भीमा ( चंद्रभागा) नदी के तट पर है कान्हा मंदिर
महाराष्ट्र के शहर पंढरपुर में विट्ठलस्वामी यानी भगवान कृष्ण का प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिर है। पंढरपुर सोलापुर के पास भीमा नदी के तट पर बसा शहर है। इस शहर का एक नाम पंढारी भी है। महाराष्ट्र के लोग इस शहर को भू बैकुंठ मानते हैं। यहां पर भीमा नदी को चंद्रभागा नदी के नाम से भी जाना जाता है। विट्ठल स्वामी को स्थानीय लोग प्यार से बिठोबा और रुक्मिणी को रखुमाई भी कहते हैं। पंढरपुर बस स्टैंड से मंदिर का मार्ग एक किलोमीटर का है। रास्ते में तमाम बड़ी बड़ी धर्मशालाएं बनी हैं।
बिठोबा के मंदिर में दर्शन के लिए सालों भर भीड़ रहती है। तकरीबन 30 घंटे दर्शन में लग जाते हैं। मंदिर के आसपास क्लॉक रुम बने हैं। यहां आप अपने बैग और जूते आदि जमा करके दर्शन के लिए पंक्ति में लग सकते हैं। बिठोबा के मंदिर में दो तरह के दर्शन है। गर्भ गृह दर्शन के अलावा समय कम हो तो मुख दर्शन भी किया जा सकता है।
मंदिर के गर्भगृह में विट्ठल और रुक्मिणी की प्रतिमाएं है। यह देश का प्रमुख मंदिर है जहां कृष्ण राधा के साथ नहीं बल्कि अपनी पत्नी रुक्मिणी के साथ पूजे जाते हैं। काले पत्थर की बनीं ये मूर्तियां काफी सुंदर हैं। विट्ठल मतलब नटवर नागर कन्हा। मुख्य मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में देवगिरी के यादव शासकों द्वारा कराया गया था। मंदिर का परिसर बहुत विशाल है। इसमें चारों तरफ से चार द्वार बने हैं। मंदिर के निर्माण में पत्थरों का ज्यादा काम हुआ है।
दिन भर में पांच बार पूजा - पंढरपुर के मुख्य मंदिर में बड़वा परिवार के ब्राह्मण पुजारी पूजा-विधी करते हैं। इस पूजा में पांच दैनिक संस्कार होते हैं। सबसे पहले, सुबह लगभग तीन बजे, भगवान को जागृत करने के लिए एक अरती है, जिसे काकड आरती कहा जाता है। इसके बाद पंचामृत पूजा की जाती है। आखिरी पूजा रात्रि दस बजे होती है। इसके बाद भगवान सोने के लिए चले जाते हैं।
विट्ठल स्वामी के मंदिर में संगीत की परंपरा है। मंदिर परिसर में साधक सितार लिए ईश्वर की अराधना में लीन रहते हैं। आते जाते लोग उनके सामने श्रद्धा से सिर झुकाते हैं।
पंढरपुर की यात्रा और वारकरी - पंढरपुर वारी एक वार्षिक यात्रा है जो हिंदू महीने ज्येष्ठ और आषाढ़ के समय विट्ठल स्वामी मंदिर के लिए निकाली जाती है। इस यात्रा में शामिल होने वाले वारकरी कहलाते हैं। विठोबा के सम्मान में पंढरपुर के लिए तीर्थयात्रियों की यह यात्रा निकलती है। इस यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु पंढरपुर पहुंचते हैं। तब पूरे शहर में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता है।
सभी जातियों के पुजारी - साल 2014 में पंढरपुर के विठ्ठल−रखुमाई मंदिर ने नई मिसाल कायम की। राज्य में ऐसा पहली बार हुआ जबकि इतने बड़े धार्मिक स्थल पर सभी जातियों के पुजारियों की नियुक्ति की गई। इस तरह का कार्य करने वाला यह राज्य का अनूठा मंदिर बन गया। ऐसा करके समाज में समरसता का संदेश देने की कोशिश की गई। यही संत नामदेव का सच्चा संदेश भी तो है।मंदिर में अलग अलग जातियों के दस पुजारियों की नियुक्ति की गई। इसमें 5 ब्राह्मण के अलावा गुरव, दर्जी और कसार जाति के पुजारी नियुक्त किए गए। सरकार के इस कदम से लोगों ने काफी खुशी जताई।
( अगली कड़ी में पढ़े - पंढरपुर और संत नामदेव और गोरा कुम्हार के बारे में )
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(PANDHARPUR, BITHOBA TEMPLE, KRISHNA, SANT NAMDEV )
- विद्युत प्रकाश मौर्य - vidyutp@gmail.com
(PANDHARPUR, BITHOBA TEMPLE, KRISHNA, SANT NAMDEV )
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 22/04/2019 की बुलेटिन, " टूथ ब्रश की रिटायरमेंट - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी. उम्दा पोस्ट.
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteरोचक जानकारी। अगली पोस्ट का इंतजार है।
ReplyDeleteThanks
Deleteअच्छी और नवीन जानकारियाँ!!
ReplyDeleteधन्यवाद
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