संत
ज्ञानेश्वर ने आलंदी में ही 15 साल की उम्र में गीता की सरल टीका मराठी भाषा में लिखी जिसे ज्ञानेश्वरी कहते हैं। इसमें दस हजार
पद्य हैं। इसका मराठी में गीता जैसा ही सम्मान है। अमृतानुभव उनकी एक और रचना है। तब आम जनता बहुत संस्कृत नहीं जानती
थी, इसलिए ज्ञानेश्वर ने ज्ञानेश्वरी रचकर मराठी जनता
के सामने ज्ञान की झोली खोल दी।
ज्ञानेश्वर के पिता विठ्ठलपंत आपेगावं के ब्राह्मण थे। उन्होंने आलंदी के कुलकर्णी की बेटी, रुख्मिणीबाई से विवाह किया था। पर शादी के बाद वे ज्ञान की खोज में वाराणसी चले गए। कुछ समय बाद गुरु के आदेश पर विठ्ठलपंत अपनी पत्नी रुख्मिणी बाई के पास लौट आए और आलंदी में बस गए। रुख्मिणीबाई ने चार बच्चों-निवृत्तीनाथ (1273), ज्ञानेश्वर (1275), सोपान (1277) और मुक्ताबाई (1279 ) को जन्म दिया। संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष अष्टमी को हुआ था।
ज्ञानेश्वर के पिता विठ्ठलपंत आपेगावं के ब्राह्मण थे। उन्होंने आलंदी के कुलकर्णी की बेटी, रुख्मिणीबाई से विवाह किया था। पर शादी के बाद वे ज्ञान की खोज में वाराणसी चले गए। कुछ समय बाद गुरु के आदेश पर विठ्ठलपंत अपनी पत्नी रुख्मिणी बाई के पास लौट आए और आलंदी में बस गए। रुख्मिणीबाई ने चार बच्चों-निवृत्तीनाथ (1273), ज्ञानेश्वर (1275), सोपान (1277) और मुक्ताबाई (1279 ) को जन्म दिया। संत ज्ञानेश्वर का जन्म 1275 में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष अष्टमी को हुआ था।
बहुत छोटी आयु में ज्ञानेश्वर
को जाति से बहिष्कृत होकर कई संकटों
का सामना करना पड़ा। संन्यासी के बच्चे कहकर तत्कालीन ब्राह्मण समाज ने उनका
तिरस्कार किया।संत ज्ञानेश्वरजी ने मात्र 21 वर्ष
की उम्र में 1296 में संसार का परित्याग कर समाधि ग्रहण की।
समाज का लगातार तिरस्कार सहने के बावजूद ज्ञानेश्वर के साहित्य में कहीं भी, किसी के विरुद्ध परिवाद नहीं है। समग्र ज्ञानेश्वरी क्षमाशीलता का विराट प्रवचन है।
समाज का लगातार तिरस्कार सहने के बावजूद ज्ञानेश्वर के साहित्य में कहीं भी, किसी के विरुद्ध परिवाद नहीं है। समग्र ज्ञानेश्वरी क्षमाशीलता का विराट प्रवचन है।
हर साल आलंदी से पंढरपुर यात्रा
- पुणे के आलंदी तीर्थ क्षेत्र से संत
ज्ञानेश्वर महाराज की पालकी हर
साल पंढरपुर के लिए रवाना होती है। महाराष्ट्र की ये सबसे मशहूर धार्मिक यात्रा 21 दिन में पंढरपुर तक जाती
है। इस
मौके पर आलंदी में लाखों भक्त जमा होते हैं।
संत ज्ञानेश्वर पर
हिंदी और मराठी में कई फिल्में बनी हैं। इनमें 1964 में बनी हिंदी संत ज्ञानेश्वर
फिल्म काफी लोकप्रिय हुई। इसका गीत - जोत से जोत
जगाते चलो काफी लोकप्रिय हुआ।
जोत से जोत जगाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी, सबको गले से लगाते चलो
जिसका न कोई संगी साथी
ईश्वर है रखवाला
जो निर्धन है जो निर्बल है वह
है प्रभु का प्यारा
प्यार के मोती लुटाते चलो, प्रेम की गंगा...
आशा टूटी ममता रूठी छूट गया है
किनारा
बंद करो मत द्वार दया का दे दो
कुछ तो सहारा
दीप दया का जलाते चलो, प्रेम की गंगा...
छाई है छाओं और अंधेरा
भटक गई हैं दिशाएं
मानव बन बैठा है दानव किसको
व्यथा सुनाएं
धरती को स्वर्ग बनाते चलो, प्रेम की गंगा...
जोत से जोत जगाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो
राह में आए जो दीन दुखी सब को
गले से लगाते चलो
कौन है ऊंचा कौन है नीचा सब में
वो ही समाया
भेद भाव के झूठे भरम में ये
मानव भरमाया
धर्म ध्वजा फहराते चलो, प्रेम की गंगा ...
सारे जग के कण कण में
है दिव्य अमर इक आत्मा
एक ब्रह्म है एक सत्य है एक ही
है परमात्मा
प्राणों से प्राण मिलाते चलो, प्रेम की गंगा ...
सन 1964 की संत ज्ञानेश्वर
फिल्म में एक और गीत था जो बच्चों में काफी लोकप्रिय हुआ। फिल्में ये गीत तब आता
जब ज्ञानेश्वर के मातापिता बच्चों को पढ़ाई के लिए गुरुजी के पास भेजने का उपक्रम
करते हैं। ये गीत है-
एक दो तीन चार एक दो तीन चार, भैया
बनो होशियार एक दो तीन चार।
भैया बनो होशियार सबका है कहना अनपढ़
ना रहना
जाओ गुरु जी के द्वार.. एक दो
तीन चार भैया बनो होशियार
एक दो तीन चार...
पट्टी लिखना कॉपी भी पढ़ना
पट्टी लिखना
सारे जग मे छम छम चमकना, ओ मेरे
भैया प्यारे भैया
फिर तो पहनोगे फूलों के हार...
एक दो तीन चार...भैया बनो
होशियार
शैतानी तुम ज़्यादा ना करना
शैतानी, पंडित जी के गुस्से से डरना
मेरे भैया हो अच्छे भैया, नहीं
तो खाओगे बेतों की मार।
एक दो तीन चार भैया बनो होशियार...
पढ़ कर सीधे घर को ही आना।
मीठे मीठे लड्डू भी खाना, ओ
मेरे भैया हो मेरे मीठे भैया
फिर मैं लूंगी बलैया हजार...एक
दो तीन चार..भैया बनो होशियार।
( फिल्म – संत ज्ञानेश्वर,1964 – लता मंगेश्कर- गीत – भरत व्यास – संगीत –
लक्ष्मीकांत प्यारे लाल )
-
विद्युत
प्रकाश मौर्य
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