मुरुड में जंजीरा किला के अलावा दूसरा आकर्षण समंदर में बना कासा का किला भी है। पर इस किले तक जाने के लिए आपको आरक्षित बोट का सहारा लेना पड़ेगा। यह किला मुरुड से 9 किलोमीटर की दूरी पर समंदर में है। यहां नाव आने और जाने के लिए 1500 से 2000 रुपये तक किराया हो सकता है। कासा किला का निर्माण संभाजी के सेनापति दौलत खान ने करवाया था। इसे पद्म दुर्ग भी कहते हैं। यह दुर्ग जंजीरा किले से दिखाई देता है। पर इस किले की सैर के लिए आपको नौ सेना से अनुमति लेनी पड़ती है।
मुरुड में सुबह-सुबह सड़क पर
टहलने निकल पड़ा हूं। यहां सड़क के किनारे कई पुरानी ब्रिटिश कालीन इमारतें दिखाई देती हैं। समंदर
के किनारे लंगर लगाए बहुत सारी मछली पकड़ने वाली नावें भी दिखाई देती हैं। मैं
मुरुड के मछली बाजार से गुजरता हुआ पुराने शहर की ओर पहुंच गया हूं। किसी छोटे कस्बे के पुराने बाजार में घूमते हुए जैसी दुकानें नजर आती हैं कुछ उसी तरह खुशूब मुरुड में आ रही है। किराना दुकानों से नमक, हिंग और हल्दी की गंध।
नाना पाटेकर और मुरुड -
मुरुड के स्थनीय लोगों से बातचीत में पता चला कि फिल्मों के मशहूर अभिनेता नाना
पाटेकर मुरुड के रहने वाले हैं। उनका बचपन यहीं गुजरा है। उनकी मां बड़े संघर्ष करके अपने बेटे को पाला है। अब भी वे जब मुरुड आते
हैं यहां के सभी लोगों से आम लोगों की तरह मिलते हैं। कुछ स्थानीय लोग बताते हैं
कि नाना का बचपन यहां गरीबी में बीता। उनका मां दूसरे घरों में कामकाज करती थीं।
शायद इसलिए नाना बड़े अभिनेता बनने का बाद भी गरीबों के प्रति काफी हमदर्द हैं।
मुरुड शहर में मुसलमानों की
अच्छी आबादी है। यहां बाजार में मुझे जैन मंदिर दिखाई देता है। इसके आगे चलता हूं
तो मिठाई की दुकान दिखाई देती है। दो मिठाई की दुकानें हैं और दोनों यूपी के लोगों
की हैं। जय हनुमान होटल की मिठाइयां अच्छी हैं। यूपी के भाई सालों से यहां मिठाइयां बना रहे हैं। मुरुड के बाजार में महंगाई का मीटर
ऊंचा नहीं है। समोसे मिठाइयां सस्ती हैं। मैं कुछ मिठाइयां और नमकीन लेकर अपने
होटल वापस आ जाता हूं।
अब मुरुड से वापसी – जंजीरा का
किला देखने के बाद हमारी मुरुड से वापसी का समय हो गया है। होटल से चेकआउट के बाद
हमलोग सड़क पर बस का इंतजार कर रहे हैं। यहां से कहीं भी जाने वाली बस अलीबाग होकर
ही जाएगी। एक बस में हमें जगह मिल गई। वापसी में बस तेज चल रही है।
रेवदंडा का किला -
रास्ते में रेवदंडा का किले की दीवार नजर आती है। वास्तव में यह किला कुंडलिका नदी
के मुहाने पर बना है। यह तीन तरफ से पानी के घिरा है। यह रेवदंडा क्रीक से लगा हुआ
है। यहां सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। अलीबाग-मुरुद मार्ग किले से
होकर गुजरता है। सन 1524 में इस किले का निर्माण पुर्तगाली कैप्टन सोज ने कराया
था। सन 1806 तक यह पुर्तगालियों के कब्जे में था। उसके बाद इस पर मराठों का कब्जा
हो गया। वहीं 1818 में इस ब्रिटिश सेना ने कब्जा कर लिया।
तकरीबन दो घंटे के बस के सफर के
बाद हम अलीबाग पहुंच गए हैं। शाम के 4 बज गए हैं। हमने दोपहर का खाना नहीं खाया
है। अलीबाग बस स्टैंड के सामने कई अच्छे होटल हैं। यह हमने जाते समय ही देख लिया
था। इसलिए लंच अलीबाग में ही करना तय कर लिया था। तो बस स्टैंड के सामने अशोका
शाकाहारी में वेज बिरयानी और एक थाली आर्डर की गई। छक कर खाया और आगे के सफर पर चल
पड़े।
रोचक विवरण.....
ReplyDeleteThanks
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