
शाम के 5:10 बजे गए
हैं। जम्मू तवी अहमदाबाद एक्सप्रेस थोड़ी देर से चल रही है। मैं पंजाब के फरीदकोट
रेलवे स्टेशन पर उतर गया। फरीदकोट मतलब बाबा फरीद का शहर। वही बाबा फरीद जिनकी
वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित है। लोगों से बाबा फरीद की मजार का रास्ता पूछता
हुआ शहर की तरफ पैदल की चल पड़ा हूं। हालांकि कई साल पहले फरीकोट आया था पर बाबा
फरीद की मजार पर नहीं जा सका था।
हजरत ख्वाजा फरीद्दुद्दीन गंजशकर भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब क्षेत्र के एक सूफी संत थे। वे एक उच्चकोटि के पंजाबी कवि भी थे। सिख गुरुओं ने इनकी रचनाओं को सम्मान सहित श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान दिया। गुरुग्रंथ साहिब में बाबा फरीद के 112 श्लोक और 4 शबद लिए गए हैं।
फरीदकोट सुंदर शहर नजर आ रहा है। शहर पुराने गणेश तिपहिया वाहन चलते हैं। शहर के चौराहे पर पंजाबी रणबांकुरों की मूर्तियां लगी है। इसके आगे शहर का घंटाघर आता है। शहर में विक्टोरियन शैली का बना हुआ एक सुंदर टावर नजर आता है। फरीदकोट शहर का बाजार काफी सुंदर है। कपड़े की सैकड़ो सजी संवरी दुकाने हैं। इनके बीच से मैं पैदल चलता हुआ जा रहा हूं। चलते चलते मैं किला मुबारक पहुंच गया हूं। बारहवीं-तेरहवीं सदी में बना यह पंजाब के अति प्राचीन किलों में से एक है।
फरीदकोट के किला मुबारक का निर्माण मूल रूप से राजा मोकल देव ने किया था और बाद में राजा हमीर सिंह ने 1732 में इसका पुन:निर्माण कराया। राजा बिक्रम सिंह और राजा बलबीर सिंह ने इसे और विस्तृत रूप प्रदान किया। कभी किला मुबारक का नाम मोकल नगर भी हुआ करता था। बाबा में बाबा फरीद ने इस धरती को अपने कदमों से पवित्र किया।

किला मुबारक के सामने लोगों से एक बार बाबा फरीद के मजार का पता पूछता हूं। बस यहां से थोडी दूर ही है। बाबा फरीद के मजार को यहां टिल्ला बाबा फरीद जी कहते हैं। यह सिख, हिंदू औ मुस्लिम तीनों की आस्था का केंद्र है। संकरी सड़क पर टिल्ला बाबा फरीद वास्तव में एक गुरुद्वारा है। इसका प्रबंधन सिख समाज करता है। इसमें प्रवेश करते ही गुरुघर, बाबा फरीद की स्मृतियां और लंगर हॉल आदि है।
मुलतान में हुआ था बाबा का जन्म - बाबा फरीद का जन्म 5 अप्रैल 1173 को गांव खेतवाल जिला मुलतान में हुआ था। 23 सितंबर 1215 को वे इस धरती पर पहुंचे। वे यहीं एक टिला पर रहने लगे। उसी समय राजा मोकलसी द्वारा किले का निर्माण कराया जा रहा था। उसे बेगार करने के लिए मजदूरों की जरूरत थी। बाबा को भी बेगार के लिए लगा दिया गया। पर जब मिट्टी की टोकरी उनके सिर पर रखी गई तो वह एक फीट ऊपर हवा में तैरती नजर आई। राजा मोकलसी यह चमत्कार देख बाबा के चरणों में आ गिरा। बाबा के आशीर्वाद से इस शहर को चोर लूटेरों से निजात मिली। फिर उनके सम्मान में शहर का नाम मोकलहर से बदलकर फरीदकोट कर दिया गया।
बाबा ने जिस पेड़ से अपने मिट्टी वाले हाथ पोछे उस पेड़ की सदियों से पूजा हो रही है। टिला बाबा फरीद में पांच दीपक सदियों से लगातार जल रहे हैं।
पंजाबी भाषा के पहले कवि - बाबा फरीद ने अपना संदेश पंजाबी में दिया। इसलिए उन्हें पंजाबी भाषा का पहला कवि भी माना जाता है। सिर्फ 16 साल की उम्र में ही बाबा फरीद को हज के लिए गए। पंजाबी भाषा में बाबा फरीद का नियंत्रण और प्रवाह देखने के बाद, एक फकीर बाबा ने भविष्यवाणी की, कि वह एक दिन एक महान संत बनेंगे। बाबा फरीद को धर्मशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने के लिए दिल्ली भी गए। बाबा फरीद अरबी, फारसी भाषाओं के ज्ञाता थे लेकिन पंजाबी भाषा से उनको बहुत लगाव था इसलिए उन्होने अपने सभी दोहे पंजाबी में ही लिखे।

हजरत ख्वाजा फरीद्दुद्दीन गंजशकर भारतीय उपमहाद्वीप के पंजाब क्षेत्र के एक सूफी संत थे। वे एक उच्चकोटि के पंजाबी कवि भी थे। सिख गुरुओं ने इनकी रचनाओं को सम्मान सहित श्री गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान दिया। गुरुग्रंथ साहिब में बाबा फरीद के 112 श्लोक और 4 शबद लिए गए हैं।
फरीदकोट सुंदर शहर नजर आ रहा है। शहर पुराने गणेश तिपहिया वाहन चलते हैं। शहर के चौराहे पर पंजाबी रणबांकुरों की मूर्तियां लगी है। इसके आगे शहर का घंटाघर आता है। शहर में विक्टोरियन शैली का बना हुआ एक सुंदर टावर नजर आता है। फरीदकोट शहर का बाजार काफी सुंदर है। कपड़े की सैकड़ो सजी संवरी दुकाने हैं। इनके बीच से मैं पैदल चलता हुआ जा रहा हूं। चलते चलते मैं किला मुबारक पहुंच गया हूं। बारहवीं-तेरहवीं सदी में बना यह पंजाब के अति प्राचीन किलों में से एक है।
फरीदकोट के किला मुबारक का निर्माण मूल रूप से राजा मोकल देव ने किया था और बाद में राजा हमीर सिंह ने 1732 में इसका पुन:निर्माण कराया। राजा बिक्रम सिंह और राजा बलबीर सिंह ने इसे और विस्तृत रूप प्रदान किया। कभी किला मुबारक का नाम मोकल नगर भी हुआ करता था। बाबा में बाबा फरीद ने इस धरती को अपने कदमों से पवित्र किया।

किला मुबारक के सामने लोगों से एक बार बाबा फरीद के मजार का पता पूछता हूं। बस यहां से थोडी दूर ही है। बाबा फरीद के मजार को यहां टिल्ला बाबा फरीद जी कहते हैं। यह सिख, हिंदू औ मुस्लिम तीनों की आस्था का केंद्र है। संकरी सड़क पर टिल्ला बाबा फरीद वास्तव में एक गुरुद्वारा है। इसका प्रबंधन सिख समाज करता है। इसमें प्रवेश करते ही गुरुघर, बाबा फरीद की स्मृतियां और लंगर हॉल आदि है।
मुलतान में हुआ था बाबा का जन्म - बाबा फरीद का जन्म 5 अप्रैल 1173 को गांव खेतवाल जिला मुलतान में हुआ था। 23 सितंबर 1215 को वे इस धरती पर पहुंचे। वे यहीं एक टिला पर रहने लगे। उसी समय राजा मोकलसी द्वारा किले का निर्माण कराया जा रहा था। उसे बेगार करने के लिए मजदूरों की जरूरत थी। बाबा को भी बेगार के लिए लगा दिया गया। पर जब मिट्टी की टोकरी उनके सिर पर रखी गई तो वह एक फीट ऊपर हवा में तैरती नजर आई। राजा मोकलसी यह चमत्कार देख बाबा के चरणों में आ गिरा। बाबा के आशीर्वाद से इस शहर को चोर लूटेरों से निजात मिली। फिर उनके सम्मान में शहर का नाम मोकलहर से बदलकर फरीदकोट कर दिया गया।

पंजाबी भाषा के पहले कवि - बाबा फरीद ने अपना संदेश पंजाबी में दिया। इसलिए उन्हें पंजाबी भाषा का पहला कवि भी माना जाता है। सिर्फ 16 साल की उम्र में ही बाबा फरीद को हज के लिए गए। पंजाबी भाषा में बाबा फरीद का नियंत्रण और प्रवाह देखने के बाद, एक फकीर बाबा ने भविष्यवाणी की, कि वह एक दिन एक महान संत बनेंगे। बाबा फरीद को धर्मशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करने के लिए दिल्ली भी गए। बाबा फरीद अरबी, फारसी भाषाओं के ज्ञाता थे लेकिन पंजाबी भाषा से उनको बहुत लगाव था इसलिए उन्होने अपने सभी दोहे पंजाबी में ही लिखे।

साल 1266 में बाबा फरीद का निधन पाकिस्तान
के पत्तन शहर में हो गया। हर साल बाबा की याद में फरीदकोट तीन दिवसीय त्यौहार बाबा
शेख फरीद आगमन पूर्व मेला 21 सितंबर से 23
सितंबर तक मनाया जाता है।
फरीदा खाकु न निंदीऐ, खाकू जेडु न कोइ ॥
जीवदिआ पैरा तलै, मुइआ उपरि होइ ॥
बाबा फरीद कहते हैं कि मिट्टी की
बुराई न करें, क्योंकि उसके जैसा और कोई
नहीं। जब तक आप जिंदा रहते हो वह आपके पैरों तले होती है किंतु मृत्यु होने पर
मिट्टी तले दब जाते हो।
(FARIDKOT, BABA FARID, KILA MUBARAK, PUNJABI POET, GURUVANI )
रोचक घुमक्कड़ी रही ये भी। बाबा फरीद के विषय में जानकार अच्छा लगा।
ReplyDeleteधन्यवाद भाई
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