पुणे में दिसंबर की
एक दोपहर। मैं निकल पड़ा हूं सावित्री बाई फूले यूनीवर्सिटी के लिए। खराड़ी से बस
मिल गई पुणे जंक्शन रेलवे स्टेशन के लिए। बस कई मार्गों पर रैपिड मार्ग से होकर जा
रही है। सड़क के बीचों बीच बीआरटी कॉरीडोर बना है। इस बीआरटी में चलने वाली लोकल
बस में दोनों तरफ दरवाजे हैं। अक्सर बीआरटी के अंदर बने प्लेटफार्म वाले स्टाप पर
इसका ड्राईवर के साइड वाला बड़ा दरवाजा खुलता है। लोग बस में अंदर आते हैं। दरवाजा
बंद होता है और बस चल पड़ती है। पुणे मेंबीआरटी कॉरीडोर सफल है। दिल्ली में कोशिश
हुई थी फेल हो गया। स्टेशन मनपा की बस ले ली है।
मनपा मतलब पुणे महानगरपालिका। यहां से पुणे के हर इलाके के लिए बस मिल जाती है। मतलब दिल्ली के केंद्रीय टर्मिनल की तरह है। मनपा के पास मुझे पुणे से छपने वाले हिंदी के दैनिक अखबार आज का आनंद का बोर्ड नजर आता है। बस ने मुझे सावित्री बाई फूले यूनीवर्सिटी के गेट पर उतार दिया है। मैं विश्वविद्यालय परिसर में टहलाता हुआ आगे बढ़ रहा हूं।
तभी मेरे मित्र प्रभाकर पांडे बाइक पर प्रकट होते हैं। उनके साथ मैं विश्वविद्यालय परिसर स्थित सीडैक के दफ्तर में जाता हूं।चाय की चुस्की के साथ ढेर सारी बातें। वहां उनके मित्र तानाजी झंडे से परिचय होता है। वे घुमक्कड़ प्रवृति के हैं। झंडे उनका टाइटिल है। उनके पुरखे पेशवा की सेना में झंडा लेकर सबसे आगे चलते थे इसलिए ये उपाधि मिली।
सावित्रि बाई फूले यूनिवर्सिटी परिसर में कुछ घंटे गुजारने के बाद हमलोग बाहर निकले। हमलोग पुणे के औंध इलाके में ब्रेमन चौराहे पर आ गए हैं। औंध पुणे का संभ्रांत इलाका है। काफी लोग यहां शॉपिंग करने आते हैं। मुख्य सड़क पर शानदार फुटपाथ बना है। इस चौड़े फुटपाथ पर जगह जगह बैठने के लिए बेंच बनी है। कई जगह म्युरल्स और कलाकृतियों से सड़क को सजाया गया है।
किसी भी शहर को बेहतर शहर इस बात से आंका जाना चाहिए कि वहां पैदल चलने वालों के लिए कितना बेहतर इंतजाम है। तो इस लिहाज से औंध की सड़के काफी बेहतर एहसास कराती हैं। ब्रेमन चौक से परिहार चौक तक पैदल घूमना काफी आनंददायक रहा। हम पहुंच गए हैं पुणे के वेस्ट इंड मॉल के पास।
मनपा मतलब पुणे महानगरपालिका। यहां से पुणे के हर इलाके के लिए बस मिल जाती है। मतलब दिल्ली के केंद्रीय टर्मिनल की तरह है। मनपा के पास मुझे पुणे से छपने वाले हिंदी के दैनिक अखबार आज का आनंद का बोर्ड नजर आता है। बस ने मुझे सावित्री बाई फूले यूनीवर्सिटी के गेट पर उतार दिया है। मैं विश्वविद्यालय परिसर में टहलाता हुआ आगे बढ़ रहा हूं।
तभी मेरे मित्र प्रभाकर पांडे बाइक पर प्रकट होते हैं। उनके साथ मैं विश्वविद्यालय परिसर स्थित सीडैक के दफ्तर में जाता हूं।चाय की चुस्की के साथ ढेर सारी बातें। वहां उनके मित्र तानाजी झंडे से परिचय होता है। वे घुमक्कड़ प्रवृति के हैं। झंडे उनका टाइटिल है। उनके पुरखे पेशवा की सेना में झंडा लेकर सबसे आगे चलते थे इसलिए ये उपाधि मिली।
सावित्रि बाई फूले यूनिवर्सिटी परिसर में कुछ घंटे गुजारने के बाद हमलोग बाहर निकले। हमलोग पुणे के औंध इलाके में ब्रेमन चौराहे पर आ गए हैं। औंध पुणे का संभ्रांत इलाका है। काफी लोग यहां शॉपिंग करने आते हैं। मुख्य सड़क पर शानदार फुटपाथ बना है। इस चौड़े फुटपाथ पर जगह जगह बैठने के लिए बेंच बनी है। कई जगह म्युरल्स और कलाकृतियों से सड़क को सजाया गया है।
किसी भी शहर को बेहतर शहर इस बात से आंका जाना चाहिए कि वहां पैदल चलने वालों के लिए कितना बेहतर इंतजाम है। तो इस लिहाज से औंध की सड़के काफी बेहतर एहसास कराती हैं। ब्रेमन चौक से परिहार चौक तक पैदल घूमना काफी आनंददायक रहा। हम पहुंच गए हैं पुणे के वेस्ट इंड मॉल के पास।
आशापुरी डाइनिंग हॉल की थाली -
रात हो गई और भोजन का समय हो गया है तो प्रभाकर पांडे जी हमें ले आए हैं परिहार
चौक पर आशापुरी डाइनिंग हॉल में। यह एक राजस्थानी भोजनालय है। यहांखाने की थाली है
90 रुपये की। इस थाली में घी चुपड़ी चपाती, दो सब्जी, दाल, मिठाई आदि है। चपाती
चाहे आप जितनी लें। अलग से छाछ लेना चाहें
तो 20 रुपये का है। यही थाली शनिवार और रविवार को 100 रुपये की हो जाती है।
आशापुरी डायनिंग में राजस्थानी दाल बाटी चूरमा भी मिलता है। दाल बाटी वाली थाली 120 रुपये की है। वैसे पुणे शहर में कई राजस्थानी भोजनालय हैं। पर आशापुरी की थाली का जवाब नहीं। यहां हर रोज स्थानीय लोगों की खूब भीड़ जुटती है। भोजन के बाद प्रभाकर जी अपने घर चले गए पर मैं औंध की सड़कों पर देर तक टहलता रहा।
आशापुरी डायनिंग में राजस्थानी दाल बाटी चूरमा भी मिलता है। दाल बाटी वाली थाली 120 रुपये की है। वैसे पुणे शहर में कई राजस्थानी भोजनालय हैं। पर आशापुरी की थाली का जवाब नहीं। यहां हर रोज स्थानीय लोगों की खूब भीड़ जुटती है। भोजन के बाद प्रभाकर जी अपने घर चले गए पर मैं औंध की सड़कों पर देर तक टहलता रहा।
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विद्युत प्रकाश
मौर्य
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( PUNE,
AUNDH, SAVITRI BAI FULE UNIVERSITY, CDAC, ASHAPURI DINING HALL, DAL BATI )
सही कहा आपने कि किसी भी शहर में पैदल चलने वालों का ििइंतजाम हो तो बहुत अच्छा होता है...थाली मस्त लग रही है दिखने में...
ReplyDeleteहां पुणे का ये इलाका बेहतर है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सचित्र वर्णन
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति फील्ड मार्शल सैम 'बहादुर' मानेकशॉ की 105वीं जयंती और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteThanks
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