चंपानेर पावागढ़ में कालिका
माता मंदिर क दर्शन के बाद हमलोग बस स्टैंड वापस लौट आए हैं। अब हम चंपानेर की
ऐतिहासिक इमारतों के दर्शन के लिए चलने वाले हैं जिनके कारण चंपानेर को विश्व
विरासत स्थल का दर्जा मिला है। तो बस स्टैंड के ठीक सामने है शहर की मस्जिद।
दक्षिण के भद्र द्वार से इस मस्जिद के पास पहुंचा जा सकता है। यह मस्जिद 15वीं सदी
में बने विशाल दुर्ग के अंदर स्थित है। अब दुर्ग का अस्तित्व ज्यादा दिखाई नहीं
देता। पर इसकी विशाल और मजबूत दीवारें दिखाई देती हैं।
यहीं पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का टिकट
काउंटर भी है। एक जगह लिया गया टिकट चंपानेर की सभी ऐतिहासिक इमारतों के लिए मान्य
है। तीस रुपये प्रति व्यक्ति का टिकट लेकर हमलोग मसजिद परिसर में प्रवेश कर गए।
मसजिद का लॉन काफी हरा भरा है।
सोलहवीं सदी में इस शहर की
मसजिद का निर्माण पावागढ़ के कुलीन परिवार के लिए कराया गया था। इसके दो विशाल
गुंबद दूर से ही नजर आते हैं। यह एक निजी मस्जिद थी जिसमें खास लोग ही नमाज पढ़ने
आते थे। इसके निर्माण में हिंदू और इस्लामिक वास्तुकला का समावेश है। इसमें स्तंभ
और धरणी (हिंदू ) और स्तंभ और मेहराब ( इस्लामिक) कला का संयोजन दिखाई देता है।
ऊंचे चबूतरे पर बनी यह मस्जिद
56 गुणा 40 मीटर में विस्तारित है। इसमें कुल पांच मेहराब हैं जो इसके वास्तु की
सबसे बड़ी खूबसूरती है। इसमें प्रवेश के लिए पांच मेहराब युक्त प्रवेश द्वार बनाए
गए हैं। बीच में स्थित मेहराब युक्त प्रवेश द्वार सबसे ऊंचा है। इसके दोनों ओर
बहुमंजिला मीनारें बनीं हैं।
प्रवेश द्वार के दोनों ओर सुंदर झरोखे बनें हैं। इन झोरोखों से मसजिद के अंदर सूर्य के प्रकाश आने का सुंदर इंतजाम दिखाई देता है। भरी दोपहरी में भी मस्जिद में ठंडी ठंडी हवा आती रहती है। हर मेहराब युक्त प्रवेश द्वार से लगा हुआ केंद्रीय कतार में एक विशाल गुंबद भी बनाया गया है। हर गुंबद के चारों ओर चार छोटे गुंबद भी बनाए गए हैं। शहर की मसजिद में कंगूरे युक्त मुंडेर भी देखी जा सकती है।
प्रवेश द्वार के दोनों ओर सुंदर झरोखे बनें हैं। इन झोरोखों से मसजिद के अंदर सूर्य के प्रकाश आने का सुंदर इंतजाम दिखाई देता है। भरी दोपहरी में भी मस्जिद में ठंडी ठंडी हवा आती रहती है। हर मेहराब युक्त प्रवेश द्वार से लगा हुआ केंद्रीय कतार में एक विशाल गुंबद भी बनाया गया है। हर गुंबद के चारों ओर चार छोटे गुंबद भी बनाए गए हैं। शहर की मसजिद में कंगूरे युक्त मुंडेर भी देखी जा सकती है।
मसजिद के आगे के हिस्से में छज्जे बने हुए हैं। मंदिर के दक्षिण
पूर्व में नमाजियों के वजू करने के लिए जल कुंड भी बनाया गया है। इस कुंड के पास किले
का पुराना अवशेष देखा जा सकता है। अब किले की दीवारें टूट चुकी हैं। पर मस्जिद
काफी बेहतर हाल में है। मसजिद के आंतरिक दीवारों पर की सज्जा देखने लायक है।
पत्थरों पर कलात्मक तराशी जगह जगह नजर आती है। वास्तुकला के लिहाज से यह देश के
सुंदर मसजिदों में से एक है। हालांकि इस मसजिद में इन दिनों नमाज नहीं होती। पर
पुरात्त्व विभाग ने मसजिद के परिसर को सुंदर ढंग से सजा संवार कर रखा है।
खुलने का समय – शहर की मसजिद को
सूर्योदय से सूर्यास्त तक देखा जा सकता है। यह सातो दिन खुला रहता है। प्रवेश के
लिए 30 रुपये का टिकट लेना पड़ता है। परिसर में पेयजल और शौचालय आदि का इंतजाम
किया गया है। यह पावागढ़ बस स्टैंड के काफी निकट ही स्थित है।
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विद्युत
प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
( CHAMPANER, SHAHAR KI MASZID )
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