जब 1857 में सिपाही विद्रोह हुआ
तो विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली की ओर कूच कर दिया था। इस विद्रोह में ब्रिटिश सेना
के कई सिपाही मारे गए थे। उनकी याद में दिल्ली में एक स्मारक बना है। इसे कहते हैं
म्युटिनी मेमोरियल।
यह म्युटिनी मेमोरियल दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से
ज्यादा दूर नहीं है। आप यहां पर तीस हजारी या पुल बंगश मेट्रो स्टेशन से चलकर
पहुंच सकते हैं।
द म्यूटिनी मेमोरियल नाम
ब्रिटिश सरकार ने दिया था। इसे अब अजीतगढ़ के नाम से जाना जाता है। यह ब्रिटिशकालीन
स्मारक ओल्ड टेलीग्राफ बिल्डिंग, कश्मीरी
गेट, नई दिल्ली के सामने स्थित है। यह उन सभी की याद में
बनाया गया था, जिन्होंने 1857 के
भारतीय सिपाही विद्रोह के दौरान दिल्ली फील्ड फोर्स, ब्रिटेन
की ओर से लड़ाई लड़ी थी।
इस मेमोरियल का निर्माण 1863
में ब्रिटिश सरकार द्वारा करवाया गया। मतलब सिपाही विद्रोह के छह साल बाद। इसका
निर्माण ब्रिटिश पीडब्लूडी विभाग द्वारा करवाया गया। इसके निर्माण में लाल पत्थरों
का इस्तेमाल किया गया है। इस मेमोरियल को बहुत तेजी से डिजाइन किया गया और उसका
निर्माण भी तेजी से किया गया। तब इसके निर्माण को
लेकर काफी आलोचना भी हुई।
मेमोरियल का निर्माण गोथिक शैली
में किया गया। इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसे एक
विशाल चबूतरे पर निर्मित किया गया है। इसकी दीवारों अष्टकोणीय है। यह चार मंजिला
संरचना में निर्मित है। इस मेमोरियल के चारों तरफ संगमरमर के पटल पर दिल्ली और
मेरठ के आसपास ब्रिटिश सेना के साथ हुए विद्रोह के बारे में जानकारियां भी दी गई
हैं।
आजादी के बाद अजीतगढ़
स्वतंत्रता के बाद सन 1972 में
जब देश आजादी की रजत जयंती मना रहा था, इस स्मारक का नाम अजीतगढ़ दिया गया। म्युटिनी
मेमोरियल में जो सिपाही विद्रोह के दौरान मारे गए उन्हें ब्रिटिश सरकार ने दुश्मन
के तौर पर चित्रित किया है। पर भारत सरकार ने इन्हें रजत जयंती के मौके पर वीर
सेनानी घोषित किया।
क्या म्युटिनी मेमोरियल भुतहा
है...
कुछ लोग म्युटिनी मेमोरियल को
भुतहा मानते हैं। कई लोगों को कहना है कि रात के समय में यहां पर कई तरह आवाजें
सुनाई देती हैं। लोगों का मानना है कि 1857 के विद्रोह में मारे गए सिपाहियों की
आत्माएं यहां भटकतीहैं। हालांकि इसमें कोई सच्चाई नजर नहीं आती।
मैं जब एक दोपहर में म्युटिनी
मेमोरियल को देखने पहुंचा हूं तो पाता हूं कि यहां पर चौकीदार तैनात है। चौकीदार
ने मेमोरियल के दरवाजे पर ताला लगा रखा है। हालांकि मेरे आग्रह पर वह दरवाजे का
ताला खोल देता है। मैं अंदर जाकर विशाल मेमोरियल को चारों तरफ से घूम घूम कर देख
पाता हूं। हर रोज कुछ लोग इस मीनार को देखने पहुंचते हैं। पर प्रतिदिन कुछ विदेशी
नागरिक इसे देखने जरूर पहुंचते हैं।
कैसे पहुंचे - दिल्ली मेट्रो के पुलबंगश मेट्रो स्टेशन से
उतरने के बाद कमला नेहरु रिज वाली सड़क पर चलें। इसमें पहले म्युटिनी मेमोरियल ही
आएगा। इससे 200 मीटर आगे बाड़ा हिंदुराव अस्पताल की ओर आगे बढ़ने पर अशोक स्तंभ आ
जाता है।
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( DELHI, MUTINY MEMORIAL, KAMLA NEHRU RIDGE )
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