वडोदरा का रेलवे
स्टेशन और बस स्टैंड तो आसपास हैं। एयरपोर्ट की दूरी भी रेलवे स्टेशन से महज 4
किलोमीटर है। एयरपोर्ट रोड से आगे बढ़कर हमारी बस चंपानेगर के रास्ते पर दौड़ रही
है। वडोदरा से चंपानेर की दूरी 45 किलोमीटर के करीब है।
चंपानेर पावागढ़ गुजरात के पंचमहल जिले में पड़ता है। यहां वडोदरा या फिर गोधरा से आसानी से पहुंचा जा सकता है। वडोदरा से बस एक घंटे में पावागढ़ पहुंचा देती है। बीच में हालोल नामक शहर आता है। कभी हलोल भी विशाल और समृद्ध शहर हुआ करता था। यहां पर हमारी बस बस स्टैंड के अंदर जाकर थोड़ी देर रुकती है फिर वह पावागढ़ के मार्ग पर चल पड़ती है। चंपानेर का बस स्टैंड छोटा सा है। कोई चहल पहल नहीं है। ऐसा लग रहा हम किसी ठंडे शहर में आ गए हैं।
चंपानेर पावागढ़ गुजरात के पंचमहल जिले में पड़ता है। यहां वडोदरा या फिर गोधरा से आसानी से पहुंचा जा सकता है। वडोदरा से बस एक घंटे में पावागढ़ पहुंचा देती है। बीच में हालोल नामक शहर आता है। कभी हलोल भी विशाल और समृद्ध शहर हुआ करता था। यहां पर हमारी बस बस स्टैंड के अंदर जाकर थोड़ी देर रुकती है फिर वह पावागढ़ के मार्ग पर चल पड़ती है। चंपानेर का बस स्टैंड छोटा सा है। कोई चहल पहल नहीं है। ऐसा लग रहा हम किसी ठंडे शहर में आ गए हैं।
गुजरात का चंपानेर-पावागढ़ शहर
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। यह अतीत में हिंदू, मुस्लिम और जैन धर्म का प्रमुख
केंद्र रहा। इसे यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में सन 2004
में सम्मिलित किया गया था। यहां पर बडे स्तर पर उत्खनन के बाद मिले जैन
और इस्लामिक सांस्कृतिक धरोहर वाले स्थल देखे जा सकते हैं। पर हम पहले कालिका माता
के मंदिर जाएंगे। पहले जीप फिर उड़न खटोले का सफर है। हमने उड़न खटोले का टिकट बस स्टैंड में बने काउंटर से ही ले लिया है।
पावागढ़ बस स्टैंड से कालिका
माता मंदिर तक जाने के लिए शेयरिंग जीप चलती है। यह जीप कालिका माता मंदिर के
प्रवेश द्वार तक ले जाती है। हमलोग एक जीप में बैठ गए जो तुरंत ही भर गई। बस स्टैंड से आगे का रास्ता पहाड़ों पर चढ़ाई वाला
है। पर रास्ते में मनोरम नजारे दिखाई देते हैं।
जीप हमें मंदिर के प्रवेश द्वार
से पहले उतार देती है। यहां से मंदिर तक जाने के दो तरीके हैं। आप उड़न खटोला से
जाएं या फिर सीढ़ियां चढ़ते हुए। पदयात्रा का रास्ता काफी लंबा है। हमलोग
उड़नखटोला का टिकट ले चुके हैं। उड़न खटोला में प्रवेश के लिए भी लंबी लाइन लगी
है।
कालिका माता मंदिर के लिए ये
उड़न खटोला यानी रोपवे का मार्ग 774 मीटर का है। यह तकरीबन 300 मीटर की ऊंचाई पर
ले जाती है। एक केबिन में छह लोग बैठ सकते हैं। रोपवे के ऊपरी तल की ऊंचाई 835
मीटर है। कालिका माता तक पहुंचने के लिए उड़न खटोला सेवा का टिकट बस स्टैंड से भी
मिल जाता है। रोपवे से उतरने के बाद भी तकरीबन आधा किलोमीटर का सीढ़ीदार रास्ते का
सफर है मंदिर तक का। इस रास्ते में दोनों तरफ दुकानें सजी हैं। कालिका माता के
मंदिर के करीब पहुंचने के बाद एक बार फिर तीन मंजिले मकान के बराबर सीढ़ियां चढ़नी
पड़ती है।
चौहान राजाओं की अधिष्ठात्री
देवी - गुजरात के पंचमहल जिले में पावागढ़
की पहाड़ी के शीर्ष पर बना यह कालिका माता मंदिर बहुत प्राचीन है। कहा जाता है कि
विश्वामित्र ने इस मंदिर की स्थापना की थी। इन्हीं ऋषि के नाम से इस पहाड़ी से
निकलने वाली नदी विश्वामित्री कहलाती है। यह नदी वडोदरा शहर से होकर गुजरती है।
कालिका माता पावागढ़ के चौहान राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। मंदिर का बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो चुका है। मंदिर के पास सदन शाह पीर का स्थान भी है। इसलिए यहां तक मुस्लिम श्रद्धालु भी हर रोज आते हैं। ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के राजा महदजी सिंधिया ने कालिका मंदिर की पहाड़ी की चोटी पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनवाईं थीं।
कालिका माता पावागढ़ के चौहान राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। मंदिर का बड़ा हिस्सा ध्वस्त हो चुका है। मंदिर के पास सदन शाह पीर का स्थान भी है। इसलिए यहां तक मुस्लिम श्रद्धालु भी हर रोज आते हैं। ग्वालियर के सिंधिया राजघराने के राजा महदजी सिंधिया ने कालिका मंदिर की पहाड़ी की चोटी पर पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनवाईं थीं।
सती के दाएं पांव का अंगूठा
गिरा था - पावागढ़ पहाड़ी के शिखर पर बना कालिका माता मंदिर,
अति पावन स्थल माना जाता है। यहां सालों भर बड़ी संख्या में
श्रद्धालु आते हैं। कालिका माता का मंदिर देश के शक्तिपीठों की सूची में है। जहां जहां सती के अंग गिरे वहां वहां पर शक्ति पीठ की स्थापना हुई है। कहा
जाता है यहां सती के दाहिने पांव का अंगूठा गिरा था।
सुबह से शाम तक दर्शन - कालिका माता मंदिर का मंदिर श्रद्धालुओं के लिए सुबह से शाम तक खुला रहता है। मंदिर में दर्शन के लिए हर रोज लंबी लाइन लगी रहती है। नवरात्र के मौके पर तो यहां दर्शन में सुबह से लेकर शाम हो जाती है। समान्य दिनों में भी आपको दर्शन के लिए 4 घंटे का समय लेकर चलना चाहिए।
हर साल पावागढ़ परिक्रमा – पावागढ़ में हर साल पावागढ़ परिक्रमा का आयोजन होता है। कुल 44 किलोमीटर की पदयात्रा में दूर दूर से आए लोग हिस्सा लेते हैं। ये परिक्रमा 4 रात 5 दिनों में पूरी की जाती है। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु रास्ते में पड़ने वाले सभी मंदिरों के दर्शन करते हैं। गुजरात और राजस्थान के श्रद्धालुओं में कालिका माता के प्रति अगाध श्रद्धा है।
हर साल पावागढ़ परिक्रमा – पावागढ़ में हर साल पावागढ़ परिक्रमा का आयोजन होता है। कुल 44 किलोमीटर की पदयात्रा में दूर दूर से आए लोग हिस्सा लेते हैं। ये परिक्रमा 4 रात 5 दिनों में पूरी की जाती है। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु रास्ते में पड़ने वाले सभी मंदिरों के दर्शन करते हैं। गुजरात और राजस्थान के श्रद्धालुओं में कालिका माता के प्रति अगाध श्रद्धा है।
- विद्युत प्रकाश मौर्य-- vidyutp@gmail.com
( KALIKA MATA TEMPLE, PAWAGARH, CHAMPANER )
( KALIKA MATA TEMPLE, PAWAGARH, CHAMPANER )
Beautiful temple.
ReplyDeleteThank you
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