जोतिबा मंदिर के दर्शन के करके
वापस लौट आया हूं। अब पन्हाला किला जाने की तैयारी है। ज्योतिबा मंदिर से 11
किलोमीटर पहले केरली में मुख्य सड़क पर खड़ा होकर पन्हाला जाने वाली बस का इंतजार
कर रहा हूं। पर काफी देर तक कोई बस नहीं आई। कुछ और लोग भी पन्हाला जाना चाहते
हैं। थोड़ी देर में एक जीप आई। हम सब उसमें लद गए। वैसे कोल्हापुर से सीधे पन्हाला
दुर्ग जाना हो तो दूरी 24 किलोमीटर है।
कोल्हापुर के पास स्थित पनहला
किला समुद्र तल से 3127 फीट की
ऊंचाई पर स्थित है। यहां के खूबसूरत प्राकृतिक नजारे लोगों को सालों भर लुभाते हैं। पहाड़ी पर स्थित
पन्हाला दुर्ग कई किलोमीटर में विस्तारित है। दुर्ग के दायरे में पूरा शहर बसा हुआ
है। इसलिए यहां घूमने के लिए कोई वाहन होना आवश्यक है। पन्हाला में कुछ होटल और
रिजार्ट भी हैं, जहां आकर आप ठहर सकते हैं। पनहाला नगर परिषद है। यहां की आबादी
4000 के आसपास है।
पनहाला का तापमान सालों भर
मनोरम रहता है। यहां अधिकतम तापमान 34 डिग्री से ऊपर नहीं जाता। मानसून के दौरान
यहां खूब बारिश भी होती है। पनहाला के सदाबहार मौसम से आकर्षित होकर फिल्मकार वी शांताराम
की अभिनेत्री बेटी राजश्री ने यहां अपना आवास बनवाया था जिसे बाद में होटल में
तब्दील कर दिया गया।
पनहाला का इतिहास तीसरी सदी
ईस्वी पूर्व से मिलता है। यहां कुछ सातवाहन कालीन अवशेष भी मिलते हैं। यह भी कहा
जाता है कि पराशर मुनि ने यहां पर तप किया था।
नाम मिला पन्न्ना नामक जनजाति
के नाम पर पड़ा जो आरंभ में इस किले पर शासन करती थी। इस किले का निर्माण 1052 में राजा भोज ने करवाया था। बाद में शिलहार और यादव वंशों ने भी यहां राज
किया। 1209-10 में इस पर देवगिरी के यादवों ने कब्जा किया। आदिलशाही मुस्लिमों के
शासन में जब यह दुर्ग आया तो इसका नाम शहानबी दुर्ग रखा गया। वीर मराठा शिवाजी ने 28
नवंबर 1659 में इस स्थान को आदिल शाह से जीत कर अपने कब्जे
में लिया। शिवाजी के समय इसका नाम पन्हाला दुर्ग रखा गया। यह दुर्ग 1701 में
औरंगजेब के कब्जे में भी आया। महारानी ताराबाई ने 1705 में पनहाला को अपनी राजधानी
बनाई। यहां से 1782 तक राजधानी का कामकाज चलता रहा।
शिवाजी के शासन काल में पन्हाला
दुर्ग चर्चा में रहा। शिवाजी ने इसके कई गढ़ और बुर्ज की मरम्मत कराई। 2 मार्च
1660 को शिवाजी पन्हालागढ़ आए। इसके बाद सिद्दी जौहर ने फौज के साथ पन्हाला गढ़ को
घेर लिया। कई महीने तक घेराबंदी कायम रही। जब रशद खत्म होने लगा तो शिवाजी सिद्दी
जौहर की फौज को चकमा देकर यहां से विशालगढ़ किले के लिए रवाना हो गए। शिवाजी के
हमशक्ल शिवा कासीद को यहां शहीद होना पड़ा।
पन्हाला गढ़ में क्या क्या देखें-
अंबर खाना यानी विशाल अनाज
गोदाम – पन्हाला गढ़ में प्रवेश करने
के साथ ही आप सबसे पहले अंबर खाना या बाले किला को देखते हैं। यहां खजाना और
शस्त्रागार को कड़ी निगरानी में रखा जाता था। इसका निर्माण 1052 में राजा भोज ने
करवाया था। यहां कुल तीन गोदाम बने हैं।
एक का इस्तेमाल अनाज रखने के लिए होता था। इनके नाम क्रमशः गंगा, यमुना और सरस्वती दिए गए थे। इनमें चावल, रागी, करई आदि का संग्रह किया जाता था। इन गोदामो की दीवारें काफी मजबूत और मोटी हैं। जब सिद्दी जौहर ने किले के चारों तरफ घेरा डाला तो इस अन्न भंडार से ही फौज और हाथी घोड़ों के लिए रसद का इंतजाम किया गया। यहां पास में एक चांदी की टकसाल भी हुआ करती थी। अंबर खाना इमारत के आसपास 1982 में आई फिल्म मासूम की शूटिंग हुई थी।
एक का इस्तेमाल अनाज रखने के लिए होता था। इनके नाम क्रमशः गंगा, यमुना और सरस्वती दिए गए थे। इनमें चावल, रागी, करई आदि का संग्रह किया जाता था। इन गोदामो की दीवारें काफी मजबूत और मोटी हैं। जब सिद्दी जौहर ने किले के चारों तरफ घेरा डाला तो इस अन्न भंडार से ही फौज और हाथी घोड़ों के लिए रसद का इंतजाम किया गया। यहां पास में एक चांदी की टकसाल भी हुआ करती थी। अंबर खाना इमारत के आसपास 1982 में आई फिल्म मासूम की शूटिंग हुई थी।
छत्रपति ताराराणी राजवाड़ा –
इसका निर्माण 1708 में तारारानी ने करवाया था।
समान्य सी दिखने वाली इमरात से 74 साल तक राजधानी का संचालन किया गया। अब
इस भवन में सरकारी दफ्तर का संचालन हो रहा है। इसके अलावा आप पन्हालागढ़ में सज्जा
कोठी, बाघ दरवाजा, तीन दरवाजा, चार दरवाजा, दौलती बुर्ज, अंधेरी बावड़ी आदि भी देख
सकते हैं। तो इनकी बात करेंगे अगली पोस्ट में...
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