हम पहुंच गए विश्व विरासत स्थल भीम बेटका के प्रवेश द्वार पर। यहां पर
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षेण के सुरक्षा गार्ड लगे हुए हैं। यहां पर हमें एक गाइड
भी मिलते हैं जो कुछ सौ रुपये लेकर हमें भीम बेटका दिखाने की बात करते हैं। पर उनकी
कोई खास जरूरत नहीं है। यहां पर सभी गुफाओं की ओर जाने के लिए पथ संकेतक लगे हुए
हैं जिनकी सहायता से आराम से घूमा जा सकता है। हां मेरी सलाह है कि अगर आप ठीक से भीम बेटका देखना चाहते
हैं तो कम से कम तीन घंटे का समय रखें अपने पास।
प्रागैतिहासिक चित्रकला के सजे शैलाश्रय- भीम बेटका राजा भोज की नगरी भोजपुर
के निकटवर्ती इलाके में औबेदुल्लागंज से होशंगाबाद के पहाड़ी क्षेत्र में
प्रागैतिहासिक चित्रकला से युक्त शैलाश्रयों की श्रृंखला है। यहां छह सौ से अधिक
चित्रित शैलाश्रयों में लघु पाषाण काल से लेकर आरंभिक ऐतिहासिक काल तक के चित्र देखे
जा सकते हैं। इनमें आरंभिक (लगभग 10
हजार वर्ष ईसा पूर्व) के चित्रों में आखेट दृश्य, युद्ध, यात्राएं, मधु संचयन,
नृत्य-गान और अन्य सामाजिक विषयों का चित्रण देखा जा सकता है।
रोमांचित कर देती हैं गुफाएं - भीम बेटका की गुफाएं यहां आने वाले सैलानियों को हजारों साल पुराने अतीत में ले जाकर रोमांचित कर देती हैं। में वन्य प्राणियों का अंकन काफी महत्वपूर्ण ढंग से हुआ है। भीम बैठका की सभा गुफा,
जू-रॉक और अन्य कुछ गुफाओं में गेरुए, सफेद और
हरे रंग से चित्रकारी की गई है। इन चित्रों के अलंकरण से प्राग ऐतिहासिक युग में
प्रचलित आभूषण और उस समय के नागरिकों की अलंकरणप्रियता का भी बखूबी एहसास होता है।
हजारों साल नजरों से ओझल रहीं - भीम बेटका की ये गुफाएं हमारी
नजरों से हजारों साल तक ओझल थी। पुरातत्तविद डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर ने इन
शैलाश्रय की खोज स्वतंत्रता के बाद 1957 में की थी। मध्य प्रदेश सरकार ने डॉक्टर
वाकणकर की स्मृति में पुरातत्व के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रीय
सम्मान स्थापित किया है। अगस्त 1990 में भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण ने इसे
राष्ट्रीय महत्व का स्थल घोषित किया।
आदि मानवों का निवास - भीमबेटका प्रवेश द्वार से ही
आपको अचरज में डालने लगती है। आदि मानव जब घर नहीं बनाते थे इन्ही पत्थरों की
गुफाओं में अपना आश्रय बनाते थे। इन्ही गुफाओं में उन्होंने फूलों के रंग से दिल
की कलम से कुछ रंग बिरंगे चित्र उकेरे हैं जो आज भी ताजे ताजे नजर आते हैं। ये
अपने देश की सबसे प्राचीनतम रचनाओं में से एक है जिनके चित्रकारों के हमें नाम
नहीं मालूम। पर इनका सौंदर्य देखकर दिल ये सवाल अनायास ही पूछ बैठता है कि ये कौन
चित्रकार है...ये कौन चित्रकार है...
महाभारत के भीम से रिश्ता - लोग इसका संबंध महाभारत काल के महान
वीर भीम से भी जोड़ते हैं। इसी के नाम पर इसको भीम बैठका कहा गया जो कालांतर में
भीमबेटका कहलाने लगा। भीमबेटका में कुल 600 शैलाश्रय मिले हैं जिनमें से 275 में
चित्र बनाए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख शैलाश्रयों को आसानी से देखा जा सकता है।
आदि मानवों ने चित्रकारी के लिए
प्रमुख रूप से गेरुआ, लाल और सफेद रंगों का चयन किया था। कहीं कहीं पर हरा और पीला
रंग भी देखा जा सकता है। पत्थर की गुफाओं में प्यालेनुमा निशान को एक लाख साल
पुराना माना गया है। यानी तब यहां मानव जीवन था।
भीम बेटका
की गुफाओं में नृत्य-संगीत की तसवीरें, लड़ाई करते हुए जानवर, कई
तरह के मुखौटों में उस समय का जीवन देखा समझा जा सकता है। इसके साथ ही बहुत से
अलग-अलग जानवरों जैसे, कुत्ते, बन्दर,
हाथी, हिरन और मगरमच्छ का सुन्दर चित्रण किया
गया है।
कुछ ऐसा है भीमबेटका
10 हजार वर्ष ईसा पूर्व के
आदिमानवों के बनाए चित्र हैं यहां।
1893 हेक्टेयर क्षेत्र मे
भीमबेटका का विस्तार है
10280 हेक्टेयर में इसका बफर जोन
विस्तारित है।
1957 में इन रॉक शेल्टर्स की
खोज की गई।
600 शैलाश्रय हैं कुल भीमबेटका
क्षेत्र में
275 चित्रित पत्थर मिले हैं इस
क्षेत्र में
कभी मौका लगे तो आप खुद
भीमबेटका पहुंचे और अपने नजरिए से हमारी इस महान विरासत को महसूस करें। अब मेरी
वापसी की बारी है। उसी तरह पदयात्रा करते हुए। वापसी में भी कोई लिफ्ट देने वाला
नहीं मिला है। तो अब चलें अगले सफर की ओर...
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( BHIMBETKA, BHOPAL )
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