदिर (गुफा संख्या - 4)
शिव
को समर्पित उदयगिरी की इस गुफा का आकार 13 फीट 11 इंच गुणा 11 फीट 8 इंच है। वीणा गुफा के नाम से प्रसिद्ध इस गुफा के अंदर एक शिवलिंग
है। इसके द्वार पर किन्नर को वीणा बजाते हुए दिखलाया गया है। शिवलिंग के सामने के
भाग पर एक भव्य मानव आकृति का शिवमुख है। इसमें
ऊपर जटा- जूट तथा मस्तक के बीच में तीसरा नेत्र दिखाया गया है। यह मूर्ति
गुप्तकालीन मूर्तियों में कला- कौशल के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
इस गुफा मंंदिर की दीवारों पर भी सुंदर कलाकारी की गई है। इस गुफा
के उत्तर की तरफ बने दालान में अष्ट दुर्गाओं की मूर्तियां बनी हैं, जिसमें त्रिशूल व आयुध अभी भी दिखलाई
पड़ते हैं। पहले गुफा के सामने भी एक दालान था, जो अब नहीं है।
अब जहां शिव हैं तो उनका वाहन नंदी भी तो होगा ही न। ये नंदी की सबसे प्राचीनतम मूर्तियों में से एक हो सकता है। उदयगिरी के द्वितीय गुफा के लेख
में चन्द्रगुप्त के सचिव पाटलिपुत्र निवासी वीरसेन उर्फ शाव द्वारा शिव मन्दिर के रूप में गुफा निर्माण कराने
का उल्लेख मिलता है।उदयगिरी की गुफाएं दरअसल उस दौर की बनी हिंदू मूर्तियां जब
हिंदू धर्म में मूर्ति पूजा की शुरुआत हो रही थी। आमतौर पर हमें छठी शताब्दी से पहले की हिंदू
देवी देवताओं की मूर्तियां नहीं मिलती हैं। तो उदयगिरी देश के प्राचीनतम हिंदू मूर्तियों में शुमार है।
उदयगिरी की गुफाओं को देखने के
लिए आपके पास कम से कम दो घंटे का समय होना चाहिए। कुछ लोग उदयगिरी को भी हाउंटेड यानी भूतहा स्थल मानते हैं। पर ऐसा कुछ नहीं है। आप निश्चिंत रहिए। अभी उदयगिरी का सफर खत्म नहीं हुआ है। बने रहिए हमारे साथ । आगे भी बहुत कुछ है। फिर हमलोग अब चलेंगे प्राचीन विदिशा नगरी की ओर।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(UDAIGIRI, CAVES, VIDISHA, MP)
रोचक आलेख। उदयगिरि की गुफाएं देखने का मन करने लगा है। उम्मीद है जल्द ही उधर का चक्कर लगेगा।
ReplyDeleteहां, जरूर जाइए
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