महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले का छोटा सा शहर मुरुड में हमलोग 31 दिसंबर को पहुंचे हैं। नए साल का जश्न मनाने के लिए यहां सैलानियों की काफी भीड़ है। शहर के सभी होटल हाउसफुल हैं। हमारी बुकिंग काफी पहले से थी इसलिए हमें कोई दिक्कत नहीं हुई।
दत्त मंदिर से लौटकर हमलोग
मुरुड के समुद्र तट पर हैं। अस्ताचल गामी सूरज धीरे धीरे अपने घर जाने को है।
समंदर के पानी पर उनकी रश्मियों की लालिमा छाने लगी है। तो इस समय हमें क्या करना
चाहिए। समंदर की रेत पर चार पहिया वाली बाइक दौड़ने को तैयार है। हमने ऐसी एक मोटर
बाइक किराये पर ले ली है और उसे बालू पर दौड़ाने लगे हैं। कभी बाइक को अनादि ने
दौड़ाया तो कभी माधवी ने।
इस बाइक के अलावा यहां घोड़े से
खींचने वाली साइकिल का विकल्प भी मौजूद है। इस पर सवारी करना किसी शाही सवारी जैसा
आनंद देता है। बाइक राइड और दूसरे तरह की राइड से मन भर गया तो अब कुछ खाने पीने
चलते हैं।
मुरुड का समुद्र तट नए साल 2019
के स्वागत के लिए तैयार है। यहां 25 दिसंबर से
एक जनवरी तक मुरुड जंजीरा पर्यटन महोत्सव और फूड फेस्टिवल चल रहा है। समुद्र तट पर
मेला लगा हुआ है। मेले में दुकानदार अलग अलग शहरों से आए हैं। उनसे बातचीत में पता
चला कि महाराष्ट्र के अलग अलग शहरों में ऐसे मेलों का रिवाज है। ये मेले सालों भर
अलग अलग शहरों में चलते रहते हैं। मुरुड का मेला खत्म होने पर ये दुकानदार आगे
किसी और शहर के मेले में चले जाएंगे। मेले में दुकान लगाने वाले कई दुकानदार उत्तर
प्रदेश के अलग अलग शहरों के भी हैं।
मेले में खाने पीने की भी
अनगिनत दुकानें लगी हैं। पर इस बार की महाराष्ट्र यात्रा में जो नया व्यंजन मुझे
पसंद आया वह है दाबेली। हमने कुछ दिन पहले दाबेली खाई तो हमने अनादि को दाबेली
खाने को कहा। इधर दाबेली 10 से 15 रुपये में मिलती है। इसका मूल आधार तो पाव है। वही पाव जो बड़ा पाव के साथ
होता है। पर इसमें बड़ा की जगह पाव पर चटनी, सेव और मसाले
सजाए जाते हैं। कभी आप भी गुजरात महाराष्ट्र में हो खाकर देखिएगा।
रात का डिनर हमने मुरुड के एक शानदार थ्री स्टार होटल में करने का तय किया। पर वहां का खाना ऊंची दुकान फीकी पकवान रही। बुरा तो कुछ नहीं पर तारीफ करने लायक भी कुछ नहीं इसलिए उसका नाम नहीं ले रहा। खाने के बाद हमलोग मुरुड के समंदर तट पर एक बार फिर पहुंच गए हैं। मंच सजा है। संगीत की महफिल सजी है। गीत संगीत का दौर जारी है। सामने कुर्सियां लगी हैं। हमलोग भी कुर्सियों पर काबिज हो गए हैं। मंच से मराठी गाने, हिंदी गाने के बाद हमें सुखद आश्चर्य हुआ जब वहां भोजपुरी गाना भी बजने लगा... लॉलीपॉप लागे लू... संगीत भाषा की दुरियां पाट देता है।
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और ये रही 2018 की आखिरी सेल्फी... |
मंच के पीछे खाना पीना चल रहा
है। पॉप कार्न, मकई का भुट्टा... हमने भी
भुट्टा खाया। चाय कॉफी का दौर चल रहा है। मुरुड पुलिस और स्वयंसेवी संगठनों का
वालंटियर्स तैनात हैं किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए। लोग समंदर के किनारे
स्काई लैलटर्न उड़ा रहे हैं। चीन से आई ये कंदील मोमबत्ती चलाने के बाद हवा में
उड़ने लगती है। काफी ऊंचाई पर पहुंचने के बाद कहीं नीचे गिर जाती है। और ये लिजिए
रात के 12 बज गए हैं। साल 2019 शुरू हो
चुका है। थोड़ी देर समंदर के किनारे गुजारने के बाद हमलोग अपने होटल वापस लौट आए।
मुरुड में क्या
देखें – तो आइए जान लेते हैं कि मुरुड में क्या क्या देखें। आप दत्त मंदिर , मुरुड समुद्र तट, कासा किला, जंजीरा किला, , मुरुड शहर का
मछली बाजार, कासिद समुद्र तट, रेवदंडा का किला देख सकते हैं।
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आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विश्व दूरसंचार दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
Deleteसुन्दर विवरण।
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